पार्टी से निष्कासित होने के बाद भी राज्यसभा में सपा के नेता हैं रामगोपाल यादव!

सूत्रों के मुताबिक प्रोफेसर रामगोपाल यादव को राज्य सभा में पार्टी नेता के पद से फिलहाल हटाना आसान नहीं होगा।

By Atul GuptaEdited By: Publish:Wed, 16 Nov 2016 08:30 PM (IST) Updated:Wed, 16 Nov 2016 09:20 PM (IST)
पार्टी से निष्कासित होने के बाद भी राज्यसभा में सपा के नेता हैं रामगोपाल यादव!

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। समाजवादी पार्टी के भीतर मची रार की भेंट चढ़े प्रोफेसर रामगोपाल यादव भले ही पार्टी से निष्कासित कर दिये गये हों, लेकिन राज्यसभा में अभी भी वह पार्टी के नेता पद पर कायम हैं। सदन में उनका रुतबा बरकरार है। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन उन्होंने पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए नोट बंदी के मामले पर केंद्र सरकार को घेरा। उन्हें नेता पद से हटाये जाने का पार्टी का आधिकारिक पत्र अभी तक राज्यसभा सचिवालय को प्राप्त नहीं हुआ है।

समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बीच मचे घमासान में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की नाराजगी का नजला प्रोफेसर रामगोपाल यादव पर ही गिरा था। उन्हें पार्टी से निष्कासित करने की घोषणा कर दी गई थी। लेकिन अपने निष्कासन के बारे में इसी सप्ताह इटावा में उन्होंने स्पष्ट कहा था 'वह पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं, उनके खिलाफ किसी भी तरह की कार्यवाही सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष ही कर सकते हैं।' जबकि पार्टी से उन्हें निकालने का ऐलान उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने किया था। हालांकि इस बारे में संसद परिसर में प्रोफेसर ने कहा 'वह इस पर कुछ नहीं बोलेंगे। जो भी फैसला लेना होगा वह नेताजी लेंगे।'

सूत्रों के मुताबिक प्रोफेसर रामगोपाल यादव को राज्य सभा में पार्टी नेता के पद से फिलहाल हटाना आसान नहीं होगा। सदन में सपा का कोई उपनेता नहीं है, जो नेता को हटाने की कार्यवाही को आगे बढ़ा सके। इसके अलावा अन्य तकनीकी कारण भी हैं, जो प्रोफेसर यादव को नेता पद से हटाने और उनकी सदस्यता को खत्म करने की राह में अड़चन बने हुए हैं। दूसरा मसला यह है कि राज्यसभा में सपा सदस्यों का एक बड़ा धड़ा प्रोफेसर रामगोपाल यादव के समर्थकों का है।

राज्यसभा में नेता पद को लेकर समाजवादी पार्टी में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी। सियासी गलियारे में तरह-तरह की चर्चाएं हैं। माना जा रहा था कि इसके लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से राज्यसभा सचिवालय को पत्र भेजा जायेगा। लेकिन इसके पीछे तकनीकी वजहें भी इस मसले को प्रभावित कर रहा है। सदन में प्रोफेसर के समर्थक सदस्यों की संख्या अधिक है।

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