FB से लेकर ऑनलाइन गेम्स तक सब गणित है, जानें- कैसे बनाएं इसे पंसदीदा विषय

आज हम गणित को जीने वाले महान गणितज्ञ के जीवन की कुछ झलकियों के जरिए जानेंगे कि कैसे गणित बोरिंग और डराने वाला बिल्कुल नहीं है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 22 Dec 2018 09:36 AM (IST) Updated:Sat, 22 Dec 2018 10:24 AM (IST)
FB से लेकर ऑनलाइन गेम्स तक सब गणित है, जानें- कैसे बनाएं इसे पंसदीदा विषय
FB से लेकर ऑनलाइन गेम्स तक सब गणित है, जानें- कैसे बनाएं इसे पंसदीदा विषय

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। दोस्तो, क्या आपको भी मैथ्स यानी गणित से डर लगता है? गणित के सवालों को हल करने से बचना चाहते हैं? किसी तरह इसमें पास हो पाते हैं? कम नंबर आने पर स्कूल और घर में अक्सर डांट खाने को मिलती है? जाहिर है, बहुत से बच्चों-किशोरों का उत्तर हां में ही होगा। आज हम गणित को जीने वाले महान गणितज्ञ के जीवन की कुछ झलकियों के जरिए जानेंगे कि कैसे गणित बोरिंग और डराने वाला बिल्कुल नहीं है। अगर इसमें थोड़ी-सी रुचि ली जाए और थोड़ा अभ्यास करें तो डर को दूर कर इसे अपनी ताकत बनाकर टीचर-पैरेंट्स के साथ दोस्तों को भी चौंकाया जा सकता है।

चारों ओर है नंबर का चक्कर
हमारी दिनचर्या में संख्याएं कई बार आती रहती हैं। चाहे क्रिकेट के खेल में बनने वाले रन हों या फिर बस, ट्रेन या कैब का किराया, सबके साथ संख्याएं जुड़ी हैं। इसरो जब कोई सैटेलाइट छोड़ता है, तो वहां उलटी गिनती की जाती है। जिन्हें लिखना-पढ़ना बिल्कुल भी नहीं आता, वे भी बड़ी खूबी से रुपये-पैसे गिन लेते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि गणित उनकी रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ा है, जिसे वे रुचि लेकर करते हैं।

तकनीक के लिए जरूरी टूल
आज आप गूगल मैप के जरिए सिर्फ अपने देश का ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का चक्कर लगा सकते हैं। आपके चेहरे से आपको जिस तरह फेसबुक पर टैग कर दिया जाता है, वह गणित की क्रिप्टोग्राफी का कमाल है। गेमिंग में वेक्टर और थ्री डायमेंशन ज्यामिति का इस्तेमाल करके आपके पसंदीदा गेम्स बनाए जाते हैं। बैंकिंग में क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से पैसे का कहीं भी लेनदेन करना, ये सब गणित की वजह से ही संभव हो पाता है। लेजर रे से ऑपरेशन करना हो या डिजिटल तकनीक से संदेश भेजने हों, गणित के बिना संभव नहीं है। गूगल, फेसबुक जैसी कंपनियां डाटा एनालिसिस के लिए गणित के जानकार लोगों को अपने यहां रखती हैं। जीपीएस, रिमोट सेंसिंग, ऑपरेशन रिसर्च, इमेजिंग, एक्चुरियल साइंस जैसे क्षेत्रों में गणित के जानकारों की जबर्दस्त मांग है।

बचपन से ही गणित की दीवानगी
देश के प्रख्यात गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन बचपन से ही गणित के दीवाने थे। एक बार तमिलनाडु के कुंभकोणम के सरकारी स्कूल में कक्षा 3 में शिक्षक पढ़ा रहे थे कि किसी संख्या को उसी संख्या से भाग देने पर भागफल हमेशा 1 ही आता है। तभी बालक रामानुजन ने तपाक से सवाल किया कि सर अगर शून्य को शून्य से भाग दिया जाए तो क्या तब भी भागफल 1 ही आएगा? यही बालक श्रीनिवास रामानुजन आगे चलकर गणितज्ञ के रूप में दुनियाभर में मशहूर हुआ। उनकी जीवनी हमें अपने जीवन में जिज्ञासु होने की प्रेरणा देती है और यह सिखाती है कि आप गणित से प्रेम तभी कर सकते हैं, जब मन में हरदम कुछ नया सीखने की लालसा हो।

