राष्ट्रपति चाहें तो भंग कर सकते हैं दिल्ली विधानसभा

सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी स्थिति साफ करते हुए कहा है कि राष्ट्रपति अगर चाहें तो दिल्ली में विधानसभा भंग कर नए सिरे से चुनाव करा सकते हैं। उनके ऐसा करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि वे इस बारे में सिर्फ कानूनी स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं, कोई आदेश नहीं दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुव

By Edited By: Publish:Fri, 18 Apr 2014 02:05 AM (IST) Updated:Fri, 18 Apr 2014 08:57 AM (IST)
राष्ट्रपति चाहें तो भंग कर सकते हैं दिल्ली विधानसभा

नई दिल्ली, जाब्यू। सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी स्थिति साफ करते हुए कहा है कि राष्ट्रपति अगर चाहें तो दिल्ली में विधानसभा भंग कर नए सिरे से चुनाव करा सकते हैं। उनके ऐसा करने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। हालांकि कोर्ट ने साफ किया कि वे इस बारे में सिर्फ कानूनी स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं, कोई आदेश नहीं दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ये बात दिल्ली में राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही।

न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दिल्ली में गत 16 फरवरी को लगाए गए राष्ट्रपति शासन को समाप्त करने के बारे में यदि राष्ट्रपति चाहें तो परिस्थितियों के मुताबिक निर्णय ले सकते हैं। उनके ऐसा करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है। राष्ट्रपति शासन समाप्त करने के बारे में चर्चा तब शुरू हुई जब कहा गया कि राष्ट्रपति शासन को सदन के दोनों सदनों से मंजूरी मिली है और अब संसद नहीं है। ऐसे में क्या राष्ट्रपति विधानसभा भंग करने राष्ट्रपति शासन हटाने और नए सिरे से चुनाव कराने के बारे में निर्णय ले सकते हैं? पीठ ने इस पर केंद्र सरकार के एडिशनल सॉलिसीटर जनरल व अन्य वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद कानूनी स्थिति साफ की। हालांकि कोर्ट ने वर्तमान मामले में कानूनी पहलुओं पर विचार करने के मामले की सुनवाई पांच मई तक टाल दी।

इससे पहले आप की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि भाजपा और कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दिया है लेकिन उन्होंने सरकार बनाने के बारे में स्थिति साफ नहीं की है। उन्होंने मांग की कि भाजपा से उसकी मंशा पूछी जाए कि वह सरकार बनाना चाहती है कि नहीं? यह भी कहा कि शीर्ष अदालत उप राज्यपाल नजीब जंग से सरकार बनाने के बारे में पूछ सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कोई भी आदेश देने से मना कर दिया। पीठ ने कहा कि वे राजनीतिक पहलू पर विचार नहीं करेंगे। सिर्फ संवैधानिक और कानूनी पहलू पर ही विचार करेंगे। उधर, भाजपा की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि यह मसला उप राज्यपाल पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए। मामले में बहस के दौरान कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि उप राज्यपाल चाहें तो विधानसभा भंग कर नए चुनाव करा सकते हैं। उन्हें इसके लिए एक साल तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। हालांकि कोर्ट ने इस बारे में कोई आदेश पारित नहीं किया।

पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट के रोक के बाद भी स्कूलों में हो रही नर्सरी की पढ़ाई

chat bot
आपका साथी