World Tourism Day 2019: भारत में यहां बसते हैं मिनी स्विट्जरलैंड, छोटी काशी और मिनी ल्हासा

World Tourism Day 2019 आज विश्व पर्यटन दिवस मनाया जा रहा है ऐसे में प्रदेश के पर्यटन स्थलों की बात न हो ऐसा नहीं हो सकता है। आइए प्रदेश के कुछ पर्यटन स्थलों के बारे में जानें.

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 27 Sep 2019 09:00 AM (IST) Updated:Fri, 27 Sep 2019 03:01 PM (IST)
World Tourism Day 2019: भारत में यहां बसते हैं मिनी स्विट्जरलैंड, छोटी काशी और मिनी ल्हासा
World Tourism Day 2019: भारत में यहां बसते हैं मिनी स्विट्जरलैंड, छोटी काशी और मिनी ल्हासा

धर्मशाला, जेएनएन। देवभूमि हिमाचल की खूबसूरती अन्य राज्यों से हटकर है। इस छोटे से प्रदेश में मिनी स्विट्जरलैंड, छोटी काशी, मिनी ल्हासा जैसे कई नगर बसते हैं। जिला चंबा के खजियार को मिनी स्विट्जरलैंड माना जाता है, मैकलोडगंज को मिनी ल्‍हासा कहा जाता है यहां तिब्‍बती धर्मगुरु दलाईलामा निवास करते हैं। जिला मंडी को छोटी काशी कहा जाता है, यहां छोटे बड़े बहुत सारे मंदिर हैं। खास बात यह है कि हिमाचल की हर ऋतु में घूमने का लुत्फ लिया जा सकता है। कई स्थान ऐसे हैं जहां हर मौसम में घूमने की अलग ही अनुभूति होती है।

धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ यहां साहसिक खेलों के जरिये भी प्रकृति को निहारने का मौका मिलता है। प्रदेश में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए पिछले पांच साल के दौरान एशियन विकास बैंक की मदद से 900 करोड़ रुपये की करीब 25 परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। आज विश्व पर्यटन दिवस मनाया जा रहा है, ऐसे में प्रदेश के पर्यटन स्थलों की बात न हो, ऐसा नहीं हो सकता है।आइए प्रदेश के कुछ पर्यटन स्थलों के बारे में जानें...

समरहिल शिमला

शिमला लोकप्रिय हिल स्टेशन है। ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी से प्रसिद्ध यह शहर प्राकृतिक सुंदरता और वातावरण की वजह से पर्यटकों को दोबारा यहां आने पर मजबूर करता है। शिमला हवाई मार्ग से, रेल से और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। प्रसिद्ध टॉय ट्रेन कालका और शिमला के बीच चलती है। 96 किलोमीटर की दूरी को तय करने में इस ट्रेन को करीब साढ़े पांच घंटे का समय लगता है। सड़क मार्ग से चंडीगढ से शिमला की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है और साढ़े तीन घंटे में पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से भी शिमला पहुंचा जा सकता है। शिमला से 24 किलोमीटर की दूरी पर जुब्बड़हट्टी में चंडीगढ़ और दिल्ली से उड़ानें आती हैं और जुब्बड़हट्टी से टैक्सी से शिमला पहुंचा जा सकता है। रिज से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित जाखू हिल, हिल स्टेशन की 8000 फीट पर सबसे ऊंची चोटी है। इस पहाड़ी पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है।

मालरोड की सैर

रिज एक बाजार ही नहीं है बल्कि यह एक शहर सामाजिक केंद्र भी है। मालरोड और रिज की सैर जहां पर अंग्रेजी हुकूमत में घूमने पर रोक थी। यहां से चारों ओर शिमला के प्राकृतिक नजारों का लुत्फ लिया जा सकता है। रिज और मालरोड के एक किनारे पर मात्र 200 मीटर दूरी पर माता श्यामला का मंदिर जिसके नाम पर शिमला नाम पड़ा स्थित है। रिज पर क्राइस्ट चर्च शिमला की एक खास पहचान बन गई है। मालरोड की सैर के साथ ऐतिहासिक गेयटी थिएटर को देखने का मौका मिलता है। रिज के साथ मात्र 200 मीटर नीचे जाने पर आइसस्केटिंग रिंक है, जहां सर्दियों में प्राकृतिक बर्फ पर स्केटिंग का आंनद लिया जा सकता है।

