चंदन से महकेगा किसानों का भाग्य, गैर-परंपरागत राज्यों में भी होने लगी खेती, सरकार ने लिए बड़े फैसले

चंदन उत्पाद के अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की हिस्सेदारी 80 फीसद तक है लेकिन इस क्षेत्र में अब आस्ट्रेलिया से कड़ी चुनौती मिलने लगी है। बाजार में स्थिति बनाए रखने के लिए सरकार ने चंदन के अधिक से अधिक पौधे लगाने को प्रोत्साहन देना शुरू किया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 07:57 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 01:36 AM (IST)
चंदन से महकेगा किसानों का भाग्य, गैर-परंपरागत राज्यों में भी होने लगी खेती, सरकार ने लिए बड़े फैसले
सरकार ने चंदन के अधिक से अधिक पौधे लगाने को प्रोत्साहन देना शुरू किया है।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। चंदन की लकड़ी, तेल, इत्र और इसके अन्य उत्पादों की बढ़ती घरेलू और वैश्विक मांग को देखते हुए इसके पौधारोपण के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। चंदन उत्पाद के अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की हिस्सेदारी 80 फीसद तक है। लेकिन हाल के वर्षों में इस कारोबार में आस्ट्रेलिया के कड़ी चुनौती मिलने लगी है। बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए सरकार ने चंदन के अधिक से अधिक पौधे लगाने को प्रोत्साहन देना शुरू किया है।

गैर-परंपरागत राज्यों में भी हो रही खेती

चंदन कारोबार पर लगे प्रतिबंध को जहां कई राज्यों में हटा लिया गया है, वहीं गैर-परंपरागत राज्यों में भी चंदन की खेती होने लगी है। इसकी खेती के प्रति युवा किसानों का आकर्षण बढ़ा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसके लिए इसकी वैज्ञानिक खेती के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है।

बाजार में भारी मांग 

बैक्टीरिया-रोधी गुणों से लैस चंदन का उत्पाद कैंसर-रोधी भी होता है, जिसका उपयोग विभिन्न दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। दुनियाभर में भारत और आस्ट्रेलिया चंदन के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। ग्लोबल बाजार में अमेरिका के अलावा चीन, जापान और अन्य एशियाई देशों में भी चंदन के उत्पादों की बड़ी मांग है। दूसरी तरफ इसका घरेलू बाजार भी बहुत बड़ा है।

सरकार ने शुरू की विशेष परियोजना

बाजार के जानकारों का अनुमान है कि अगले एक से डेढ़ दशक में चंदन का अंतरराष्ट्रीय बाजार 300 करोड़ डालर यानी करीब 25,000 करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है। बाजार की इस बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसके लिए विशेष परियोजना शुरू की है। निर्यात मांग को पूरी करने के लिए गुणवत्तायुक्त चंदन के उत्पाद तैयार करने की दिशा में प्रयास चालू कर दिए गए हैं।

चंदन की खेती को प्रोत्‍साहन 

चंदन के परंपरागत राज्यों में बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट आफ वुड साइंस एंड टेक्नोलाजी के सहयोग से चंदन की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके तहत किसानों को प्रशिक्षण का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस दौरान किसानों को इसके फायदे, बीजों का प्रबंधन, नर्सरी तकनीक और पौधे के स्वास्थ्य जैसे विषयों को विस्तार से बताया जा रहा है।

...ताकि कायम रहे भारत की धाक 

संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि दरअसल चंदन की खेती की कला विलुप्त होती जा रही है। इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि चंदन निर्यात बाजार में भारत की धमक कायम रहे। भारत में आमतौर पर कर्नाटक और तमिलनाडु के जंगलों में चंदन के पेड़ पाए जाए थे, जिसकी खेती प्रतिबंधित थी लेकिन वर्ष 2001-02 दोनों राज्यों ने इस कानून को हटाकर इसके खेती को बढ़ावा देने का फैसला लिया। उसके बाद इसकी खेती का तेजी से प्रसार हुआ है।

ऐसे बदल रही सूरत गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तमिलनाडु और कर्नाटक में लगातार चंदन की बागवानी बढ़ रही है घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण, कारोबार, निर्यात बाजार की चुनौतियों से निपटने के गुर सिखाए जा रहे हैं किसानों को बीजों का प्रबंधन, नर्सरी तकनीक और पौधे के स्वास्थ्य जैसे विषयों की विस्तार से जानकारी दी जा रही है

तेजी से बढ़ी हैं कीमतें 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुल 6000-7000 टन प्रति वर्ष की मांग है। मांग के मुकाबले आपूर्ति कम होने से कीमतें बहुत तेजी से बढ़ी हैं। इस समय इंडोनेशिया और मलेशिया में भी चंदन की बागवानी हो रही है। लेकिन चंदन के पेड़ों को पूरी तरह तैयार होने में 15 से 20 साल का लंबा समय लगता है।

भारत के इन राज्‍यों में खेती को बढ़ावा 

आस्ट्रेलिया में 9000 हेक्टेयर रकबा में चंदन का प्लांटेशन किया गया है। इस प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने के लिए भारत के गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तमिलनाडु और कर्नाटक में लगातार चंदन प्लांटेशन बढ़ रहा है। घरेलू स्तर पर चंदन की बागवानी, प्रसंस्करण, कारोबार, निर्यात बाजार की चुनौतियों से निपटने के गुर सिखाने के लिए विभिन्न स्तर पर उपाय किए जा रहे हैं। 

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