भारतीय डाक्‍टरों का कमाल, 90 रुपये में बनाई 3.50 लाख की मशीन

आधुनिक काल के चिकित्सकों ने जरूरत पड़ी तो विकसित कर ली जुगाड़ टेक्नोलॉजी और बचा ली एक नवजात की जान। दरअसल, यह काम काफी कठिन था, लेकिन चिकित्सकों के जुनून व लगन ने उस नवजात को नयी जिंदगी दी।

By anand rajEdited By: Publish:Thu, 28 May 2015 09:56 AM (IST) Updated:Thu, 28 May 2015 06:24 PM (IST)
भारतीय डाक्‍टरों का कमाल, 90 रुपये में बनाई 3.50 लाख की मशीन

जमशेदपुर (संवाद सहयोगी)। आधुनिक काल के चिकित्सकों ने जरूरत पड़ी तो विकसित कर ली जुगाड़ टेक्नोलॉजी और बचा ली एक नवजात की जान। दरअसल, यह काम काफी कठिन था, लेकिन चिकित्सकों के जुनून व लगन ने उस नवजात को नयी जिंदगी दी।

जी हां, महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मंगलवार की शाम एक नवजात का जन्म हुआ। इस दौरान नवजात की न तो सांस चल रही थी और न ही दिल धड़क रहा था। बचने की उम्मीद नाम मात्र की थी। परिजन आस छोड़ चुके थे, लेकिन तबतक दो जूनियर चिकित्सकों का दिमाग क्लिक किया और विकसित कर दी जुगाड़ टेक्नोलॉजी। संयोग ऐसा कि टेक्नोलॉजी शत फीसद सफल भी रही और नवजात की जान भी बच गई। इसे देखकर चिकित्सक आश्चर्य के साथ-साथ उन चिकित्सकों को शाबाशी भी दे रहे हैं।दरअसल, यह अनोखा काम शिशु विभाग में तैनात डॉ. अजय राज के नेतृत्व में जूनियर चिकित्सक डॉ. मनीष भारती व डॉ. रविकांत ने किया।

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय राज ने बताया कि सीवियर बर्थ एस्फेक्सिया से पीड़ित नवजात गंभीर अवस्था में एमजीएम पहुंचा। अस्पताल में बच्चे के इलाज के लिए आवश्यक सी-पैप मशीन नहीं थी। इस मशीन की कीमत करीब साढ़े तीन लाख रुपये है, लेकिन दो जूनियर चिकित्सकों ने मशीन ना होने पर हिम्मत नहीं हारी और जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर मात्र 90 रुपये में डिवाइस तैयार कर शिशु की जान बचा ली। नवजात की स्थिति में पहले से सुधार हुआ है।

नवजात के छाती में चला गया था मेकोनियम

नवजात सीवियर बर्थ एस्फेक्सिया बीमारी से ग्रस्त था। नवजात गर्भ में मौजूद गंदा पानी (मेकोनियम) पी लिया था। यह पानी सांस की नाली द्वारा छाती में चला गया। इसके कारण नवजात का दिल धड़कना व सांस चलनी बंद हो गई। नवजात सही तरीके से सांस ले सके इसके लिए कंटीन्यूअस पॉजीटिव एयरवे प्रेशर (सी-पैप) ट्रीटमेंट जरूरी था। डॉ. मनीष ने कहा कि इच्छाशक्ति हो तो संसाधनों की कमी आड़े नहीं आती।

90 रुपये में तैयार की डिवाइस

अस्पताल में सी-पैप मशीन नहीं होने के कारण जूनियर चिकित्सकों ने मात्र 90 रुपये में सी-पैप मशीन तैयार कर ली। डॉ. रविकांत ने बताया कि इस आर्टिफिशियल बबल सी-पैप को बनाने के लिए 60 रुपये की पीडिया डिप और 30 रुपये की थ्री वे कैन्यूला का इस्तेमाल किया गया। इन दोनों डिवाइसेज को ऑक्सीजन सिलेंडर से जोड़कर पूरी डिवाइस तैयार कर ली गई। सी-पैप का इस्तेमाल वैसे नवजात में किया जाता है, जिनकी छाती पूरी तरह से विकसित नहीं हुई हो। इसमें माइल्ड एयर प्रेशर का इस्तेमाल एयरवे ओपन रखने के लिए किया जाता है। एमजीएम चिकित्सकों द्वारा तैयार की गई डिवाइस में वह सभी मौजूद थे जो सी-पैप मशीन में होता है।

कैसे काम करती है डिवाइस

डॉ. मनीष भारती ने कहा कि थ्री वे कैन्यूला के एक सिरे से ऑक्सीजन सप्लाई दी गई जबकि दूसरे सिरे को पीडिया ड्रीप से जोड़ा गया। आक्सीजन को थ्री वे कैन्यूला के तीसरे सिरे से शिशु की नाक में पहुंचाया गया। सांस लेने के बाद जब शिशु ने सांस छोड़ा तो हवा थ्री वे कैन्यूला में आकर पीडिया ड्रीप में पहुंची इससे सांस के साथ आए गैसेज अलग हो ही गए साथ ही पीडिया ड्रीप में निश्चित मात्रा में मौजूद पानी की वजह से बने प्रेशर से एयरवे ओपन रखने में मदद मिली।

हमारी कोशिश होती है कि कम संसाधन में मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराया जाए। जब भी कोई बड़ा मामला सामने आता है तो पूरे रणनीति के तहत कार्य किया जाता है। ताकि मरीजों को बेहतर से बेहतर सेवा उपलब्ध कराया जा सके।

- डॉ. बीरेंद्र कुमार, विभागाध्यक्ष, शिशु रोग विभाग।

जब नवजात को लाया गया उस दौरान स्थिति काफी गंभीर थी। उसका न तो दिल धड़क रहा था और न ही सांसें चल रहीं थी। शिशु के इलाज के लिए सी-पैप मशीन की जरूरत थी। इसे देखते हुए सूझ-बूझ के साथ एक डिवाइस तैयार की गई। नवजात की स्थिति पहले से बेहतर है।

- डॉ. अजय राज

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