हिंदी की दीवानगी के चलते इन विदेशी नागरिकों ने छोड़ दिया अपना वतन
फादर कामिल बुल्के ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भारत आए, लेकिन यहां उन्होंने हिंदी की दिव्यता को पहचाना। यहां बुल्के ने हिंदी और संस्कृति भाषा को सीखा और भारत में ही रच बस गए
नई दिल्ली [ जेएनएन ]। इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया के कोने-कोने में अपनी पहुंच बनाने में हिंदी कामयाब रही है। आज दुनिया भर में करोड़ों लोग हिंदी बोलने और समझने लगे हैं। खासकर हिंदी फिल्मों के बाजार ने पूरी दुनिया में अपनी एक खास जगह बनाई है। इतना ही नहीं कई विदेशी नागरिकों को हिंदी इतनी भाई कि वो अपने वतन का रास्ता ही भूल गए। लेकिन इसके बावजूद दुनिया में हिंदी की स्वीकार्यता को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। आइए जानते हैं कि आखिर हिंदी के विकास में कौन सी बड़ी बाधाएं हैं। हिंदी के विकास में बॉलीवुड का रोल।
विदेशी नागरिकों का हिंदी प्रेम
विदेशी नागरिकों के मन में हिंदी का प्रेम नया नहीं है। 1935 में बेल्जियम में जन्मे फादर कामिल बुल्के ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भारत आए, लेकिन यहां उन्होंने हिंदी की दिव्यता को पहचाना। यहां बुल्के ने हिंदी और संस्कृत भाषा को सीखा और भारत में ही रच बस गए। बाद में बुल्के रामायण के प्रकांड पंडित कहलाए। श्रीमद्भभगवत गीता और अभिज्ञान शाकुंतलम से प्रभावित होकर विलकिंसन और जार्ज फास्टर ने हिंदी सीखी और फिर उनका अनुवाद अंग्रजी में किया। 1800 सदी में स्काटलैंड के जॉन बोधाने गिलक्रिस्ट ने देवनागरी लिपि और हिंदी व्याकरण पर कई पुस्तकें लिखीं। एलएफ रोनाल्ड ने भारत प्रवास के दौरान हिंदी व्याकरण पर काफी महत्वपूर्ण काम किया। लंदन में इससे जुड़ी किताब प्रकाशित करवाया।
मास्को बना हिंदी भाषा का हब
मास्को को दुनिया में हिंदी भाषा के अध्ययन या अध्यापन के प्रमुख केंद्रों में एक माना जता है। मास्को विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी करने तक की सुविधा है। अमेरिका के कई राज्यों के स्कूलों में हिंदी भाषा पढ़ने का विकल्प दिया जा रहा है। इसी तरह चीन, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, रूस, हंगरी बुल्गारिया, मॉरीशस और कई देशों में हिंदी पढ़ने की सुविधा है। मॉरीशस और भारत सरकार ने मिलकर मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की है।
दुनिया भर में 150 से ज्यादा देशों में दो करोड़ से ज्यादा भारतीयों का बोलबाला है। अधिकांश प्रवासी भारतीय हिंदी जानते हैं या बोलते हैं। इसके चलते दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिंदी बोलने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। आज दुनिया के ज्यादातर देशों में कहीं न कहीं हिंदीभाषी लोग मिल जाते हैं। दुनिया के 170 देशों में करीब 99 देशाें में हिंदी किसी न किसी रूप में स्कूलों या विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। हिंदी भारत की राजभाषा के साथ फीजी की भी राजभाषा है। संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए भारत सरकार की ओर से प्रयास जारी है। वैसे यूनोस्को की सात भाषाओं में पहले से शामिल हैं।
बालीवुड का हिंदी प्रसार में रोल
बॉलीवुड भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहा है। देश की कई बॉलीवुड हस्तियां दुनिया भर में लोकप्रिय रहे हैं। उनकी फिल्में देखी जाती है। उनकी फिल्मों के गाने सुने जाते हैं। हिंदी फिल्मों में बोले कई डायलॉग विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय और चर्चित रहे हैं। यही नहीं बॉलीवुड की धाक से हिंदी का बाजार बढ़ाने में इसलिए भी कामयाब हुई है, क्यों कि बहुत सारे बॉलीवुड हस्तियों ने भारत का रुख किया है। कई बॉलीवुड फिल्मों का हिस्सा भी बने।
रोजगार पाने के लिए हिंदी से दूर हो रहा है युवा
अंतरराष्ट्रीय जगत में दुनिया में हिंदी को वह प्रतिष्ठा हासिल नहीं हो सकी है, जिसकी दरकार रही है। आज दुनिया में छह हजार से ज्यादा भाषाएं बोेली जाती है। इनमें अकेले एशिया में 2200 से ज्यादा भाषाएं बोली जाती है। इन भाषाओं के बीच में खड़ी हिंदी को धारण करने में सबसे बड़़ी चुनौती दे रहा है, वह करियर का क्षेत्र है। खासकर भूमंडलीकरण के दौर में जब हिंदी अंग्रेजी से काफी पिछ़ड़ती नजर आ रही है।
1- आज ढेर सारी मल्टीनेशनल कंपनियां हिंदी के बजाए अंग्रेजी को वरीयता दे रही हैं। इस तरह आज का युवा रोजगार पाने के लिए हिंदी से दूर होता जा रहा है।
2- बीते कुछ वर्षों में यह समझ मजबूत हुई है कि अगर हिंदी को आम आदमी की जेब से जोड़ दिया जाए तो यह अपने आप लोगों के दिलों से जुड़ जाएगी।
3- हिंदी को पुराने और परंपरागत बेड़ियों को जकड़े रहने से भी इसे नुकसान हुआ है। जाहिर है मोबाइल, ऐप्स, इंटरनेट और गैजेट के जमाने में अगर हिंदी को भी उसी तरीके में ढाला जाए तो बात बन सकती है। युवा पीढी को यह जिम्मा उठाने की प्रेरणा देनी होगी।
4- हिंदी भारत में संचार माध्यम का सबसे बड़ा जरिया बनने के बावजूद बदलते समाज का हिस्सा नहीं बन सकी है। जब तक ज्ञान की भाषा के रूप में हिंदी का विकास नहीं होगा और शासन व्यवस्था में हिंदी को तरजीह नहीं मिलेगा तब तक दुनिया में हिंदी को वह दर्जा नही मिल सकेगा।
5- हिंदी बदलते समाज के संवाद की भाषा नहीं बन पाई है। हिंदी का रोजगार से नहीं जुड़ पाई है। यह हिंदी भाषियों के लिए चिंता और मुश्किलें पैदा करता है।