अतिनिर्भरता बनाम आत्मनिर्भरता: राज्यों का कम हो रहा राजस्व, केंद्र से संसाधनों की साझेदारी भी घटी

राज्यों के राजस्व का मुख्य हिस्सा जीएसटी बिक्री कर और केंद्रीय करों में हिस्सेदारी से आता है। राज्यों के खुद के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा जीएसटी के साथ मिला दिया गया जिसे अब जीएसटी काउंसिल नियंत्रित करती है।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Mon, 15 Mar 2021 11:12 AM (IST) Updated:Mon, 15 Mar 2021 11:12 AM (IST)
अतिनिर्भरता बनाम आत्मनिर्भरता: राज्यों का कम हो रहा राजस्व, केंद्र से संसाधनों की साझेदारी भी घटी
राज्यों का राजस्व कम होने के साथ ही केंद्र से संसाधनों की साझेदारी भी घट रही है।

नई दिल्ली, जेएनएन। केंद्र पर राज्यों की अतिनिर्भरता उनकी आत्मनिर्भरता की राह की बड़ी बाधा बनी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन में हमारे राज्यों की वित्तीय स्थिति की स्याह तस्वीर सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि कर्ज के लेन-देन में इनकी कमजोरी क्या है, उनके खर्च की कमजोर होती गुणवत्ता क्यों है? किसानों को वित्तीय मदद और ऊर्जा क्षेत्र के बचाने के कदम कैसे उनके विपरीत जा रहे हैं। पेश है एक नजर:

घटता गया खुद का राजस्व

हाल के वर्षो में राज्यों का खुद का राजस्व कम होता गया। बिक्री कर से आने वाला उनका राजस्व तो कम हुआ ही, केंद्र से संसाधनों की साङोदारी भी घटी है। इससे वित्तीय साल की शुरुआत या मध्य तक उनका वास्तविक राजस्व अनुमान से काफी कम रहा।

केंद्र का सधा कदम

राज्यों के राजस्व का मुख्य हिस्सा जीएसटी, बिक्री कर और केंद्रीय करों में हिस्सेदारी से आता है। गैर टैक्स स्नोत जैसे लाभांश, ऊर्जा शुल्क, और केंद्र से मदद हैं। राज्यों के खुद के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा जीएसटी के साथ मिला दिया गया जिसे अब जीएसटी काउंसिल नियंत्रित करती है। ज्यादातर बिक्री कर से मिलाकर बने स्टेट जीएसटी में तेज वृद्धि हुई। 2019-20 में इसमें 11 फीसद की कमी दिखी। इससे आने वाला राजस्व जीएसटी काउंसिल के निर्णयों पर निर्भर करता है। शुरुआती दो सालों में दरों में बहुत कटौती का यह नतीजा था। बिक्री कर में धीमी वृद्धि हुई क्योंकि इस टैक्स में बड़ी हिस्सेदारी वाले पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स वृद्धि की राजनीतिक विवशता है। सेस और सरचार्ज पर धीरे-धीरे केंद्र की बढ़ती निर्भरता ने स्थिति को और बिगाड़ा। इस मद में आया राजस्व राज्यों से साझा नहीं किया जाता है।

बड़े राज्य भी तंगहाल

कई बड़े राज्य भी राजस्व घाटे की पीड़ा से त्रस्त हैं। सीधा सा आशय है कि उनके कर्ज का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक आवंटन की जगह अकुशल खर्चे की भेंट चढ़ जाता है। नतीजा यह होता है कि सामाजिक क्षेत्र के लिए राज्य का खर्च बढ़ जाता है। आरबीआइ का अध्ययन बताता है कि सामाजिक क्षेत्र पर राज्यों के खर्च का फोकस बदल रहा है। हाउसिंग और शहरी विकास की हिस्सेदारी स्वास्थ्य और शिक्षा खा जा रहे हैं जो आर्थिक विकास के लिए जाने जाते हैं। बढ़ते खर्च के मुकाबले यह राजस्व चूंकि अपर्याप्त साबित हो रहा है लिहाजा राज्य टैक्स के अपने स्नोतों में बदलाव कर रहे हैं।

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