रेहड़ी वालों को दिल्ली सरकार ने दी बड़ी राहत, रिश्वतखोरी नहीं चलेगी

सूबे के लाखों रेहड़ी-पटरी वालों को बड़ी राहत देते हुए अरविंद केजरीवाल सरकार ने तय किया है कि तहबाजारी के लिए तय इलाकों में लग रहीं रेहड़ियों को नहीं हटाया जाएगा। सरकार ने शहरी विकास विभाग को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Thu, 19 Feb 2015 08:27 AM (IST) Updated:Thu, 19 Feb 2015 12:54 PM (IST)
रेहड़ी वालों को दिल्ली सरकार ने दी बड़ी राहत, रिश्वतखोरी नहीं चलेगी

नई दिल्ली [अजय पांडेय]। सूबे के लाखों रेहड़ी-पटरी वालों को बड़ी राहत देते हुए अरविंद केजरीवाल सरकार ने तय किया है कि तहबाजारी के लिए तय इलाकों में लग रहीं रेहड़ियों को नहीं हटाया जाएगा। सरकार ने शहरी विकास विभाग को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।

एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार, दिल्ली के रेहड़ी-पटरी वाले प्रतिवर्ष विभिन्न सरकारी महकमों को करीब 600 करोड़ रुपये की रिश्वत देते हैं। समझा जा रहा है कि सरकार के ताजा फरमान से इस रिश्वतखोरी पर रोक लगेगी।

उच्चपदस्थ सूत्रों ने बताया कि तयशुदा इलाकों से रेहड़ी-पटरी वालों को अगले आदेश तक नहीं हटाने संबंधी आदेश बुधवार को जारी कर दिए गए हैं। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब किसी नए रेहड़ी वाले को जगह नहीं उपलब्ध कराई जाएगी।

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आपको बता दें कि चुनाव प्रचार के दौरान बड़ी संख्या में रेहड़ी-पटरी वालों ने आप नेताओं से यह शिकायत की थी कि तहबाजारी के लिए तय इलाकों में भी उन्हें रेहड़ी नहीं लगाने दिया जाता।

राजधानी में रेहड़ी-पटरी वालों की संख्या छह लाख तक बताई जाती है। कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने रेहड़ी पटरी वालों को संरक्षण देने के लिए एक कानून पारित किया था। इसमें कहा गया कि शहर की कुल आबादी के कम से कम 2.5 फीसद आबादी को तहबाजारी के तहत रेहड़ी-पटरी लगाने की इजाजत दी जानी चाहिए।

इसके लिए सभी रेहड़ी वालों के लिए लाइसेंस लेना जरूरी किया गया था, लेकिन दिल्ली में अब तक केवल 50 हजार रेहड़ी वालों ने ही लाइसेंस लिया है। दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली में इस कानून को अब तक लागू नहीं किया गया है।

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नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया (एनएएसवीआई) के प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्य सचिव दीपक मोहन स्पोलिया से मुलाकात की थी और उनसे दिल्ली में पिछले साल 1 मई से लागू इस कानून पर अमल करने की मांग की थी। इसी संगठन के अध्ययन में बताया गया है कि दिल्ली के 95 फीसद रेहड़ी वालों के पास लाइसेंस नहीं है।

सनद रहे कि एनजीओ मानुषी द्वारा वर्ष 2001 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में प्रतिवर्ष रेहड़ी-पटरी वालों को करीब 600 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। इसमें रिश्वतखोरी के लिए दी जाने वाली रकम और इनके सामान की बर्बादी शामिल है। मानुषी की प्रमुख मधु किश्वर ने कहा कि अध्ययन में पाया गया कि नेहरू प्लेस में वर्ष 1972 में रेहड़ी वाले प्रतिदिन 50 पैसे की रिश्वत देते थे, जबकि अब पिछले वर्षो तक रकम प्रति रेहड़ी 500 से 800 रुपये तक पहुंच गई थी।

बता दें कि रेहड़ी वालों को लाइसेंस देने का काम दिल्ली के नगर निगमों का है। लाइसेंस देने के लिए निगम वाले तरह-तरह के कागजात मांगते हैं, जो बाहर से दिल्ली में आए लोगों के पास है नहीं। लिहाजा, इनके लाइसेंस नहीं बन पाते और इसीलिए इनको रिश्वत देनी पड़ती है।

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