मालेगांव धमाके में एनआइए ने साध्वी प्रज्ञा को दी क्लीनचिट

मालेगांव धमाके के सिलसिले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को राहत मिल गई है। एनआइए ने अदालत में दाखिल चार्जशीट में मकोका हटाने का फैसला किया है।

By Lalit RaiEdited By: Publish:Fri, 13 May 2016 12:04 PM (IST) Updated:Fri, 13 May 2016 07:40 PM (IST)
मालेगांव धमाके में एनआइए ने साध्वी प्रज्ञा को दी क्लीनचिट

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने मालेगांव धमाके में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को क्लीन चिट दे दी है। शुक्रवार को दाखिल पूरक आरोपपत्र में एनआइए ने कहा कि उसके पास साध्वी और अन्य पांच आरोपियों के धमाके में शामिल होने के सबूत नहीं हैैं। इससे पिछले साढ़े सात साल से जेल में बंद साध्वी के बाहर निकलने का रास्ता साफ हो गया है। वहीं कर्नल पुरोहित समेत नौ अन्य आरोपियों के खिलाफ एजेंसी ने पुख्ता सबूत होने का दावा किया है। वैसे इन आरोपियों के खिलाफ भी अब मकोका के तहत केस नहीं चलेगा। एनआइए ने मुंबई एटीएस पर साजिश के तहत मकोका लगाने का आरोप लगाया है।

दरअसल प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आरोपी बनाने और क्लीन चिट मिलने में मकोका की केंद्रीय भूमिका रही है। मकोका कानून के तहत किसी आरोपी के एसपी या उससे ऊपर स्तर के अधिकारी के सामने दिए बयान को सबूत माना जाता है। कुछ आरोपियों ने अपने ऐसे बयान में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर व अन्य के साजिश में शामिल होने की बात कही थी। लेकिन मकोका खत्म होने के बाद पुलिस अधिकारी के सामने दिए इन बयानों की अहमियत खत्म हो गई और साध्वी व अन्य पांच लोगों को स्वाभाविक तौर पर क्लीन चिट मिल गई।

अपनी चार्जशीट में एनआइए ने मकोका के पीछे एटीएस मुंबई की पूरी साजिश का पर्दाफाश कर दिया है। दरअसल मकोका तभी लगाया जा सकता है, जब आरोपी किसी दूसरे केस में भी शामिल पाए जाते हैैं। मालेगांव धमाके में मकोका राकेश धवाडे नाम के एक आरोपी के आधार पर लगाया गया था। इसके लिए राकेश धवाड़े पर जलना और परभानी दो अन्य धमाकों में शामिल होने की बात कही गई थी। लेकिन जांच से पता चला कि धवाडे की गिरफ्तारी के बाद एटीएस ने खुद बताया कि पूछताछ में वह इन धमाकों में शामिल होने की बात कह रहा है। यही नहीं, इन दोनों धमाकों में उसकी गिरफ्तारी दिखाकर एक दिन के भीतर उसके खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई। जबकि इन दोनों धमाकों के किसी आरोपी ने धवाडे के शामिल होने की बात नहीं की है। एटीएस मुंबई किस तरह से आरोपियों से बयान दर्ज किया था, इसका उदाहरण सुधाकर द्विवेदी है। सुधाकर द्विवेदी को जब अदालत के सामने पेश किया गया, तो उसने साफ कहा कि उससे प्रताडि़त कर ये बयान दिलवाए गये थे। ऐसे में इन बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए धमाके में सात लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हुए थे। बाद में इसकी जांच एटीएस मुंबई को सौंप दी गई थी। मुंबई धमाके में मारे गए मुंबई पुलिस के संयुक्त आयुक्त हेमंत करकरे की टीम ने इसकी जांच की थी। एटीएस ने शुरू में 16 लोगों को गिरफ्तार किया था, लेकिन 2009 और 2011 में केवल 14 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। लेकिन साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मकोका हटाने के लिए कई अर्जियां लगाई। बाद में 2011 में ही केस की जांच एनआइए को सौंप दी गई।

एनआइए के महानिदेशक शरद कुमार ने कहा कि चार्जशीट गहन जांच और ठोस सबूतों पर आधारित है और केस को कहीं से कमजोर नहीं होने दिया गया है। उन्होंने कहा कि जबतक उनकी जांच पूरी नहीं हो गई थी, एजेंसी ने साध्वी व अन्य आरोपियों की जमानत याचिका जमकर विरोध किया था। जिन लोगों को एनआइए ने क्लीन चिट दी है, उनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ-साथ शिव नारायण कलसांगरा, श्याम भवरलाल साहू, प्रवीण टक्काल्की, लोकेश शर्मा और धन सिंह चौधरी शामिल हैैं।

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