दलाई लामा के बयान को अन्यथा नहीं लेना चाहिए

यह पहला मौका है कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के बयान पर देश की राजनीति में तीखी प्रतिक्रिया दर्ज हुई है। लंबे राजनीतिक अनुभव के कारण दलाई लामा हमेशा ही भारत की राजनीति में संतुलन स्थापित कर ही कोई प्रतिक्रिया दर्ज करते रहे हैं लेकिन अब राजनीतिक शक्तियों के हस्तांतरण

By Gunateet OjhaEdited By: Publish:Mon, 16 Nov 2015 10:23 PM (IST) Updated:Mon, 16 Nov 2015 10:26 PM (IST)
दलाई लामा के बयान को अन्यथा नहीं लेना चाहिए

धर्मशाला। यह पहला मौका है कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के बयान पर देश की राजनीति में तीखी प्रतिक्रिया दर्ज हुई है। लंबे राजनीतिक अनुभव के कारण दलाई लामा हमेशा ही भारत की राजनीति में संतुलन स्थापित कर ही कोई प्रतिक्रिया दर्ज करते रहे हैं लेकिन अब राजनीतिक शक्तियों के हस्तांतरण के बाद वह राजनीति से संन्यास लेकर एक धर्मगुरु की भूमिका में हैं।

भारत तिब्बत सहयोग मंच के अध्यक्ष एवं केंद्रीय विश्र्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के कुलपति डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा है कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा द्वारा बिहार चुनाव के संबंध में कही गई बात को अन्यथा नहीं लेना चाहिए। उन्होंने यह बात एक बड़े परिपेक्ष्य के रूप में कही है। भारत के लोकतंत्र की परिपाटी रही है स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति। यही भारत के लोकतंत्र की मूल ताकत है। उनके एक संत के नाते अगर कोई ऐसा भाव हो तो उसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि चुनाव परिणाम कुछ भी हों लेकिन यह परिणाम लोकतंत्र की मजबूती ही के तो संकेत देते हैं।

उधर शिमला में बुद्धिस्ट लर्निंग एंड प्रीजरवेशन सोसायटी के मुख्य संरक्षक व लाहुल स्पीति के विधायक एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष रवि ठाकुर ने कहा कि धर्मगुरु दलाई लामा के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है। वे सिर्फ शांति की बात करते हैं। सोमवार को पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि दलाई लामा अवलोकी हितेश्र्वर के 14वें अवतार माने जाते हैं। दलाईलामा तो भारत को गुरु मानते हैं। उनके बयान पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

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