नक्सलियों की अब खैर नहीं, कुछ ऐसी होती है हाईटैक कोबरा कमांडो फोर्स
कोबरा कमांडो का नाम सुनते ही नक्सलियों के माथे पर पसीना आना शुरू हो जाता है। इसकी वजह है कि यह कमांडो नक्सलियों को इन्हीं की भाषा में जवाब देने में माहिर होते हैं।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। हाल ही में सुकमा में नक्सलियों के हमले में 25 जवानों को खाेने के बाद केंद्र ने इस पूरे इलाके में कोबरा बटालियन के दो हजार जांबाजों को तैनात करने का फैसला लिया है। कोबरा कमांडो के लिए न तो यह जगह नई है और न ही नक्सलियों द्वारा किया जाने वाला गौरिल्ला युद्ध। कोबरा कमांडो भारत की उन्ा आठ स्पेशलाइज फोर्सेज का हिस्सा हैं जिन्हें हर तरह के हालात में दुश्मन से लड़ने की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है। यह न सिर्फ हाईटैक वेपंस सिस्टम से लैस होंगे बल्कि इनके पास अपने ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए सभी तरह अत्याधुनिक तकनीक भी होगी। लिहाजा अब नक्सलियों की खैर नहीं, क्योंकि उनके सामने अब काेबरा कमांडो होंगे।
2009 में गठित हुई थी कोबरा कमांडो
वर्ष 2009 में कोबरा कमांडो का गठन किया गया था। भारत की आठ स्पेशलाइज फोर्सेज में से एक कोबरा कमांडो को नक्सली इलाकों में इनका सफाया करने के लिए ही गठित किया गया था। इस कोबरा कमांडो में सीआरपीएफ के बेहतरीन जवानों को शामिल किया जाता है। कोबरा (CoBRA) का अर्थ है कमांडो बटालियन फॉर रिसॉल्यूट एक्शन (Commando Battalion for Resolute Action)। इस कमांडो फोर्स के गठन के पीछे मकसद नक्सलियों के हमले में मारे गए जवान ही बने थे। लिहाजा गृह मंत्रालय ने इनके गठन को मंजूरी देते हुए दस ऐसी बटालियन बनाने को कहा था। इस आदेश के बाद वर्ष 2008-09 में इसकी दो, वर्ष 2009-10 में चार और 2010-11 में फिर चार बटालियन तैयार की गईं।
विपरीत परिस्थितियों के लिए बिल्कुल फिट
नक्सली इलाकों में होने वाले गौरिल्ला युद्ध को देखते हुए इन कमांडो को जबरदस्त ट्रेनिंग से गुजरना होता है। ट्रेनिंग के दौरान न सिर्फ इनकी शारीरिक कुशलता को आंका जाता है बल्कि मानसिक तौर पर भी इन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है। ट्रेनिंग में इन्हें गौरिल्ला युद्ध, फील्ड इजींनियरिंग, जमीन के नीचे मौजूद बमों को पहचानने और उन्हें निष्कर्य करने, जंगल में भूखे प्यासे होने की सूरत में वहां की चीजों से पेट भरने और अपने को हर हाल में युद्ध के लिए तैयार रखने की ट्रेनिंग दी जाती है।
जंगल वारफेयर की कड़ी ट्रेनिंग
जंगल वारफेयर के नाम से दी जाने वाली इस ट्रेनिंग को पार करना इनके लिए बड़ी चुनौती होती है। इसके अलावा इस बटालियन से जुड़े हर कमांडो को समय आने पर टीम को लीड करने के साथ जीपीएस डिवाइस का इस्तेमाल करते हुए और सभी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ने, सामने आने वाली इंटेलिजेंस रिपोर्ट के आधार पर अपनी तैयारी करने, जंगल में रहते हुए नक्शे की मदद से नक्सली इलाकों का पता लगाने जैसी अहम ट्रेनिंग भी दी जाती है। कड़ी ट्रेनिंग से गुजरने से गुजरने के बाद भी नक्सली इलाकों में होने वाले ऑपरेशन से पहले इसकी तैयारी के तहत एक डमी ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है। इनके लिए खासतौर पर कोबरा स्कूल ऑफ जंगल वारफेयर एंड टेक्टिस भी बनाया गया है।
