गंगा : कैनवास पर बिखेरती जीविका

गंगा महज एक नदी ही नहीं वरन उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। बनारस के लिए तो मोक्षदायिनी संग जीवनदायिनी भी हैं। हजारों घरों के चूल्हे भी गंगा के ही दम से जलते और बुझते हैं। गंगा नहीं होती तो बीएचयू और विद्यापीठ के फाइन आर्टस के कुछ छात्र शायद अपनी पढ़ाई ही नहीं कर पाते। नाविकों, पुरोहितों और फुटकर विक्रेताओं के लिए गंगा रोजी हैं तो इन छात्रों के लिए गुमनाम छात्रवृत्ति।

By Edited By: Publish:Thu, 10 Jul 2014 08:34 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jul 2014 08:36 PM (IST)
गंगा : कैनवास पर बिखेरती जीविका

वाराणसी (रत्नाकर दीक्षित)। गंगा महज एक नदी ही नहीं वरन उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। बनारस के लिए तो मोक्षदायिनी संग जीवनदायिनी भी हैं। हजारों घरों के चूल्हे भी गंगा के ही दम से जलते और बुझते हैं। गंगा नहीं होती तो बीएचयू और विद्यापीठ के फाइन आर्टस के कुछ छात्र शायद अपनी पढ़ाई ही नहीं कर पाते। नाविकों, पुरोहितों और फुटकर विक्रेताओं के लिए गंगा रोजी हैं तो इन छात्रों के लिए गुमनाम छात्रवृत्ति।

वर्ष पर्यत यहां आने वाले पर्यटक सबसे अधिक घाटों का ही भ्रमण करते हैं। गंगा की पूजा-अर्चना के लिए वह जहां माली-पुरोहितों के संपर्क में आते हैं। वहीं नौकायन के लिए नाविकों को पकड़ते हैं। बदले में इन गंगा पुत्रों के हाथ लगती है अच्छी-खासी कमाई और उनके मुख से बरबस ही बोल फूट पड़ते हैं 'दया बनवले रहिहे माई।'

अब बात आकर ठहरती है चित्रकारों पर। गंगा के घाटों का पथरीला सौंदर्य हमेशा से ही चितेरों का पसंदीदा 'आब्जेक्ट' और नित नवीन सब्जेक्ट रहा है। लगभग हर प्रमुख घाट पर प्रतिदिन दर्जनों ऐसे छात्र मिल जाएंगे जो अपनी तूलिका से गंगा के खूबसूरत घाटों और मचलती लहरों को कैनवास पर उकेरने में मशगूल रहते हैं। माध्यम बनता है आयल, एक्रेलिक और जलरंग। ऐसी कृतियों को विदेशी पर्यटक देखते ही सम्मोहित हो जाते हैं। रंग से पुते हाथों में रकम पकड़ाकर विदेशी पर्यटक उस कृति को बतौर यादगार के रूप में अपने संग ले जाते हैं। मतलब साफ है गंगा के मान से ही मिल रहा रोटी, कपड़ा और मकान। ऐसे में मां की पीड़ा पुत्र भला कैसे करें सहन। घाट किनारे गंदगी और पेटा छोड़ती गंगा की दुर्दशा में ये लोग घड़ियाली आंसू नहीं बल्कि खून के आंसू बहाते हैं।

अस्सी घाट पर नौकायन से जीविका चलाने वाले दीपक मांझी गंगा की दुर्दशा पर मुरझाए हैं, कहते हैं कि भइया माई हईन त सब हौ नाही त सब खतम हो जाई। माई क ही परताप समझा की हमहन पेट भरत हई। इनके बिना जीवन क कौनो मतलब नाही हौ।

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