भारत की सैन्य ताकत में इजाफा, 36 राफेल विमानों के लिए फ्रांस से करार

कई दौर की बातचीत और उतार चढ़ाव के बीच अब राफेल विमान भारतीय वायुसेना के हिस्सा होंगे। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री ने इस डील पर हस्ताक्षर किए।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Fri, 23 Sep 2016 03:10 AM (IST) Updated:Fri, 23 Sep 2016 08:10 PM (IST)
भारत की सैन्य ताकत में इजाफा, 36 राफेल विमानों के लिए फ्रांस से करार

नई दिल्ली, (जेएनएन)। शुक्रवार का दिन भारत-फ्रांस के रक्षा इतिहास में सदैव के लिए अंकित हो गया। कई दौर की बातचीत और उतार चढ़ाव के बीच आज भारत और फ्रांस ने राफेल डील पर मुहर लगा दी। 7.8 बिलियन यूरो वाले 36 राफेल विमान अब भारतीय वायु सेना के हिस्सा हो जाएंगे। राफेल डील पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री ज्यां जीन यीव्स ली ड्रियान ने साउथ ब्लॉक में हस्ताक्षर किए।

इस डील के तहत भारत 2019 तक 36 राफेल लड़ाकू विमान फ्रांस से हासिल करेगा। ये सौदा 7.8 बिलियन यूरो यानि करीब 59 हजार करोड़ रुपए का है। पिछले 20 साल में यह लड़ाकू विमानों की खरीद का पहला सौदा है।

जानिए क्या है राफेल विमान की खासियत, देखें तस्वीरें

इससे पहले भारतीय वायुसेना को अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने के फैसले के तहत मोदी सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल लड़ाकू विमान के सौदे की मंजूरी दे दी है।

पढ़ेंः राफेल सौदे पर कांग्रेस ने बोला मोदी सरकार पर हमला

राफेल का अर्थ
फ्रांस में राफेल का मतलब तूफान होता है। बीते महीने रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी कहा था कि राफेल डील अब ‘निर्णायक अवस्था’ में है। पिछले 20 साल में यह लड़ाकू विमानों की खरीद का पहला सौदा होगा। इसमें अत्याधुनिक मिसाइल लगी हुई हैं जिससे भारतीय वायु सेना को मजबूती मिलेगी। रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने राफेल डील को अच्छा सौदा बताते हुए कहा कि ये सौदा बेहतर शर्तों पर किया गया एक बेहतरीन सौदा है।

वर्षों से अटका पड़ा था सौदा
इस सौदे के लिए बातचीत 1999-200 में शुरू हुई थी। लेकिन सौदा किसी ना किसी कारण से अटका हुआ था। रक्षा सूत्रों के मुताबिक इस लड़ाकू विमान की खरीद पर यूपीए सरकार के समय की कीमत से करीब 560 करोड़ बचा रही है। राफेल सौदे पर हस्ताक्षर होने के 36 महीने के भीतर यानी 2019 में विमान आना शुरू हो जाएंगे। सभी 36 विमान 66 महीने के भीतर भारत आ जाएंगे।

क्या है राफेल विमान की खासियत?
- राफेल लड़ाकू विमानों को फ्रांस की डसाल्ट एविएशन कंपनी बनाती है। यह एक बहुउपयोगी लड़ाकू विमान है।
- एक विमान की लागत 70 मिलियन आती है। इसकी लंबाई 15.27 मीटर है और इसमें एक या दो पायलट बैठ सकते हैं।
- जानकार बताते हैं कि राफेल ऊंचे इलाकों में लड़ने में माहिर है। राफेल एक मिनट में 60 हजार फुट की ऊंचाई तक जा सकता है। हालांकि अधिकतम भार उठाकर इसके उड़ने की क्षमता 24500 किलोग्राम है।
- विमान में ईंधन क्षमता 4700 किलोग्राम है। राफेल की अधिकतम रफ्तार 2200 से 2500 तक किमी प्रतिघंटा है और इसकी रेंज 3700 किलोमीटर है।
- इसमें 1.30 mm की एक गन लगी होती है जो एक बार में 125 राउंड गोलियां निकाल सकती है।
- इसके अलावा इसमें घातक एमबीडीए एमआइसीए, एमबीडीए मेटेओर, एमबीडीए अपाचे, स्टोर्म शैडो एससीएएलपी मिसाइलें लगी रहती हैं।
- इसमें थाले आरबीई-2 रडार और थाले स्पेक्ट्रा वारफेयर सिस्टम लगा होता है। साथ ही इसमें ऑप्ट्रॉनिक सेक्योर फ्रंटल इंफ्रा-रेड सर्च और ट्रैक सिस्टम भी लगा है।
- अमेरिका, जर्मनी और रूस चाहते हैं कि भारत उनसे लड़ाकू विमान खरीदे। अमेरिका भारत को एफ-16 और एफ-18, रूस मिग-35, जर्मनी और ब्रिटेन यूरोफाइटर टायफून और स्वीडन ग्रिपन विमान बेचना चाह रहे थे, लेकिन मोदी सरकार ने राफेल को खरीदने का फैसला किया है।