मणिकर्ण और बिजली महादेव 

कुल्लू से 14 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर बिजली महादेव का मंदिर है। यहां का मुख्य आकर्षण 100 मीटर लंबी ध्वज छड़ी है। इस ध्वज पर लगभग हर साल बिजली गिरती है। मंदिर के अंदर शिवलिंग पर भी बिजली गिरती है, जिससे शिवलिंग खंडित हो जाता है। पुजारी खंडित शिवलिंग को मक्खन से जोड़ते हैं। कुल्लू से करीब 43 किलोमीटर दूर मणिकर्ण गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का पानी इतना गर्म होता है कि इसमें दाल और सब्जी पकाई जा सकती है।

शहीद स्‍मारक व शक्तिपीठ

शहर के बीचों-बीच घने पेड़ों से घिरा शहीद स्मारक उन वीर योद्धाओं की याद दिलाता है जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया है। शहीद स्मारक के बाहर रखा पाकिस्तान से जीता जंगी टैंक जवानों के शौर्य का प्रतीक है। यह टैंक पाकिस्तान से वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान जीता गया था। धर्मशाला से 11 किलोमीटर दूर डल झील, धर्मशाला में करीब 45 किलोमीटर दूर मसरूर में रॉक टैंपल, कांगड़ा शहर से करीब दो किलोमीटर दूर कांगड़ा किला, मां बज्रेश्वरी के मंदिर समेत कई दर्शनीय स्थल हैं।

कुल्लू-मनाली

कुल्लू घाटी को देवताओं की भूमि भी कहा जाता है। सर्दियों में यहां की चोटियां बर्फ की सफेद चादर से चमक उठती हैं। कुल्लू में द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में भूरे भालू, हिम तेंदुए, बाघ और विभिन्न प्रकार के हिमालयी पक्षी देखें जा सकते हैं। कुल्लू जाने के लिए बस और टैक्सी आसानी से उपलब्ध होती है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए भुंतर एयरपोर्ट है, जो कुल्लू से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यूं तो यहां हर मौसम में पर्यटकों की भीड़ रहती है, लेकिन बर्फबारी के दौरान इस शहर की रौनक कुछ अधिक बढ़ जाती है। कुल्लू के बीचोंबीच रघुनाथ जी का मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित रघुनाथ जी की मूर्ति राजा जगत सिंह ने अयोध्या से मंगवाई थी। दशहरा उत्सव पर रघुनाथ जी की शोभायात्रा के दौरान सभी देवताओं का दर्शन एक ही स्थान पर ढालपुर मैदान में किया जा सकता है। कुल्लू से करीब 20 किलोमीटर दूर नग्गर है। करीब 1400 साल तक यह कुल्लू की राजधानी रही है। यहां 16वीं शताब्दी में बने पत्थर और लकड़ी के आलीशान महल हैं जो अब होटल में बदल चुके हैं।

धौलाधार के आंचल में बसा धर्मशाला

धौलाधार के आंचल में बस कांगड़ा जिला का मुख्यालय धर्मशाला शहर...इसकी खूबसूरती शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। यहां शहीद स्मारक के साथ-साथ क्रिकेट स्टेडियम जैसे कई घूमने योग्य स्थान हैं। मैक्‍लोडगंज में दलाई लामा की मौजूदगी ने इस क्षेत्र में महता और बढ़ा दी है। केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट के कारण धीरे-धीरे स्मार्ट बन रहे इस शहर का स्वरूप में कुछ बदलता नजर आ रहा है। सड़क, रेल और हवाई यात्रा से भी धर्मशाला आसानी से पहुंचा जा सकता है। धर्मशाला से मात्र 22 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा रेलवे स्टेशन कांगड़ा मंदिर है। चंडीगढ़ से धर्मशाला 275 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 520 किलोमीटर की दूरी पर है। धर्मशाला से करीब 13 किलोमीटर दूर गगल स्थित हवाई अड्डे तक दिल्ली से एयर इंडिया और स्पाइस जेट की उड़ानें मिलती हैं।