अभाव में भी निखरी चमक
22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव इरोड में जन्मे रामानुजन का परिवार बेहद गरीब था। पिता दुकान में नौकरी करते थे और मां मंदिर में भजन गाती थीं, जहां मिले प्रसाद से घर के एक समय का भोजन चलता था। आमदनी के लिए घर के दो कमरों में से एक को किराये पर छात्रों को दे दिया गया था। गणित से गहरा लगाव होने के कारण चौथी कक्षा में पढ़ते समय ही रामानुजन अपने घर रहने वाले 10वीं के छात्रों की किताब पढ़ते, उनसे लाइब्रेरी से नई-नई किताबें मंगवाते। कुछ ही समय में वह अपनी से ऊंची कक्षा के उन छात्रों को त्रिकोणमिति जैसा दुरुह विषय पढ़ाने लगे। कक्षा 10 में आने पर उन्हें जीएस कार की किताब पढ़ने को मिली, जिसमें लिखे 6 हजार प्रमेय को उन्होंने हल कर दिखाया। उनकी प्रतिभा देख, उनके शिक्षक ने लिखा कि अब मेरे पास ऐसा कोई ज्ञान नहीं, जो मैं इसे दे सकूं और अगर मुझे 100 अंक के पेपर में 1000 अंक देने की छूट हो, तो ये अंक मैं रामानुजन को देना चाहूंगा।

फेल होने पर छोड़ा घर
कक्षा 10 तक प्रथम आने वाले रामानुजन जब 11वीं कक्षा में आए, तो उन्हें गणित को छोड़कर अन्य सभी विषयों में शून्य अंक मिले। इस असफलता से हताश होकर वह घर से भाग गए और आत्महत्या तक का प्रयास किया। इसके बाद बिना 12वीं किए मद्रास पोर्ट पर क्लर्क की नौकरी कर ली, पर खाली समय में गणित पर शोध जारी रखा।

हार्डी ने पहचानी प्रतिभा
वर्ष 1913 में महज 23 साल की उम्र में रामानुजन ने अपने 20 प्रमेय को ब्रिटेन के मशहूर गणितज्ञ जीएच हार्डी (1877-1947) को भेजा। हार्डी ने इस छिपे हीरे को पहचान लिया और उन्होंने रामानुजन को आगे पढ़ने और तराशने के लिए कैंब्रिज बुला लिया। वहां हार्डी और अन्य उच्च स्तरीय गणितज्ञों के साथ पार्टीशन नंबर, हाइपरजियोमेट्रिक सीरीज, जीटा फंक्शन, मोक थीटा फंक्शन आदि पर शोध किया। वहां रहते हुए उन्होंने 3900 से अधिक प्रमेय की खोज की, जिनके लिए आज भी पूरे विश्व को उन पर नाज है। उनके खोजे इन प्रमेयों पर आज भी दुनिया के लाखों अध्येता शोध कर रहे हैं।

क्या है रामानुजन-हार्डी संख्या
इंग्लैंड प्रवास के दौरान रामानुजन की तबीयत अक्सर खराब रहती थी। एक बार जब वह अस्पताल में भर्ती थे, तो उन्हें देखने प्रोफेसर हार्डी आए और मजाक में उनसे कहा कि वह जिस टैक्सी में उनसे मिलने आए, उसका नंबर 1729 बड़ा ही नीरस है। इस पर बीमार अवस्था में भी रामानुजन ने अपनी गणितीय प्रतिभा दिखाते हुए कहा कि यह ऐसी सबसे छोटी संख्या है, जिसे दो अलग-अलग संख्याओं के घन के रूप में व्यक्त किया जा सकता है (1729=1³+12³=9³+10³)। बाद में 1729 को रामानुजन-हार्डी संख्या के नाम से प्रसिद्धि मिली।

संख्याओं से प्यार
रामानुजन को संख्याओं से बेहद प्यार था। वे उन्हें अपना दोस्त मानते थे। उन्होंने अपने जीवन में सिर्फ तीन कॉपी लिखी, जिसमें करीब 4000 प्रमेय का संग्रह है। बाद में इन्हें अमेरिकी गणितज्ञ ब्रूस बर्न और जॉर्ज एंड्रयू ने हल किया और इस किताब का नाम रखा 'लास्ट नोटबुक ऑफ रामानुजन'। आज उनका घर म्यूजियम बन चुका है, जिसे देखने बच्चे-किशोर-युवा सभी आते हैं।

राष्ट्रीय गणित दिवस (22 दिसंबर)
22 दिसंबर, 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने देश के प्रमुख गणितज्ञ रहे श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस और उस वर्ष (2012) को राष्ट्रीय गणित वर्ष मनाने की घोषणा की थी। मात्र 32 वर्ष की अल्पायु (1887-1920) में गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले रामानुजन का पूरा विश्व ऋणी हैं।

