बर्दाश्त नहीं महाराष्ट्र में भाजपा का बड़प्पन

महाराष्ट्र में शिवसेना को भाजपा का बड़प्पन किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होगा, क्योंकि राज्य की राजनीति में बड़े भाई की भूमिका निभाने का चस्का स्वयं भाजपा ने गठबंधन की शुरुआत के समय उसे लगा दिया था। 11

By Edited By: Publish:Mon, 22 Sep 2014 09:47 AM (IST) Updated:Mon, 22 Sep 2014 10:51 AM (IST)
बर्दाश्त नहीं महाराष्ट्र में भाजपा का बड़प्पन

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र में शिवसेना को भाजपा का बड़प्पन किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होगा, क्योंकि राज्य की राजनीति में बड़े भाई की भूमिका निभाने का चस्का स्वयं भाजपा ने गठबंधन की शुरुआत के समय उसे लगा दिया था। 11989 में भाजपा ने लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन करते शिवसेना से गठबंधन करते समय तय किया था कि वह भाजपा दिल्ली की राजनीति में शिवसेना से सहयोग लेगी एवं भाजपा महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना को सहयोग करेगी।

इसी नीति के तहत तब लोकसभा के लिए भाजपा ने खुद 32 सीटें लेकर शिवसेना को 16 सीटें दीं और विधानसभा के लिए स्वयं 117 सीटें लेकर शिवसेना को 119 सीटें दीं। बीते 25 वर्षो में शिवसेना ने लोकसभा के लिए भाजपा के कोटे से उसकी छह ऐसी सीटें झटक ली हैं, जिनपर भाजपा के उम्मीदवार जीतते आए थे लेकिन राज्य की राजनीति में भाजपा को एक कदम भी आगे नहीं बढ़ने दिया। यह और बात है कि भाजपा हमेशा कम सीटों पर लड़कर शिवसेना के लगभग बराबर सीटें जीतती आई है।

भाजपा का नया नेतृत्व इस स्थिति में बदलाव चाहता है। वह शिवसेना से बराबरी की सीटें चाहता है ताकि विधानसभा चुनाव में अधिक सीटें जीतकर महाराष्ट्र जैसे महत्त्वपूर्ण राज्य का मुख्यमंत्री पद हासिल कर सके। मुख्यमंत्री पद शिवसेना किसी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती। यही शिवसेना की चिढ़ का मूल कारण है। इसी चिढ़ वश वह लोकसभा चुनाव के पहले से ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी पर तीखी टिप्पणियां करने से बाज नहीं आती थी।

ये टिप्पणियां मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी जारी रही हैं। भाजपा के केंद्रीय नेताओं द्वारा अब ठाकरे निवास मातोश्री जाने की उत्सुकता न दिखाना भी शिवसेना को खलता है। हाल के दिनों में भाजपा के नए अध्यक्ष अमित शाह की सभाओं में उनके द्वारा सिर्फ भाजपा को जिताने की अपील करना भी शिवसेना को रास नहीं आया। भाजपा के इस बदले रुख का जवाब शिवसेना उसकी बांहें मरोड़कर देना चाहती है। महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा को उसकी जगह दिखाने के लिए ही उद्धव ठाकरे ने भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेताओं के साथ बात करना लगभग बंद कर दिया है।

दो दिन पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं महाराष्ट्र चुनाव प्रभारी ओम माथुर से बात करने के लिए भी स्वयं आने के बजाय उन्होंने अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को भेजकर अपना बड़प्पन दिखाने की कोशिश की।

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