ई लोक गायकी क सम्मान हौ, देरी से ही सही केहू त सोचेलस : हीरालाल यादव

लोक गायन की बिरहा विधा के शीर्ष गायक और बिरहा सम्राट माने जाने वाले सादगी पसंद हीरालाल यादव का नाम इस बिसर रही कला को एक बार फ‍िर से आसमान देने के लिए लिया जाता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Tue, 29 Jan 2019 09:17 PM (IST) Updated:Tue, 29 Jan 2019 09:17 PM (IST)
ई लोक गायकी क सम्मान हौ, देरी से ही सही केहू त सोचेलस : हीरालाल यादव
ई लोक गायकी क सम्मान हौ, देरी से ही सही केहू त सोचेलस : हीरालाल यादव

वाराणसी, प्रमोद यादव। इस वर्ष पद्मश्री पुरस्‍कारों की कडी में काशी के हिस्‍से में चार पुरस्‍कार आए हैं। जिसमें खेल के लिए प्रशांति सिंह, संगीत के लिए राजेश्‍वर आचार्य, हस्‍तशिल्‍प को बढावा देने के लिए डा. रजनीकांत को शामिल किया गया है। मगर इन सभी चेहरों में लोक गायन से जुड़ा चेहरा हीरालाल यादव अपने आप में अनोखी शख्सियत हैं। लोक गायन की बिरहा विधा के शीर्ष गायक और बिरहा सम्राट माने जाने वाले सादगी पसंद हीरालाल यादव का नाम इस बिसर रही कला को एक बार फ‍िर से आसमान देने के लिए लिया जाता है।

गृह मंत्रालय की ओर से फोन पर पद्मश्री सम्मान प्रदान करने की सूचना आई तो उनका पूरा परिवार झूम उठा। बीमार हाल, और गहरी नींद में सोये बिरहा गायक को किसी तरह परिजनों ने जगाकर यह जानकारी दी गई। बेसुध से लेकिन पद्मश्री की बात सुन थोड़े आनमान हुए और कहा ई लोक गायकी अउर लोक गायकन क सम्मान हौ। ए तरह के प्रयासन से डूबत बिरहा उबर जाई। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया और कहा देरी से ही सही केहू त सोचेलस।

शौकिया गाते गाते बने बिरहा सम्राट 

मूलरूप से वाराणसी में हरहुआ ब्लाक के बेलवरिया निवासी हीरालाल यादव का जन्म वर्ष 1936 में चेतगंज स्थित सरायगोवर्धन में हुआ। उनका बचपन काफी गरीबी में गुजरा, भैंस चराने के दौरान शौकिया गाते-गाते अपनी सशक्त गायकी से बिरहा को आज राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई और बिरहा सम्राट के रूप में ख्यात हुए।

यह कठोर स्वर साधना का प्रतिफल तो रहा ही गुरु रम्मन दास, होरी व गाटर खलीफा जैसे गुरुओं का आशीर्वाद भी इसमें शामिल रहा। उन्होंने वर्ष 1962 से आकाशवाणी व दूरदर्शन पर बिरहा के शौकीनों को अपना दीवाना बनाया। भक्ति रस में पगे लोकगीत और कजरी पर भी श्रोताओं को खूब झुमाया, वहीं गायकी में शास्‍त्रीय पुट ने बिरहा गायन को विशेष विधा के तौर पर पहचान दिलाई है। जो आज उनको पद्मश्री सम्मान तक लेकर आयी है।

यशभारती समेत एक दर्जन सम्मान 
लोक गायन की बिसरती विधा बिरहा को आज तड़क-भड़क के दौर में भी आसमान देने वाले ख्यात कलाकार को कई बार शीर्ष सम्मान मिलते मिलते रह गए। इसे उन्होंने बेबाकी से सरकारों की राजनीति करार दिया और समय दर समय अपना हौसला कम न होने दिया। मगर इन स्थितियों से दिल ऐसा टूटा कि घर के बच्चों को उन्‍होंने गायकी से दूर ही कर दिया। उत्‍तर प्रदेश सरकार ने उन्हें 93-94 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान और 2014 में यशभारती के साथ ही विश्व भोजपुरी अकादमी का भिखारी ठाकुर सम्मान व रवींद्र नाथ टैगोर सम्मान मिला है। 

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