कुछ पार्टियों के लिए अपनी साख को बनाए रखने की कोशिश हैं ये विधानसभा चुनाव

आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह चुनाव क्‍या संकेत देगा यह तो वक्‍त ही बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि यह विधानसभा चुनाव कुछ पार्टियों के लिए अपना वजूद बचाने की कोशिश भर होंगे।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Tue, 11 Dec 2018 10:18 AM (IST) Updated:Tue, 11 Dec 2018 10:18 AM (IST)
कुछ पार्टियों के लिए अपनी साख को बनाए रखने की कोशिश हैं ये विधानसभा चुनाव
कुछ पार्टियों के लिए अपनी साख को बनाए रखने की कोशिश हैं ये विधानसभा चुनाव

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। पांच राज्‍यों में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम मंगलवार शाम तक हासिल हो जाएगा। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह चुनाव क्‍या संकेत देगा यह तो वक्‍त ही बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि यह चुनाव कुछ पार्टियों के लिए अपना वजूद बचाने की कोशिश भर होंगे।

इन राज्‍यों पर है खास नजर
इन पांच राज्‍यों में जिस पर भाजपा और कांग्रेस की नजर टिकी है उन दो राज्‍यों में राजस्‍थान और छत्तीसगढ़ है। इन दोनों ही जगहों पर भाजपा की लंबे समय से सरकार है। छत्तीसगढ़ की ही यदि बात करें तो वहां पर लगभग हर बार इन दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्‍कर देखने को मिली है, लेकिन इसके बावजूद सत्‍ता तक पहुंचने में भाजपा ही आगे रही है। कांग्रेस का पूरा जोर इस बार वहां पर भाजपा को पछाड़ने पर लगा है। यहां पर रमन सिंह लगातार तीन बार से मुख्‍यमंत्री हैं।

मामा को सत्ता से बाहर करने का सपना
इसके अलावा यदि मध्‍यप्रदेश की बात की जाए तो वहां पर मामा के नाम से मशहूर शिवराज को सत्ता से हटाने का सपना पिछले तीन बार से संजोए हुए है। लेकिन हर बार कांग्रेस पर मामा भारी पड़े हैं। इन दोनों राज्‍यों में सबसे मजेदार बात ये रही है कि कांग्रेस दोनों ही जगहों पर कथित सत्‍ता विरोधी लहर (anti incumbency) को भी भुनाने में नाकाम रही है। रमन सिंह की तरह ही मध्‍य प्रदेश में शिवराज लगातार तीन बार से सीएम हैं। ऐसे में यदि यह दोनों अपनी सत्‍ता को बचाने में सफल हो जाते हैं जाहिरतौर पर इन दोनों का ही भारतीय राजनीति में काफी बढ़ जाएगा।

बसपा की वजूद बचाने की कोशिश
वहीं दूसरी तरफ यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस इन राज्‍यों में और कमजोर हो जाएगी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस काफी कोशिशों के बाद भी अजीत सिंह की जनता कांग्रेस से गठजोड़ नहीं कर सकी, जबकि इसमें बसपा बाजी मार ले गई। यहां पर बसपा ने कुल 90 सीटों में से 35 पर जबकि 55 सीटों पर जनता कांग्रेस के उम्‍मीदवारों ने अपनी किस्‍मत आजमाई है। बसपा के इस तरह रुख करने की दो बड़ी वजह हैं। सबसे पहली वजह यहां का आदिवासी समुदाय और दूसरा अपनी साख को बचाए रखने के साथ-साथ अपने वजूद को भी बनाए रखना है। आपको बता दें कि यूपी में बीते विधानसभा चुनाव में उसको जबरदस्‍त गिरावट का सामना करना पड़ा था और वह 80 से खिसककर 19 पर पहुंच गई थी।

बसपा की पतली हालत
इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में तो वह अपना यहां पर खाका भी नहीं खोल पाई थी। ऐसे में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर यदि देखें तो उसका वजूद खतरे में है जिसको बचाने के लिए उसने छत्‍तीसगढ़ का रुख किया है, जबकि बीते वर्षों में उसका यहां पर वजूद तक नहीं है। बीते चुनाव की बात करें तो यहां पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही रहा है। राजस्‍थान की बात करें तो वहां पर भी बसपा का हाल ऐसा ही रहा है। बीते विधानसभा चुनाव में उसने 195 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारे थे लेकिन जीतकर विधानसभा में पहुंचने वालों के उसके महज तीन ही उम्‍मीदवार थे।

क्‍या होगा आगे
बीते कुछ वर्षों में एक तरफ जहां कांग्रेस शासित राज्‍यों की संख्‍या कम हुई है वहीं कुछ दूसरी पार्टियां तो लगभग साफ होने के मुहाने पर खड़ी हैं। इसमें बहुजन समाजवादी पार्टी ही नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी भी शामिल है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यह दोनों पार्टियों अपने सबसे मजबूत गढ़ कहे जाने वाले राज्‍य उत्तर प्रदेश में ही काफी कुछ कमजोर हो चली हैं। ऐसे में यह पार्टियां लगातार अपने वजूद को बचाए रखने की कोशिशों में जुटी हैं। मौजूदा विधानसभा चुनाव इसकी ही एक लड़ाई है।

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