गेम्स के पीछे भी तो मैथ्स होता है- डॉ डीके सिन्हा
जागरण पब्लिक स्कूल, नोएडा के प्रधानाचार्य डॉ डीके सिन्हा के अनुसार आप सभी को गेम खेलने में बहुत मजा आता है न। पर क्या आपको भी गणित का भय सताता है? क्यों भाई? गेम्स के पीछे भी तो मैथ्स का ही हाथ है। आज गूगल मैप से लेकर जीपीस और गेमिंग से लेकर रिमोट सेंसिंग और एक्चुरियल साइंस व डाटा एनालिस्ट तक के तमाम काम गणित के बिना नहीं हो सकते। सबसे बड़ी बात कि हमें रोज रुपये-पैसे का हिसाब करने के लिए भी तो इसी की जरूरत पड़ती है। फिर गणित से डरना कैसा?

रुचि से भागेगा मैथ्स का डर- डॉ चंद्रमौलि जोशी
ऑल इंडिया रामानुजन मैथ्स क्लब, राजकोट, गुजरात के प्रख्यात गणितज्ञ एवं चेयरमैन डॉ चंद्रमौलि जोशी कहते हैं कि देश के सभी बच्चों से मेरा यही अनुरोध है कि वे गणित से डरें नहीं। प्रतिदिन अभ्यास द्वारा समस्याओं को हल करें। मैं मानता हूं कि बच्चों के मन में व्याप्त मैथ्स फोबिया को दूर कर उनकी इस विषय में रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है। इसे सरल शिक्षण विधियों एवं वर्किंग मॉडल्स द्वारा पढ़ाया जाए। इन शिक्षण विधियों का विकास श्रेष्ठ गणितज्ञों से परामर्श कर किया जा रहा है। ऑल इंडिया रामनुजन क्लब में देश की 19 भाषाओं में गणित अध्यापन प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षक हैं। इन्हें कार्यशालाओं में बुलाकर गणित की शार्ट ट्रिक्स को सीखा जा सकता है। वैदिक गणित के जरिए भी शॉर्ट ट्रिक से सीखा जा सकता है। इस क्षेत्र में इंजीनियरिंग, आइआइटी सहित बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं।

ये भी हैं मैथ्स के धुरंधर
अगनिजो बनर्जी- कोलकाता में जन्मे भारतीय मूल के स्कॉटिश छात्र 17 वर्षीय अगनिजो बनर्जी को गणित से इतना लगाव है कि इन्होंने डेविड डार्लिंग के साथ मिलकर वियर्ड मैथ्स नाम से एक किताब ही लिख डाली है। इसमें गणित को बेहद सरल तरीके से समझाया गया है। इसी वर्ष इंटरनेशनल मैथ्स ओलंपियाड में परफेक्ट 42 स्कोर करने वाले अगनिजो एंटी बुलिंग क्रूसेडर भी हैं। इन्हें स्पोट्र्स बिल्कुल भी पसंद नहीं। वे ट्रिनिटी कॉलेज से प्योर मैथमेटिक्स की पढ़ाई कर रहे हैं।

प्रो. ऋताब्रत मुंशी- कोलकाता स्थित इंडियन स्टैस्टिकल इंस्टीट्यूट के प्रो. ऋ ताब्रत मुंशी को द इंटरनेशनल सेंटर फॉर थ्योरिटिकल फिजिक्स ने 2018 के रामानुजन प्राइज फॉर यंग मैथमेटिशियन अवॉर्ड से नवाजा है। प्रो. मुंशी को नंबर थ्योरी में उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए यह सम्मान दिया गया। इससे पहले 2015 में इन्हें शांति स्वरूप भटनागर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। 2016 में इनका चयन इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के फेलो के तौर पर हुआ।

अक्षय वेंकटेश- दिल्ली में जन्मे और ऑस्ट्रेलिया में बसे अक्षय को गणित में उनके योगदान के लिए फील्ड्स मेडल से नवाजा जा चुका है। इसे गणित का नोबल प्राइज भी कहा जाता है। अक्षय को बचपन से ही गणित एवं भौतिक विज्ञान में गहरी रुचि रही है। 13 वर्ष की उम्र में इन्होंने हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली थी। 16 वर्ष की उम्र में ये गणित में फस्र्ट क्लास ऑनर्स कर चुके थे और 20 वर्ष की आयु में पीएचडी।

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