कांग्रेस को समझना होगा सिर्फ सम्‍मेलन बुलाने से पूरी नहीं होगी सोशल इंजीनियरिंग

वास्तव में मुख्य चुनावाें में लगातार पराजय से उबरने की छटपटाहट में कांग्रेस जो कवायदें कर रही है उनमें कोई समस्या नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Sat, 16 Jun 2018 12:07 PM (IST) Updated:Sat, 16 Jun 2018 01:02 PM (IST)
कांग्रेस को समझना होगा सिर्फ सम्‍मेलन बुलाने से पूरी नहीं होगी सोशल इंजीनियरिंग
कांग्रेस को समझना होगा सिर्फ सम्‍मेलन बुलाने से पूरी नहीं होगी सोशल इंजीनियरिंग

[अवधेश कुमार] कांग्रेस पार्टी ने जिस तैयारी और उम्मीद से राजधानी दिल्ली में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन बुलाया था उसकी तात्कालिक परिणति हमारे सामने है। सम्मेलन में उन्होंने कहा कि पिछड़ी जातियों में हुनर की कोई कमी नहीं। उनके लिए बैंकों का दरवाजा खुलना चाहिए। तो आपने खोला क्यों नहीं? सत्ता जाने के बाद ही आपको याद आया है कि ऐसा होना चाहिए। यदि हमारे यहां आम हुनर वाले लोगों को उस तरह का अवसर और सहयोग नहीं मिलता जिस तरह विदेशों में तो इस स्थिति के लिए मुख्य रूप से किसे जिम्मेदार माना जाए? आरंभ से शासन करने वाली पार्टी ने जो ढांचा तैयार किया उसकी ही परिणति तो है यह। इसके पहले अप्रैल में कांग्रेस ने संविधान बचाओ दलित सम्मेलन किया था। उसमें दलितों को केंद्रित ऐसी ही बातें राहुल गांधी ने कही थी।

कांग्रेस अगर समझती है कि ऐसे सम्मेलन बुलाने और उसमें इस तरह के भाषण से उसका सोशल इंजीनियरिंग का लक्ष्य पूरा हो जाएगा तो स्पष्ट है कि अभी तक वह यह समझ ही नहीं पाई है कि ये वर्ग उससे विलग क्यों हैं। जो आरोप राहुल गांधी भाजपा सरकार पर लगा रहे हैं वही आरोप भाजपा कांग्रेस पर लगा रही है। वह कह रही है कि कांग्रेस अपने शासनकाल में पिछड़ों एव दलितों का जीवन स्तर सुधारने में पूरी तरह विफल रही। यही आरोप भाजपा उन पार्टियों पर भी लगा रही है जिनकी पूरी राजनीति ही पिछड़ों तथा दलितों पर टिकी है। यह सच है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अन्य पिछड़ी जातियों का एक तिहाई से ज्यादा मत मिला था। यही स्थिति दलित समुदाय में भी थी। यह अपने-आप तो नहीं हुआ।

राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को समझना चाहिए कि दलित सम्मेलन करने के बावजूद कर्नाटक चुनाव में उसे दलितों का अपेक्षित वोट नहीं मिला। आज की स्थिति में सबसे ज्यादा दलित एवं पिछड़े सांसद तथा विधायक भाजपा के हैं। अगर इसको धक्का पहुंचाना है तो कांग्रेस को अपने अभियान को ज्यादा तर्कपूर्ण और धारदार बनाना चाहिए था जो वह नहीं कर पाई है।1हालांकि लोकतंत्र के भविष्य के लिए तो अच्छा यही होगा कि पार्टियां जातियों और संप्रदायों के समीकरण से ऊपर उठकर आचरण करें। चुनावी विजय के लिए जातीय-सांप्रदायिक समीकरणों पर फोकस ने हमारे लोकतंत्र को विकृत ही किया है। किंतु अभी ऐसा हो रहा है और कांग्रेस भी इसमें शामिल है इसलिए इस समय यह प्रश्न महत्वपूर्ण हो गया है कि आखिर उसका यह प्रयास कितना असरदार साबित होगा? 2019 के आम चुनाव के पूर्व राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव हैं।

