इनसे सीखें: नौकरी का मोह त्याग स्वच्छता दूत बनीं संध्या

स्वच्छता को लेकर संध्या का कहना है कि यह सबसे ज्यादा पुनीत कार्य है। यदि यह छोटा काम होता तो गांधीजी से लेकर हमारे पीएम मोदी तक, सभी स्वच्छता अभियान नहीं चलाते।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 10 Jul 2018 10:06 AM (IST) Updated:Tue, 10 Jul 2018 10:06 AM (IST)
इनसे सीखें: नौकरी का मोह त्याग स्वच्छता दूत बनीं संध्या
इनसे सीखें: नौकरी का मोह त्याग स्वच्छता दूत बनीं संध्या

बिलासपुर [मधु शर्मा]। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से लगी नगर पंचायत सकरी निवासी संध्या बग्गा कॉमर्स में ग्रेजुएट है। शहर जाकर नौकरी कर सकती थीं। सभी रास्ते खुले हुए थे। प्राइवेट जॉब के बेहतर विकल्प मौजूद थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता से जुड़े विचारों का ऐसा असर हुआ कि संध्या ने स्वच्छता दूत बनना पसंद किया। स्वसहायता समूह से जुड़ गांव की सफाई का जिम्मा संभाल रही हैं।

24 साल की संध्या गांव में ही सफाईकर्मी का काम बखूबी पूरा कर रही हैं। स्वसहायता समूह की ओर से महीने के पांच हजार रुपये ही मिलते हैं, लेकिन वह इससे अधिक अपने काम से संतुष्ट हैं। संध्या ने घर-घर से कचरा उठाकर अपने गांव को स्वच्छ रखने का बीड़ा उठाया है। रिक्शे पर कचरा ढोती हैं। पहली बार रिक्शा चलाया तो जख्मी भी हुई, लोगों ने मजाक भी खूब उड़ाया, लेकिन पीएम मोदी से प्रेरित संध्या ने किसी बात की परवाह नहीं की।

संध्या का कहना है कि कुछ अलग करने और परिवार की जिम्मेदारियों में पिता का हाथ बंटाने की चाह मन में हमेशा से थी। शहर में प्राइवेट जॉब के भी ऑफर थे, लेकिन गांव में रहकर कुछ सार्थक करने का मन बनाया। स्वसहायता समूह मणिकांचन केंद्र की संतोषी दीदी संपर्क में थी। उन्होंने इस सार्थक काम की राह दिखाई। पहली बार रिक्शा थामा तो मन में थोड़ा संकोच था, लेकिन धीरे-धीरे लोगों का सहयोग मिलता गया तो इरादा और भी पक्का हो गया। संध्या पिछले छह महीने से इस काम को अंजाम दे रही हैं।

संध्या बताती हैं कि शुरू में समाज और परिवार के ताने मिले। सभी ने कहा कि पढ़ीलिखी हो, क्या इसके अलावा कोई और ढंग का काम नहीं मिला। कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि ऐसे में कौन तुम्हें अपने घर की बहू बनाना चाहेगा। तानों की परवाह किए बिना इस कार्य को कर रहीं संध्या कहती हैं, काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। सिर्फ सोच बड़ी-छोटी होती है। पहले पिता की नाराजगी थी। वे सामाजिक व लोक मर्यादा के डर से इस काम के पक्ष में नहीं थे, लेकिन मेहनत और हौसला देखकर वे भी बिटिया के पक्ष में आ खड़े हुए।

स्वच्छता को लेकर संध्या का कहना है कि यह सबसे ज्यादा पुनीत कार्य है। यदि यह छोटा काम होता तो गांधीजी से लेकर हमारे पीएम मोदी तक, सभी स्वच्छता अभियान नहीं चलाते। स्वच्छता ने ही हमें स्मार्ट शहरों की सूची में स्थान दिलाया। इस वजह से जीवनभर स्वच्छता प्रहरी बनकर ही काम करती रहूंगी। वह शाम को गांव में चौपाल लगाकर महिलाओं को सफाई के प्रति जागरूक भी करती हैं। 

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