बस्तर के जंगलों में चप्पे-चप्पे पर बारूदी सुरंगें, सबसे ज्यादा सुकमा में जान का खतरा

बारूदी सुरंगों से बचने के लिए फोर्स के जवान वाहनों का इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन पैदल या बाइक पर चलना भी सुरक्षित नहीं है।

By Arti YadavEdited By: Publish:Sat, 17 Mar 2018 10:22 AM (IST) Updated:Sat, 17 Mar 2018 10:22 AM (IST)
बस्तर के जंगलों में चप्पे-चप्पे पर बारूदी सुरंगें, सबसे ज्यादा सुकमा में जान का खतरा
बस्तर के जंगलों में चप्पे-चप्पे पर बारूदी सुरंगें, सबसे ज्यादा सुकमा में जान का खतरा

रायपुर, (नईदुनिया/राज्य ब्यूरो)। बस्तर के जंगलों में चप्पे-चप्पे पर बारूदी सुरंगें बिछी हैं। इनका कोई तोड़ सुरक्षाबलों के पास नहीं है। मेटल डिटेक्टर जमीन में ज्यादा गहराई तक काम नहीं करता। स्निफर डॉग भी गहराई में दबी बारूद को सूंघ नहीं पा रहे हैं। मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए नक्सली इन दिनों प्लास्टिक के कंटेनर और शराब की बोतलों का उपयोग बम बनाने में कर रहे हैं। बारूदी सुरंगों से बचने के लिए फोर्स के जवान वाहनों का इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन पैदल या बाइक पर चलना भी सुरक्षित नहीं है।

पैदल चल रही फोर्स को फंसाने के लिए नक्सलियों ने जगह-जगह प्रेशर बम लगा रखे हैं। पैदल और बाइक पर चल रही गश्ती टीम को भी बारूदी धमाके में उड़ाने की घटनाएं हो रही हैं। इससे भले ही पूरी टीम चपेट में नहीं आती लेकिन एक-दो जवान तो चपेट में आते ही हैं। बस्तर के नक्सल प्रभावित सभी सातों जिलों में बारूदी सुरंगों के धमाके हो चुके हैं। सबसे ज्यादा खतरा सुकमा जिले में है। तीन महीने में 17 बारूदी सुरंगे बरामद सीआरपीएफ के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन महीने में बस्तर में फोर्स ने 17 बारूदी सुरंगें बरामद की हैं। इनमें से 8 सुकमा जिले के जंगलों से मिली हैं।

वर्ष 2017-18 में 6 अप्रैल 2017 तक सीआरपीएफ ने कुल 459 किलो बारूद बरामद किया। अफसरों के अनुसार इतना बारूद किसी बड़ी सेना को उड़ाने के लिए काफी है। छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ की सबसे ज्यादा 259 कंपनियां तैनात हैं।

कहां कितने जिले नक्सल प्रभावित

देश में कुल 106 जिले हैं जिनमें  22 जिले बिहार में 21 जिले झारखंड में 19 जिले ओडिशा में 16 जिले छत्तीसगढ़ में 8 जिले आंध्रप्रदेश में 8 जिले तेलंगाना में 4 जिले प बंगाल में 3 जिले उप्र में 1 जिला मप्र में है

सबसे ज्यादा नक्सल घटनाएं छत्तीसगढ़ में

2017 के पहले छह महीनों में छत्तीसगढ़ 15 नक्सल घटनाएं हुई जिनमें 38 सीआरपीएफ जवानों को शहादत देनी पड़ी। इस दौरान आंध्रप्रदेश में एक, बिहार में 3, झारखंड में 4, महाराष्ट्र में 8 और ओड़िशा में एक घटना दर्ज किया गया है।

मप्र के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले के लिए यह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। 5 साल पहले नक्सलियों ने वाहन जलाकर जिस सड़क का निर्माण कार्य बंद करा दिया था, उसे 25 जवानों ने सुरक्षा देकर तीन महीने में बनवा दिया। संभवत: प्रदेश की यह पहली सड़क होगी, जिसे 25 जवानों ने रात दिन बंदूक के साए में 3 महीने में पूरा कराया हो। इस सड़क से 100 से अधिक गांवों के लोग जुड़े हैं।

जनवरी 2010 में बिरसा के पाथरी-राशिमेटा 15.25 किमी सड़क मंजूर हुई थी। इस सड़क का निर्माण 467.40 लाख रुपये की लागत से होना था।

यहां मजदूर के पैर में ठोक दी थी कील

बिरसा थाना क्षेत्र में करीब 13 किमी लंबाई की चार करोड़ की लागत से सड़क निर्माण चल रहा था। मलाजखंड व तांडा दलम के नक्सलियों ने 2 जून 2010 को एक जेसीबी मशीन, एक एलएनटी मशीन, एक एमएस-70 मशीन, एक पिकअप वाहन, चार ट्रैक्टर, चार मोटर साइकिल आग के हवाले की थी। 17 मार्च 2012 में यहां नक्सलियों ने अडोरी, कोरका सड़क निर्माण में काम करने वाले एक मजदूर के पैर में कील ठोक दी थी। इसके बाद से काम बंद है।

2 जुलाई 2008 में लांजी थाना टेमनी में करीब 12 करोड़ की लागत से प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में 22 किमी की सड़क को बनने की शुरआत हुई, लेकिन नक्सलियों के डर से काम बंद है।  23 अप्रैल 2012 को हट्टा थाना क्षेत्र के कोठिया टोला में नक्सलियों ने कसंगी सड़क निर्माण के दौरान उपयोग की जा रही पोकलेन मशीन को आग के हवाले किया था।

बालाघाट के नक्सल सेल प्रभारी संदेश जैन का कहना है कि बालाघाट में नक्सली समस्या की वजह से जंगल में ज्यादातर विकास के कार्य पूरे नहीं हो पाए थे। जिन्हें पूरा कराने के लिए निर्माण एजेंसी और ठेकेदार कतराते थे। इन्हें पूरा कराने के लिए सुरक्षा मुहैया कराकर काम कराया गया है। पाथरी-राशिमेटा सड़क बनने से 100 से अधिक गांवों की आबादी को राहत मिलेगी।

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