रोटी नहीं तो सांप ही खाते हैं कोबरा कमांडो
कोबरा कमांडो के लिए नक्सली इलाके कहीं से भी नए नहीं हैं। जब-जब कोबरा कमांडो की इन इलाकों में तैनाती की गई है तब-तब नक्सलियों की शामत आई है। जंगल में एंट्री के साथ ही कोबरा कमांडो का ऑपरेशन शुरू हो जाता है। इसके बाद रोटी नहीं भी मिलती है तो इनके लिए यहां पाए जाने वाले सांप ही इनका भोजन होता है। इसके अलावा कुछ खास पेड़ों के पत्ते और इनसे मिलने वाले फलों पर गुजारा कर यह अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।
मिल चुके हैं 9 गैलेंट्री अवार्ड
कोबरा कमांडो के हाथों 61 नक्सली अब तक ढेर किए जा चुके हैं, जबकि 866 को पकड़ा गया है। इनके रहते कई बार नक्सली इलाकों से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारुद बरामद किया गया है। अपने सफल ऑपरेशन की बदौलत यह बटालियन अब तक 9 गैलेंट्री अवार्ड और दो शौर्य चक्र तक पा चुकी है।
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अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं ये कमांडो
कोबरा कमांडो के पास बेहतरीन और अत्याधुनिक हथियार होते हैं जो रात हो या दिन सभी तरह के ऑपरेशन में बेहद कारगर साबित होते हैं। इनके पास मौजूद हथियारों में इंसास राइफल, एके राइफल्स, X-95 असाल्ट राइफल्स, हाईपावर ब्राॅनिंग, ग्लॉक पिस्टल, हैकलर और कोच एमपी 5 सबमशीनगन, कार्ल गुस्ताव राइफल्स जैसे हथियार शामिल होते हैं। इनके अलावा इनके पास इलेक्ट्रॉनिक सर्विलॉन्स सिस्टम, स्नाइपर टीम जिनके पास ड्रेगुनॉव एसवीडी, माउजर SP66, हैकलर एंड कोच MSG-90 स्नापर राइफल्स होती है। इनके पास मौजूद हथियारों की एक बड़ी खासियत यह है कि इन्हें इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्टरी में ही बनाया जाता है। इन हथियारों को लेकर इनकी एक खास ट्रेनिंग भी होती है।
कहीं भी, कभी भी किए जा सकते हैं एयरड्रॉप
कोबरा कमांडो के बटालियन का हर सदस्य हैली जंप में माहिर होता है। इसका अर्थ होता है कि इन्हें कहीं भी एयरड्रॉप किया जा सकता है। दिन-रात इनके लिए कोई मायने नहीं रखते हैं। इनकी स्नाइपर टीम के सभी सदस्यों के सिर पर लगे अत्याधुनिक तकनीक से लैस हेलमेट होता है।
कोबरा कमांडो के सफल ऑपरेशन
17 सितंबर 2009 में दंतेवाड़ा में करीब 40 माओवादी इनके हाथों मारे गए थे।
9 जनवरी 2010 को दंतेवाड़ा में ही चार माओवादी मार गिराए गए और काफी संख्या में हथियार ओर गोला-बारुद बरामद किया गया।
जून 2010 में सिंघभूम में चलाए गए ऑपरेशन में माओवादियों के कई कैंपों को ध्वस्त कर दिया गया और करीब 12 माओवादियों को मार गिराया गया था।
15 जून 2010 को मिदनापुर में चलाए गए ऑपरेशन में आठ माओवादियों को ढेर कर दिया गया और काफी संख्या में हथियार और गोलाबारुद बरामद किया गया।
25 जून 2010 को एक बार फिर से मिदनापुर में ही चलाए गए ऑपरेशन में छह माओवादी मारे गए और काफी संख्या में हथियार और गोलाबारुद बरामद किया गया।
24-28 सितंबर 2010 के दौरान सिंघभूम में चलाए गए ऑपरेशन में कोबरा कमांडा बेहद घने जंगल के भीतर घुसने में सफल रही और माओवादियों के 12 कैंपों को ध्वस्त किया। साथ एक को ढेर कर चार अन्यों को धर दबोचा था। यहां से भी बटालियन को काफी संख्या में हथियार, माओवादी लिट्रेचर और गोलाबारुद बरामद किया गया था।
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