इनमें भाजपा का शासन है। वहां कांग्रेस अकेले ही भाजपा के मुकाबले में है। इन तीनों राज्यों में पिछड़ी जातियों एवं अनुसूचित जाति-जनजातियों की संख्या अच्छी है। इन वर्गो के मतदाता चुनाव परिणाम को निर्धारित कर सकते हैं। अगर कांग्रेस पार्टी पिछड़ी जातियों में पैठ बनाना चाहती है तो उसे यह भी बताना होगा कि उसके यहां इस जाति का चेहरा कौन है। भाजपा के पास तो सबसे बड़ा पिछड़ा चेहरा नरेंद्र मोदी ही हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले वर्ष ही अति पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर यानी मलाइदार परत की जो सीमा 6 लाख थी उसे 8 लाख कर दिया। यानी अब आठ लाख तक की आय वाले आरक्षण का लाभ ले सकेंगे। इस कारण आरक्षण के दायरे में बड़ी आबादी आ गई। इसी तरह उसने 15 जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किया।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने अन्य पिछड़ी जातियों में उप श्रेणी बनाने का सुझाव दिया था। इसका आशय यह था कि इनके अंदर भी जो जातियां आरक्षण का लाभ अपनी आबादी के अनुरूप नहीं पा रही हैं उन पर फोकस किया जाए। इसके लिए मोदी सरकार ने एक आयोग का गठन कर दिया था। इसे ऐसी जातियों को चिन्हित करना था जो आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ ले रही हैं तथा ऐसी जातियों को भी जो लाभ लेने में पीछे हैं। इसे मोस्ट बैकवार्ड क्लास यानी अति पिछड़ी जातियां नाम दिया जा रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दिया है कि इन जातियों को आरक्षण का पूरा लाभ मिले इसके लिए सरकार जल्द ही कदम उठाने वाली है। उन्हाेंने कहा कि सरकार चाहती है कि यह वर्ग घोषित सीमा के अंदर सरकार की आरक्षण नीति से ज्यादा लाभान्वित हो।

इसका मतलब है कि सरकार आयोग की रिपोर्ट के आधार पर इनको अति पिछड़ा वर्ग के लिए घोषित 27 प्रतिशत आरक्षण में एक निश्चित हिस्सा दे सकती है। पिछड़े वर्ग में अति पिछड़ा वर्ग की संख्या काफी मानी जाती है, लेकिन वे बिखरे हुए हैं। संभव है सरकार के इस कदम के बाद वह वर्ग भाजपा का समर्थन आधार बन जाए। यही आशंका कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों को अंदर से परेशान कर रही है। मोदी सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए संसद में विधेयक लाई थी। लोकसभा में यह पारित हो गया, पर राज्यसभा में कांग्रेस ने उसमें संशोधन प्रस्ताव लाकर अड़गा लगा दिया। कांग्रेस क्या सोचती है कि पिछड़ी जातियों के अंदर जो जागरूक लोग हैं वे नहीं जानते कि विधेयक को कांग्रेस ने रोका।

वास्तव में मुख्य चुनावाें में लगातार पराजय से उबरने की छटपटाहट में कांग्रेस जो कवायदें कर रही है उनमें कोई समस्या नहीं है। हर पार्टी चुनाव में विजय के लिए जितना यत्न संभव हो करती है। उसमें जातीय समीकरण बनाना भी शामिल है। इसलिए कांग्रेस अगर पिछड़ी जातियों के बीच अपना जनाधार बढ़ाने के लिए काम करना चाहती है तो उसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। किंतु राजधानी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित पिछड़ा वर्ग सम्मेलन से यह साफ हो गया कि उसके पास इसकी न कोई ठोस योजना है न दिशा। यही कारण है कि पिछड़ी जातियों से संबंधित ऐसे मुद्दे उठाने से राहुल गांधी वंचित रह गए जिनको सुनने के बाद शायद लोग इस प्रयास को गंभीरता से लेते। केवल यह कह देने से तो पिछड़ी जाति के मतदाता उनकी ओर आने से रहे कि भाजपा सरकार पिछड़ी जातियों की उपेक्षा कर रही है और कांगेस उन्हें उचित हिस्सेदारी देगी।

[लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं]

chat bot
आपका साथी