जस्टिस बोबडे बोले- जज भी हैं इंसान, सोशल मीडिया से जजों को परेशान देख होता है दुख

जस्टिस बोबडे 18 नवंबर को देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Sun, 03 Nov 2019 07:21 PM (IST) Updated:Sun, 03 Nov 2019 07:21 PM (IST)
जस्टिस बोबडे बोले- जज भी हैं इंसान, सोशल मीडिया से जजों को परेशान देख होता है दुख
जस्टिस बोबडे बोले- जज भी हैं इंसान, सोशल मीडिया से जजों को परेशान देख होता है दुख

नई दिल्ली, पीटीआइ। न्यायाधीशों की उनकी कुछ न्यायिक कार्रवाई के लिए सोशल मीडिया पर आलोचना को गंभीरता से लेते हुए देश के अगले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे का कहना है कि जब वह इस वजह से न्यायाधीशों को 'परेशान' देखते हैं तो उन्हें दुख होता है। जस्टिस बोबडे 18 नवंबर को देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार ग्रहण करेंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि अनियंत्रित आलोचना न केवल निंदनीय है बल्कि यह न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करती है। 63 वर्षीय बोबडे ने कहा कि फैसलों के बजाय न्यायाधीशों की सोशल मीडिया पर आलोचना वास्तव में 'मानहानि' का अपराध है। यह पूछे जाने पर कि क्या न्यायाधीशों की आलोचना उन्हें परेशान करती है, जस्टिस बोबडे ने कहा, 'एक हद तक। हां। यह मुझे परेशान करती है। यह अदालतों के कामकाज को प्रभावित कर सकती है और मैं ऐसे न्यायाधीशों को देखता हूं जो परेशान महसूस करते हैं। यह मुझे परेशान करता है। कोई भी इसे पसंद नहीं करता है। हर कोई मोटी चमड़ी वाला नहीं है जो इसकी अनदेखी कर सके। न्यायाधीश भी सामान्य इंसान होते हैं।'

जज की आलोचना मानहानि

उन्होंने कहा कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट सोशल मीडिया में अनियंत्रित आलोचना पर काबू करने के लिए कुछ भी नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा, 'हम इस तरह की मीडिया के लिए अभी कुछ भी नहीं कर सकते हैं। हम नहीं जानते हैं कि हमें क्या कदम उठाना है। वे न केवल लांछन लगा रहे हैं बल्कि लोगों और न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर रहे हैं। उसके ऊपर, यह शिकायत भी है कि बोलने की स्वतंत्रता नहीं है।' उन्होंने कहा कि फैसले की नहीं न्यायाधीश की आलोचना करना मानहानि है। सीजेआइ के तौर पर जस्टिस बोबडे का कार्यकाल 18 महीने का होगा।

समय पर न्याय पहली प्राथमिकता

उन्होंने कहा कि किसी भी न्यायिक प्रणाली की शीर्ष प्राथमिकता समय पर न्याय मुहैया कराना है और इसमें न तो ज्यादा देरी की जा सकती और न ही जल्दबाजी। उन्होंने कहा कि न्याय में देरी से अपराध में वृद्धि हो सकती है और इससे कानून का शासन भी प्रभावित हो सकता है। जस्टिस बोबडे ने कहा कि किसी भी न्यायिक प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता न्याय है और किसी भी कीमत पर किसी और चीज के लिए इसका बलिदान नहीं किया जा सकता क्योंकि यही अदालतों के अस्तित्व का कारण है। न्याय में अनुचित देरी से अपराध में वृद्धि हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में स्थाई पीठ संभव

यह पूछे जाने पर कि क्या महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने के लिए उच्चतम न्यायालय में पांच न्यायाधीशों की स्थाई संविधान पीठ के गठन का कोई प्रस्ताव है, उन्होंने कहा कि सीजेआइ रंजन गोगोई ने इस पर कुछ विचार रखे हैं। उन्होंने कहा, 'देखते हैं कि मैं इसे कैसे देखूंगा। आप कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में स्थाई पीठ होने की संभावना है।' देश भर की अदालतों में न्यायाधीशों की भारी रिक्तियों के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में मौजूदा सीजेआइ की ओर से उठाए गए कदमों को 'तार्किक अंजाम' तक पहुंचाएंगे।

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