उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार चावल दिखाएगा नया रंग

धान की सरकारी खरीद में विफल रहने पर राज्य की सपा सरकार को किसानों की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

By Rajesh KumarEdited By: Publish:Tue, 06 Dec 2016 09:01 PM (IST) Updated:Wed, 07 Dec 2016 06:14 AM (IST)
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार चावल दिखाएगा नया रंग

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चावल अपना नया रंग दिखा सकता है। धान की हो रही धीमी सरकारी खरीद से राज्य के किसानों की दिक्कतें बढ़ गई हैं। सरकारी एजेंसियों की नाकामी का खामियाजा जहां किसान उठा रहे हैं, वहीं निजी खरीद करने वाली राइस मिलें औने-पौने भाव में धड़ल्ले से धान की खरीद कर रही हैं। किसानों की यह बेहाली आगामी विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ दल पर भारी पड़ सकती है।

धान की खेती और पैदावार के मामले में उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन यहां सरकारी खरीद नगण्य ही होती है। धान व गेहूं के मामले में उत्तर प्रदेश विकेंद्रीकृत खरीद वाला राज्य है। यहां कृषि उपज की खरीद की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है, जिसमें केंद्रीय एजेंसियां मदद करती हैं। लेकिन राज्य प्रशासन इस मामले में दूसरे विकेंद्रीकृत राज्यों के मुकाबले बहुत पीछे है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य गेहूं व चावल की खरीद में बहुत आगे हैं।

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उत्तर प्रदेश में धान खरीद का सीजन एक अक्टूबर से शुरू हो चुका है। राज्य के पश्चिमी क्षेत्रों में एक अक्टूबर और पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक नवंबर से खरीद शुरू होती है। अगले साल होने वाले राज्य विधान सभा चुनाव के मद्देनजर उप्र सरकार ने धान खरीद का लक्ष्य 50 लाख टन निर्धारित किया है। इन दावों को अमली जामा पहनाने के लिए कई और भी घोषणाएं की गई है, लेकिन खरीद की गति इतनी धीमी है कि अब तक मात्र पौने दो लाख टन धान की ही खरीद हो सकी है।

सरकारी खरीद पर नोट बंदी जैसे फैसले का कोई असर नहीं होना चाहिए, क्योंकि सरकारी भुगतान शत प्रतिशत ऑनलाइन ही होता है। वहीं दूसरी ओर निजी कंपनियां धड़ल्ले से किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रही हैं। सामान्य किस्म के धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य जहां 1470 रुपये प्रति क्विंटल है, वहीं फाइन ग्रेड के धान का समर्थन मूल्य 1510 रुपये क्विंटल है। इसके मुकाबले राइस मिलें एक हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से भी कम मूल्य पर खरीद कर रही हैं।

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राज्य में फरवरी में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। धान की सरकारी खरीद में विफल रहने पर राज्य की सपा सरकार को किसानों की नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़ सकता है। दूसरी तरफ केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम भी सुस्त पड़ी हुई है। केंद्र में सत्तारुढ़ होते ही राजग सरकार ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में उपज की शत प्रतिशत खरीद का वादा किया था।

इसी क्रम में पिछले साल केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने पूर्वी क्षेत्र में धान की सरकारी खरीद को प्रोत्साहित करने के लिए एक दर्जन प्राइवेट कंपनियों को खरीद दायित्व सौंपा था। इन कंपनियों को समर्थन मूल्य पर धान की खरीद करनी थी। लेकिन वह फार्मूला भी कारगर साबित नहीं हो पा रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव में धान और चावल राजनीतिक दलों के बीच चुनावी मुद्दा जरूर बनेगा।

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