भारत में हर साल एक लाख से अधिक लोग करते हैं आत्महत्या

नई दिल्ली ([एजेंसी)]। भारत में हर साल करीब एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं। एक सरकारी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में आत्महत्या की घटनाओं में 21.6 फीसद का इजाफा हुआ है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया, 2013 इस हफ्ते जारी की गई है। वर्ष 2003 में जहां एक लाख 10 हजार

By Edited By: Publish:Thu, 03 Jul 2014 08:30 PM (IST) Updated:Thu, 03 Jul 2014 08:38 PM (IST)
भारत में हर साल एक लाख से अधिक लोग करते हैं आत्महत्या

नई दिल्ली। भारत में हर साल करीब एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं। एक सरकारी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में आत्महत्या की घटनाओं में 21.6 फीसद का इजाफा हुआ है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट क्राइम इन इंडिया, 2013 इस हफ्ते जारी की गई है। वर्ष 2003 में जहां एक लाख 10 हजार 851 लोगों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2013 में आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़कर एक लाख 34 हजार 799 पहुंच गई।

2011 के बाद आई कमी

रिपोर्ट से पता चलता है देश में आत्महत्या करने वालों की संख्या में 2011के बाद कमी दर्ज की गई। पिछले एक दशक के दौरान देश की आबादी में 15 फीसद का इजाफा हुआ है, वहीं, आत्महत्या करने वालों की संख्या वर्ष 2003 से 2013 तक 5.7 फीसद बढ़ी है।

महाराष्ट्र में सर्वाधिक

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 में सबसे अधिक आत्महत्या की घटनाएं महाराष्ट्र में दर्ज की गई। यहां 16 हजार 622 लोगों ने इस अवधि में अपनी जान दी। इसके बाद तमिलनाडु का नंबर आता है, जहां 16 हजार 601 लोगों ने आत्महत्या की। आत्महत्या के कुल मामलों में दोनों राज्यों में हर एक में 12.3 फीसद घटनाएं दर्ज की गई।

इसके बाद आंध्र प्रदेश में 14 हजार 607, पश्चिम बंगाल में 13 हजार 55 और कर्नाटक में 11 हजार 266 मामले दर्ज किए गए। देश में दर्ज किए गए कुल मामलों में इन राज्यों में क्रमश: 10.8 फीसद, 9.7 फीसद, 8.4 फीसद आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। आत्महत्या के कुल मामलों का 53.5 फीसद हिस्सा अकेले इन पांच राज्यों से है। बाकी 46.5 फीसद आत्महत्या के मामले देश के बाकी 23 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में दर्ज किए गए।

शहरों में चेन्नई शीर्ष पर

देश के 53 बड़े शहरों की बात की जाए, तो सर्वाधिक आत्महत्या के केस चेन्नई में दर्ज किए गए। यहां वर्ष 2013 में 2,450 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद बेंगलुरू में 2,033, दिल्ली में 1,733 और मुंबई में 1,322 मामले प्रकाश में आए। देश के 53 बड़े शहरों में आत्महत्या के कुल मामलों का 35 हिस्सा अकेले इन चार महानगरों में ही दर्ज किया गया।

पारिवारिक कलह और बीमारी मुख्य कारण

रिपोर्ट में इन घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण पारिवारिक विवाद और बीमारी को जिम्मेदार ठहराया गया है। इन दो कारणों के चलते क्रमश: 24 फीसद और 19.6 फीसद लोगों ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली। बेरोजगारी, ऋण और ड्रग्स के उपयोग अन्य कारण हैं, जिसके चलते लोग अपनी जान दे देते हैं।

पुरुषों की संख्या बढ़ी

रिपोर्ट से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले विवाहित पुरुषों की संख्या दोगुने से अधिक बढ़ी है। साल 2012 में जहां 29 हजार 491 लोगों ने खुद मौत को गले लगा लिया था। वहीं 2013 में यह आंकड़ा बढ़कर 64 हजार 98 पहुंच गया। इसका मुख्य कारण पारिवारिक तनाव का बढ़ना है। चाइल्ड राइट इनीशिएटिव फॉर शेयर्ड पैरेंटिंग ([क्रिस्प)] के अध्यक्ष कुमार वी जागीरदार ने बताया कि शादीशुदा पुरुषों ने मुख्यतौर पर आईपीसी की धारा 498 ([ए)] ([विवाहित महिला पर अत्याचार)] के दुपयोग और घरेलू हिंसा कानून 2005 के कारण अपनी जान दी। जागीरदार ने कहा कि हम मांग करते हैं कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग का गठन किया जाए।

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