श्रीलंका में भारत लगाएगा तेल भंडारण क्षमता, मोदी व विक्रमसिंघे के बीच बनी सहमति

विक्रमसिंघे और मोदी की मुलाकात को लेकर विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है।

By Manish NegiEdited By: Publish:Wed, 26 Apr 2017 04:17 PM (IST) Updated:Wed, 26 Apr 2017 08:03 PM (IST)
श्रीलंका में भारत लगाएगा तेल भंडारण क्षमता, मोदी व विक्रमसिंघे के बीच बनी सहमति
श्रीलंका में भारत लगाएगा तेल भंडारण क्षमता, मोदी व विक्रमसिंघे के बीच बनी सहमति

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। श्रीलंका ने भारत को अपने पश्चिमी तट पर कच्चे तेल का रिजर्व भंडार बनाने की अनुमति दे दी है। इसके लिए आज पीएम नरेंद्र मोदी और श्रीलंका के पीएम रानिल विक्रमसिंघे के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान सहमति बन गई है। इसके लिए व्यापक समझौता भारतीय प्रधानमंत्री की आगामी श्रीलंका यात्रा के दौरान होगी। जानकारों की नजर में हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौ सेना ताकत से चिंतित भारत की तरफ से अपनी ताकत बढ़ाने की दिशा में उठाया गया यह पहला कदम होगा।

विक्रमसिंघे और मोदी की मुलाकात को लेकर विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने ट्विट कर संक्षिप्त जानकारी दी है कि, ''भारत व श्रीलंका आर्थिक सहयोग बढ़ाने को तैयार हो गये हैं। दोनों देशों के बीच आर्थिक परियोजनाओं को लागू करने को लेकर समझौते भी हुए हैं।'' विदेश मंत्रालय की तरफ से बहुत ज्यादा जानकारी नहीं देने के पीछे वजह यह बताया जा रहा है कि पीएम मोदी दो हफ्ते बाद ही श्रीलंका की यात्रा पर जाएंगे जहां पर अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किये जाएंगे।

पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सरकारी तेल कंपनी इंडियन आयल कार्पोरेशन के माध्यम से भारत श्रीलंका के त्रिण्कोमाली बंदरगाह पर कच्चे तेल का एक बड़ा रणनीतिक भंडार बनाना चाहता है। इसमें एक साथ तकरीबन 80-100 बड़े टैंकर के बराबर कच्चे तेल की भंडारण की सुविधा होगी। इस पर 2300-2500 करोड़ रुपये की शुरुआती लागत होगी। जानकारों के मुताबिक भारत की मंशा सिर्फ तेल भंडारण व्यवस्था स्थापित करने की नहीं है बल्कि वह इसे एक रणनीतिक प्लानिंग के हिस्से के तौर पर देख रहा है। चीन की भावी चुनौती को देखते भारत हिंद महासागर में अपनी नौ सेना ताकत बढ़ाने की प्लानिंग में जुटा है। इसके लिए यह भंडारण व्यवस्था अहम साबित होगी।

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने त्रिंकोमली में पोर्ट के साथ ही तेल भंडार बनवाये थे लेकिन समय के साथ उनकी उपयोगिता जाती रही। पूर्व एनडीए सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2003 में इसके लिए भारत ने श्रीलंका के साथ बातचीत की थी लेकिन बाद में यूपीए सरकार ने इसे खास बढ़ावा नहीं दिया। यूपीए सरकार ने यहां तक कहा कि इसकी खास उपयोगिता नहीं है लेकिन इस बीच चीन ने श्रीलंका के एक अन्य हमबनतोला में न सिर्फ नया पोर्ट बना डाला बल्कि वहां एक आर्थिक क्षेत्र भी बना लिया है। इससे हिंद महासागर में चीन की ताकत काफी बढ़ गई है। बहरहाल, अब भारत ने हिंद महासागर में श्रीलंका के महत्व को पहचाना है।

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