सवाल बिजली का नहीं, इसकी कीमतों का भी है

सूबे में बिजली पर हमेशा से सियासत होती रही है और पिछले विधानसभा चुनाव में तो इस मुद्दे के सहारे अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता तक पहुंच गए थे। अब एक बार फिर से वह दिल्लीवासियों से सस्ती बिजली देने का लुभावना वादा कर रहे हैं तो महंगी बिजली के

By Sanjay BhardwajEdited By: Publish:Fri, 16 Jan 2015 09:02 AM (IST) Updated:Fri, 16 Jan 2015 09:26 AM (IST)
सवाल बिजली का नहीं, इसकी कीमतों का भी है

नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। सूबे में बिजली पर हमेशा से सियासत होती रही है और पिछले विधानसभा चुनाव में तो इस मुद्दे के सहारे अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता तक पहुंच गए थे। अब एक बार फिर से वह दिल्लीवासियों से सस्ती बिजली देने का लुभावना वादा कर रहे हैं तो महंगी बिजली के लिए भाजपा व कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर भाजपा सब्सिडी के बजाय बिजली खरीद मूल्य कम कर उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देने तथा अन्य विकल्पों से बिजली बिल में कमी लाने की बात कर रही है। इसमें दस रुपये में एलईडी बल्ब देने और उपभोक्ताओं के पास बिजली कंपनी बदलने का विकल्प उपलब्ध कराना शामिल है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रामलीला मैदान की रैली में इन योजनाओं का एलान किया है। वहीं, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय द्वारा दिल्ली में सस्ती और 24 घंटे बिजली आपूर्ति करने के लिए 7791 करोड़ रुपये निवेश करने की योजना है।

दरअसल, दिल्ली में बिजली पर सियासत तो होती रही है, लेकिन साल दर साल बिजली की मांग जिस तरह से बढ़ रही है, उस हिसाब से बिजली आपूर्ति के लिए ढांचागत सुधार नहीं हुआहै और सभी पार्टियों का जोर सियासी लाभ के लिए सब्सिडी से बिजली बिलों में कुछ कमी करने पर रहा है। इससे स्थिति बिगड़ती चली गई है।

एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2017 तक राजधानी में बिजली की मांग 7500 मेगावाट तक पहुंच जाएगी। अब जरूरत सस्ती और बिना किसी परेशानी के 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने के लिए इस मुद्दे पर सियासत के बजाय व्यवस्थागत कमियों को दूर करना जरूरी है। ट्रांसमिशन व डिस्टिब्यूशन व्यवस्था में सुधार के साथ ही निजी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को जवाबदेह बनाने के लिए दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डीईआरसी) को भी राजनीतिक दबाव से बाहर निकलकर फैसले लेने होंगे।

बिजली की लाइनों, ग्रिड स्टेशनों, ट्रांसफार्मर व अन्य उपकरणों की क्षमता बढ़ाने के लिए काम होना चाहिए। इस दिशा में जो भी योजनाएं लंबित हैं, उन्हें प्राथमिकता के तहत हल करने के साथ ही इस मद में और राशि निवेश करने की जरूरत है।

निजीकरण से दूर नहीं हुई समस्या

दिल्ली में बिजली संकट दूर करने के नाम पर वर्ष 2002 में बिजली वितरण का काम निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है। वहीं, दिल्ली सरकार की कंपनी दिल्ली ट्रांसको लिमिटेड (डीटीएल) का काम बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों (डिस्कॉम) के ग्रिड तक बिजली पहुंचाना है।

इसके लिए बिछाई गई ट्रांसमिशन लाइनों का ठीक ढंग से रखरखाव नहीं हो रहा है। इसी तरह से ट्रांसको के 220 केवी तथा 400 केवी के ग्रिड को भी अपग्रेड करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है तथा आधा दर्जन से ज्यादा ग्रिड स्टेशनों का काम पूरा नहीं हुआ है। कंपनियां मुनाफा के लिए उपभोक्ताओं का बिजली लोड तो बढ़ा देती हैं, लेकिन उस अनुपात में संबंधित क्षेत्र के ट्रांसफार्मर क्षमता नहीं बढ़ाती हैं। डिस्टिब्यूशन लाइनों को भी अपग्रेड नहीं किया जाता है।

कमी को करना होगा दूर

दिल्ली बिजली के मामले में केंद्रीय संयंत्रों तथा दूसरे राज्यों पर निर्भर है। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली को कोयला उपलब्धता वाले राज्यों के साथ करार कर वहां थर्मल पावर स्टेशन की स्थापना करनी चाहिए। इसके साथ ही पनबिजली तथा सौर ऊर्जा व अन्य विकल्पों पर ध्यान देने की जरूरत है।

हालांकि राजधानी में बिजली की कमी दूर करने के लिए अगले एक साल में 100 मेगावाट तथा पांच वर्षो में 500 मेगावाट सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए सरकारी कार्यालयों के साथ-साथ निजी इमारतों की छतों का भी प्रयोग करने की योजना है। आम उपभोक्ता सौर ऊर्जा का लाभ उठाते हुए बिजली का उत्पादन कर उसे बेच भी सकेंगे।

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