ड्रेनेज का दम: देश के 50 फीसद शहरी क्षेत्रों में सीवर लाइन नहीं, भारी बारिश में शहरों का बुरा हाल

दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी अभियान ड्रेनेज का दम श्रृंखला की यह पहली स्‍टोरी है। सात दिन तक चलने वाले इस अभियान में जलभराव की समस्या और उसके निदान की पड़ताल की जाएगी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Sun, 30 Aug 2020 09:24 PM (IST) Updated:Mon, 31 Aug 2020 12:16 PM (IST)
ड्रेनेज का दम: देश के 50 फीसद शहरी क्षेत्रों में सीवर लाइन नहीं, भारी बारिश में शहरों का बुरा हाल
ड्रेनेज का दम: देश के 50 फीसद शहरी क्षेत्रों में सीवर लाइन नहीं, भारी बारिश में शहरों का बुरा हाल

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह लगभग एक पखवाड़े पहले की बात है, देश के संपन्न शहरों में शुमार सूरत को स्वच्छता के मानक पर नंबर-टू का पुरस्कार मिला था। उसी दिन की दूसरी घटना भी सबको याद होगी। बारिश के बाद सूरत का बड़ा हिस्सा जलमग्न था, सीवर से उफनाकर दूषित पानी सड़कों और घरों मे घुस चुका था। तपती गर्मी के बाद जब हर कोई मानसून की चाहत कर रहा होता है, तब सूरत की आबादी शायद मानसून को कोस रही थी..।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सूरत कोई अकेला शहर नहीं है, देश का शायद कोई भी शहर इस लायक नहीं कि अचानक आई भारी बारिश के बाद साफ सुथरा होने की बजाय गंदा न हो जाए। देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर हो, राजधानी दिल्ली, महानगर मुंबई या फिर एनसीआर का हाईफाई शहर गुरुग्राम- कोई शहर नहीं, जहां ड्रैनज या स्टार्म वाटर की निकासी की पूरी व्यवस्था हो। पूरे देश की बात की जाए तो लगभग 50 फीसद हिस्सों में सीवर ही नहीं है। फिर पानी जाए तो जाए कहां, नाले के गंदे पानी को सड़कों और घरों में तो घुसना ही है। ज्यादा गंभीर बात यह है कि जलाशयों के जरिए यह भूजल को भी दूषित कर रहा है।

56.4 फीसद शहरी वार्डों में सीवर लाइन नेटवर्क ही नहीं

आंकड़ों की बात हो तो देश के 50 फीसद शहरी क्षेत्रों में ड्रैनेज या सीवर नहीं है। लगभग 4500 शहरी निकायों में से ज्यादातर सीवर व ड्रेनेज प्रणाली के मामले में फिसड्डी हैं। खुले में बहने वाले नालों को ही सीवर लाइन का दर्जा प्राप्त है। ड्रेनेज सिस्टम की हालत तो और भी बदतर है। देश के 56.4 फीसद शहरी वार्डों में सीवर लाइन नेटवर्क नहीं है। शहरी विकास के विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत में 80 फीसद सीवर का मलमूत्र सीधे नदियों, जलाशयों, झीलों और तालाबों में बहाया जाता है। सीवर नेटवर्क न होने से अधिकतर कस्बों और शहरी निकायों में मलमूत्र जमीन के भीतर डाल दिया जाता है। भूजल पर निर्भर पेयजल आपूर्ति के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय है।

यूपी, बिहार और एमपी के शहरों की सीवर व ड्रेनेज प्रणाली बुरा हाल 

उत्तर प्रदेश के शहरों में मात्र 30 फीसद सीवर लाइनें पड़ी हैं। इसी तरह बिहार के शहरों से निकलने वाले सीवेज का मात्र 13 फीसद का ही ट्रीटमेंट हो पाता है। बाकी सीधे आसपास की नदियों अथवा जलाशयों में बहा दिया जाता है। इंदौर ने स्वच्छता की दौड़ में चौथी बार बाजी मारते हुए पहला स्थान भले ही पा लिया हो, लेकिन उस शहर की सीवर व ड्रेनेज प्रणाली का हाल भी दूसरे शहरों के मुकाबले बहुत अच्छा नहीं है। 69 वार्ड वाले इस शहर के एक तिहाई वार्ड बिना सीवर वाले हैं। ड्रेनेज लाइन की हालत यह है कि यहां मात्र 126 किमी अंडरग्राउंड स्टार्म वाटर ड्रेनेज बनाया गया है, जबकि सड़कों की लंबाई 1912 किमी है। यानी ड्रेनेज मात्र 6.59 फीसद है।

 

भारी बारिश में राजधानी के कई हिस्से सीवरों में डूबे और उतराए

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इसके सेटेलाइट सिटी की हालत बद से बदतर होने लगी है। यहां होने वाली सालाना 800 मिमी बारिश भी ये शहर नहीं झेल पाते हैं। बारिश के पानी की निकासी के लिए नालियां तक नहीं है। सड़कों के अंडरपास में वाहनों के डूब जाने से मौत का होना आम हो गया है। चालू मानसून सीजन में होने वाली बरसात के दौरान राजधानी के कई हिस्से सीवरों में डूबे और उतराए। पानी उतरने के बाद कीचड़ और बदबू से वहां रहने वाले लोगों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

दिल्ली में कुल 4175 मिलियन लीटर पेयजल की रोजाना आपूर्ति होती है। इससे 3268 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज निकलता है, लेकिन केवल 2560 एमएलडी सीवेज का ट्रीटमेंट हो पाता है। बाकी सीवेज सीधे यमुना में बहाया जाता है। मानसून सीजन में तो मलमूत्र वाला सारा पानी यमुना के हवाले कर दिया जाता है। एनसीआर के दूसरे बड़े शहरों में हरियाणा का गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश का नोएडा है। नोएडा में पानी निकासी और सीवर लाइन की हालत एनसीआर के और शहरों के मुकाबले बेहतर है।

उत्‍तर प्रदेश और उत्‍तराखंड के शहरों का हाल बेहाल

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में शहरी बुनियादी ढांचा पुराने जमाने का होने की वजह से सीवर लाइनें नहीं हैं। बनाए गए ड्रेनेज लाइनों पर लोगों का कब्जा होने से बरसात में हालत बहुत खराब हो जाती है। शहर के ज्यादातर हिस्से में खुले नालों से बरसात का पानी और सीवर बहता है। ज्यादातर कॉलोनियों में लोगों ने सीवर लाइन की जगह सेप्टिक टैंक से काम चला रहे हैं।

प्राचीन शहर बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में सीवर लाइन बिछाने की प्रक्रिया बहुत तेजी से शुरू हुई है। शहर में कुल 1596 किमी लंबी सीवर लाइन की जरूरत है, जिसके मुकाबले अब तक 805 किमी लंबी सीवर लाइन ही बिछाई जा सकी है। 791 किमी सीवर लाइन की दिशा में काम चालू है। जबकि देवभूमि उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों से निकलने वाले मलमूत्र का मात्र 10 फीसद का ही ट्रीटमेंट हो पाता है। पर वर्षों से कई शहर अलग- अलग मानक पर स्वच्छता अवार्ड पा रहे हैं और इतरा भी रहे हैं। एक बारिश इनके सम्मान और गौरव को गंदे पानी में धो जाती है, लेकिन अहसास भी उतरते पानी के साथ ही चला जाता है।

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