सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री खिलाफ थीं ये अकेली जज

जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के फैसले पर असहमति जताई।

By Manish NegiEdited By: Publish:Fri, 28 Sep 2018 12:00 PM (IST) Updated:Fri, 28 Sep 2018 12:31 PM (IST)
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री खिलाफ थीं ये अकेली जज
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री खिलाफ थीं ये अकेली जज

नई दिल्ली, जेएनएन। केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला देते हुए सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी। हालांकि, इस मामले में जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अपने साथी चारों जजों से अलग फैसला दिया। उन्होंने करीब 800 साल पुराने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के फैसले पर असहमति जताई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस आर नरीमन ने एक राय में महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया। जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा की राय बाकि जजों से अलग थी।

क्या था जस्टिस इंदु मल्होत्रा का फैसला
जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अपने फैसले में कहा कि धर्मिक मुद्दों में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। अगर किसी को धार्मिक प्रथा में भरोसा है तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए। ये प्रथाएं संविधान से संरक्षित हैं। इस मुद्दे का असर काफी दूर तक पड़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए। कोर्ट का काम प्रथाओं को रद्द करना नहीं है। धार्मिक रूप से कौन सी परिपाटी जरूरी है इसका फैसला श्रद्धालुओं को करना चाहिए ना की कोर्ट को। इंदु मल्होत्रा ने यह भी कहा कि पूजा का तरीका भक्त पर निर्भर करता है कि वह कैसे आराधना करता है। अदालत यह नहीं बता सकता कि किस तरह से पूजा की जानी चाहिए।

क्या है कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को अनुमति की इजाजत दी। फैसला सुनाते हुए सीजेआइ दीपक मिश्रा ने कहा कि धर्म एक है, गरिमा और पहचान भी एक हैं। भगवान अय्यप्पा अलग नहीं हैं, जो नियम जैविक और शारीरिक प्रक्रियाओं के आधार पर बने हैं। वे संवैधानिक परीक्षा में पास नहीं हो सकते।

वहीं जस्टिस नरीमन ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूजा से इनकार करना महिलाओं की गरिमा से इनकार करना है। उन्‍होंने सवाल किया, क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है?

सिर्फ 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश था वर्जित
बतादें कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती थीं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। ऐसे में युवा और किशोरी महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है। सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।

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