पढ़ेंः रॉफेल लड़ाकू विमान को हरी झंडी, शुक्रवार को होगा फ्रांस के साथ समझौता

राफेल विमान का इतिहास
राफेल विमान फ्रांस की दासौल्ट कंपनी द्वारा बनाया गया 2 इंजन वाला लड़ाकू विमान है। 1970 में फ्रांसीसी सेना ने अपने पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमानों को बदलने की मांग की। जिसके बाद फ्रांस ने 4 यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान की परियोजना पर काम शुरू किया। बाद में साथी देशों से मतभेद होने के बाद फ्रांस ने इस पर अकेले ही काम शुरू कर दिया।
हालांकि इस पर काम 1986 में ही शुरू हो गया था, लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद बदले समीकरणों में बजट की कमी और नीतियों में अड़ंगों के चलते ये परियोजना लेट हो गई। 1996 में पहला विमान फ्रांसीसी वायुसेना में शामिल होना था लेकिन ये 2001 में शामिल किया जा सका। यह लड़ाकू विमान तीन संस्करणों में उपलब्ध है। इसमें राफेल सी सिंगल सीट वाला विमान है जबकि राफेल बी दो सीट वाला विमान है। वहीं राफेल एम सिंगल सीट कैरियर बेस्ड संस्करण है।

राफेल को फ्रांसीसी वायुसेना और जलसेना में 2001 में शामिल किया गया। बाद में बिक्री के लिए इसका कई देशों में प्रचार भी किया गया, लेकिन खरीदने की हामी सिर्फ भारत और मिश्र ने भरी। राफेल को अफगानिस्तान, लीबिया, माली और इराक में इस्तेमाल किया जा चुका है। इसमें कई अपग्रेडेशन कर 2018 तक इसमें बड़े बदलाव की भी बात कही जा रही है।

भारत ने राफेल को क्यों चुना?
वित्तीय कारणों से भारतीय वायु ने लंबे टेस्ट के बाद राफेल को चुना। वायु सेना के पास एफ-16 और एफ-18, रूस मिग-35, यूरोफाइटर टायफून और ग्रिपन विमान का विकल्प था, लेकिन यूरोफाइटर टायफून सबसे महंगा है और मिग के बारे में अब संदेह होने लगा है। इस कारण भी राफेल को खरीदने का फैसला किया गया है।

जानकार बताते हैं कि राफेल ऊंचे इलाकों में लड़ने में माहिर है और भारत तथा चीन के बीच हिमालय का ऊंचा इलाका है, जहां राफेल मददगार साबित होगा। हालांकि यूरोफाइटर टायफून इस मामले में राफेल से आगे है। वायुसेना के मुताबिक उड़ान भरते वक्त राफेल की रफ्तार 1912 किलोमीटर प्रति घंटा है और ये 3700 किलोमीटर तक जा सकता है। जबकि यह हवा से जमीन में मार करने में टायफून से ज्यादा कारगर माना जा रहा है।
राफेल खरीदने का एक और कारण यह भी है कि भारतीय वायुसेना राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासौल्ट का मिराज 2000 विमान पहले से इस्तेमाल कर रही है। कारगिल युद्ध में मिराज विमानों ने सफलतापूर्वक कार्य को अंजाम दिया था।

पढ़ेंः रॉफेल लड़ाकू विमान सौदा अब भरेगा उड़ान

chat bot
आपका साथी