राज्‍यसभा: याद आएं 'संकट मोचक', पक्ष एवं विपक्ष ने एक सुर में कहा- जेटली की कमी खलेगी

सत्र के पहले दिन आज उच्च सदन में जेटली तथा अन्य वर्तमान सदस्य राम जेठमलानी एवं तीन पूर्व सदस्यों जगन्नाथ मिश्र सुखदेव सिंह लिबरा एवं गुरदास दासगुप्ता को श्रद्धांजलि दी गई।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Mon, 18 Nov 2019 03:46 PM (IST) Updated:Mon, 18 Nov 2019 03:46 PM (IST)
राज्‍यसभा: याद आएं 'संकट मोचक', पक्ष एवं विपक्ष ने एक सुर में कहा- जेटली की कमी खलेगी
राज्‍यसभा: याद आएं 'संकट मोचक', पक्ष एवं विपक्ष ने एक सुर में कहा- जेटली की कमी खलेगी

नई दिल्‍ली, एजेंसी । राज्‍यसभा में सोमवार को पूर्व वित्त मंत्री तथा उच्च सदन के पूर्व नेता अरुण जेटली का जिक्र करते हुए सदस्यों ने कहा कि सदन में उनकी कमी बहुत खलेगी। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन आज, उच्च सदन में जेटली तथा अन्य वर्तमान सदस्य राम जेठमलानी एवं तीन पूर्व सदस्यों जगन्नाथ मिश्र, सुखदेव सिंह लिबरा एवं गुरदास दासगुप्ता को श्रद्धांजलि दी गई। वर्तमान सदस्यों के सम्मान में बैठक दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। 

राष्ट्रगान की धुन बजाए जाने के साथ बैठक की शुरुआत हुई। इसके बाद सभापति ने जेटली, जेठमलानी, मिश्र, लिबरा एवं दासगुप्ता के निधन का जिक्र किया। जेटली को एक उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ बताते हुए नायडू ने कहा कि उनकी प्रखर मेधा हर क्षेत्र में जाहिर होती थी। उन्होंने कहा कि हर विषय पर गहरा ज्ञान रखने वाले जेटली ने न केवल समय समय पर सरकार के लिए संकट मोचक की भूमिका निभाई बल्कि कई अहम विधायी कामकाज संपन्न कराने में और सदन की गरिमा बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। 

नायडू ने कहा कि पेशे से अधिवक्ता जेटली अप्रैल 2000 से 24 अगस्त 2019 को उनके निधन तक उच्च सदन के सदस्य रहे। उन्होंने कहा कि 66 वर्षीय जेटली ने विभिन्न मंत्रालयों का प्रभार संभाला और जीएसटी, बेनामी कानून, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता संबंधी विधेयकों के पारित होने में तथा रेल बजट का आम बजट में विलय करने में अहम भूमिका निभाई। उच्च सदन के वर्तमान सदस्य राम जेठमलानी के निधन का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा कि प्रख्यात कानूनविद रहे जेठमलानी छह बार उच्च सदन में कर्नाटक, राजस्थान, बिहार का प्रतिनिधित्व किया। आठ सितंबर को जेठमलानी का 95 साल की उम्र में निधन हो गया था। 

भूदान आंदोलन से जुड़े रहे जगन्नाथ मिश्र

जगन्नाथ मिश्र का जिक्र करते हुए सभापति ने कहा कि आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुड़े रहे मिश्र अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे और उर्दू को बढ़ावा देने में उनका उल्लेखनीय योगदान था। मिश्र का 19 अगस्त को 82 साल की उम्र में निधन हो गया था। उच्च सदन में उन्होंने अप्रैल 1988 से दो बार बिहार का प्रतिनिधित्व किया था।

याद याए गुरदास दासगुप्ता और सुखदेव सिंह लिबरा

सभापति ने गुरदास दासगुप्ता और सुखदेव सिंह लिबरा का भी जिक्र किया। उन्‍होंने कहा कि गरीबों, दलितों और पिछड़े वर्गों की आवाज उठाने वाले इन नेताओं ने अपने अपने स्तर पर राजनीति में अमिट छाप छोड़ी।गुरदास दासगुप्ता का 31 अक्टूबर को 82 साल की उम्र में और लिबरा का छह सितंबर को 86 साल की उम्र में निधन हो गया था। लिबरा ने जुलाई 1988 से मई 2004 तक उच्च सदन में पंजाब का और दासगुप्ता ने मार्च 1985 से अप्रैल 2000 तक तीन बार पश्चिम बंगाल का प्रतिनिधित्व किया था। 

 पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रिया

सदन के नेता थावरचंद गहलोत ने कहा कि जेटली का निधन उनके लिए निजी क्षति है। वहीं सदन में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सदस्यों के साथ जेटली के मधुर रिश्ते सदन के गर्मागर्म माहौल में विभिन्न मुद्दों पर उपजी कड़वाहट को मिठास में बदल देते थे। आजाद ने कहा कि कुछ लोगों के जाने से केवल पार्टी को ही नहीं बल्कि पूरे देश को नुकसान होता है। जेठमलानी का जिक्र करते हुए आजाद ने कहा कि शायद जेठमलानी एकमात्र वकील और खिलाड़ी थे जो 90 साल से अधिक उम्र होने के बाद भी वकालत करते थे और जिंदादिली से खेलते थे।

राकांपा के शरद पवार ने कहा कि जिन नेताओं को आज मैं श्रद्धांजलि दे रहा हूं, उन सभी के साथ मुझे कभी न कभी काम करने का अवसर मिला था। इन नेताओं की अपनी अपनी विशेषता थी और अपने अपने स्तर पर इन नेताओं ने लोगों की सेवा की। शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि जेटली के निधन से उनकी पार्टी का भी गहरा नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि जेटली से हमने सीखा कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं। भाजपा के जेपी नड्डा ने जेटली को मृदुभाषी, ज्ञान का भंडार एवं विशाल व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि पार्टी की विचारधारा की स्वीकार्यता बढ़ाने में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।

उन्होंने कहा कि राम जेठमलानी की खासियत यह थी कि वह विरोधी वातावरण में भी अपनी बात पूरे तर्क के साथ रखते थे। कांग्रेस के आंनद शर्मा ने कहा ‘‘मृदुभाषी जेटली का स्वभाव ऐसा था कि वैचारिक मतभेद कभी मनभेद में नहीं बदले। दूसरों को साथ लेकर चलने की अरुण जेटली की क्षमता न होती तो सरकार के कई काम आसानी से नहीं होते। इसके बाद सदस्यों ने दिवंगत नेताओं के सम्मान में कुछ पलों का मौन रखा और 12 बज कर करीब 10 मिनट पर बैठक दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।

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