ट्रेकिंग के शौकीनों का स्वर्ग

सर पास : बर्फ से ढके पहाड़ पर साहसिक ट्रेकिंग घाटी का सबसे रोमांचक ट्रेक हाई सर पास ट्रेक है। यह नगारू नामक कैंप साइट में नगाड़े की तरह गूंजती तेज हवाओं के लिए मशहूर है। बर्फ से ढके पहाड़ों पर सर पास तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। ट्रेकिंग गाइड यहां अपने जूतों को बर्फ में पीट कर एक निशान बनाता चलता है, जिन पर उनके पीछे चल रहे लोग चलते हैं। चुनौतियों से भरी इस ट्रेक में साहसिकता का आनंद लेने मई से सितंबर तक सैकड़ों ट्रेकर्स पार्वती घाटी आते हैं। इस ट्रेक का रूट कसोल-ग्रहण- पदरी-मिंग थात्च-नगारु-बिस्केरी-भंडक थात्च-बरशैनी से कसोल तक 9-10 दिन में पूरा किया जाता है।

चंद्रखानी पास

चंद्रखानी पास रोमांचक होने के साथ एक पवित्र तीर्थ-यात्रा भी है। चल गांव के निवासी गर्मियों में इस पास पर मलाना के देव ऋषि जमलू की पूजा कर प्रसाद बांटते हैं। ट्रेक के दौरान भी आप यहां गांव वालों द्वारा स्थापित पत्थर के देवों के दर्शन कर उनकी लोक कथाएं सुन सकते हैं और बर्फ में बैठकर गरमा-गरम चाय और मैगी का लुत्फ उठा सकते हैं। यह ट्रेक जरी से शुरू होकर योस्गो-मलाना से चंद्रखानी पास पहुंचता है।

चंबा शहर और खजियार

रावी नदी के तट पर बसा है चंबा शहर। प्रदेश की सीमा पर बसे होने के कारण चंबा में हिमाचल के साथ-साथ पंजाब, जम्मू और जनजातीय क्षेत्र की संस्कृति का भी प्रभाव दिखता है। विरासत के तौर पर यहां की चप्पलें भी प्रसिद्घ हैं। चंबा का भूरि सिंह संग्रहालय शहर और आसपास की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत से परिचय कराता है। चंबा जिले के उपमंडल सलूणी से 40 किलोमीटर दूर भलेई नामक गांव में प्रसिद्ध शक्तिपीठ भद्रकाली माता का मंदिर है। यह चंबा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। लक्ष्मीनारायण मंदिर मुख्य बाजार में है। मंदिर परिसर में श्री लक्ष्मी दामोदर मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर, श्रीदुर्गा मंदिर, गौरी शंकर महादेव मंदिर, श्रीचंद्रगुप्त महादेव मंदिर और राधा कृष्ण मंदिर हैं।

मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर खजियार चंबा से 22 किलोमीटर दूर है। स्विट्जरलैंड के राजदूत ने यहां की खूबसूरती से आकर्षित होकर सात जुलाई,1992 को खजियार को हिमाचल प्रदेश के 'मिनी स्विट्जरलैंड' का नाम दे गए। यहां का मौसम, चीड़ और देवदार के ऊंचे-लंबे पेड़, हरियाली, पहाड़ और वादियां स्विट्जरलैंड का एहसास कराती हैं। खजियार का आकर्षण चीड़ व देवदार के वृक्षों से ढकी झील है। अंग्रेजी शासन के समय सन 1854 में अस्तित्व में आए इस पर्यटन स्थल की दूरी चंबा से 192 किलोमीटर है। डलहौजी के साथ नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस व लेखक एवं साहित्यकार रविंद्र नाथ टैगोर जैसी महान हस्तियों का नाम भी जुड़ा है। चंबा से साठ किलोमीटर की दूरी पर धर्म मंदिर है। मान्यता है कि मरने के बाद हर व्यक्ति को इस मंदिर में जाना पड़ता है। मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। कहते हैं किसी की मौत के बाद धर्मराज महाराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं।

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