NGT ने कहा- प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियमों के दायरे में 'पेन', इसके बेरोकटोक इस्तेमाल के खिलाफ दायर की गई याचिका
हर रोज 27 लाख पेन का उत्पादन किया जाता है और इसका निस्तारण संभव नहीं। इसे जलाने से प्रदूषण होता है। प्लास्टिक पेन के बेरोक टोक इस्तेमाल के खिलाफ दायर की गई याचिका में बॉय बैक (वापस खरीदी) की नीति लागू करने का सुझाव दिया है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। प्लास्टिक की पेन यानि कलम के बेरोकटोक इस्तेमाल को लेकर दायर की गई याचिका पर गुरुवार को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने अपना पक्ष पेश किया। अधिकरण ने कहा है कि प्लास्टिक पेन प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियमों के दायरे में आता हैै। साथ ही NGT ने पर्यावरण मंत्रालय (Environment Ministry) को उत्पादकों के लिए कचरा प्रबंधन से संबंधित विस्तारित जवाबदेही (EPR) तय करने का निर्देश दिया है।
प्लास्टिक की परिभाषा के दायरे में आता है 'पेन'
एनजीटी अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल (Adarsh Kumar Goyal) की अध्यक्षता वाली पीठ ने ईपीआर के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को राज्य PCB राज्य स्तरीय निगरानी कमेटियों से समन्वय करने को कहा है। पीठ ने कहा कि नियमों में पेन का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह निश्चित ही प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के नियम 3 (ओ) के तहत प्लास्टिक की परिभाषा के दायरे में आता है। इसलिए पेन भी इस वैधानिक दायरे में आता है।
वापस खरीदने की नीति की जाए लागू
इस मामले में एनजीटी अवनी मिश्र की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डालने वाले प्लास्टिक पेन के बेरोकटोक इस्तेमाल के खिलाफ दायर की गई है। इसमें ईपीआर का दायित्व पूरा नहीं करने का आरोप लगाते हुए 'बॉय बैक' (वापस खरीदी) की नीति लागू करने का सुझाव दिया है।
रोजाना 27 लाख पेन का उत्पादन
याची ने दलील दी है कि रोजाना 27 लाख पेन का उत्पादन होता है और स्थानीय निकायों के लिए यह संभव नहीं है कि उन्हें इकट्ठा कर नियमानुसार इस कचरा का निपटान करे। यह भी कहा गया है कि रीफिल की कीमत ज्यादा होने से उपभोक्ता नए पेन खरीदने को तरजीह देते हैं। इस कारण बड़ी मात्रा में कचरा पैदा होता है तथा उन्हें जलाने से प्रदूषण होता है। नीति में पेन का स्पष्ट उल्लेख नहीं होने से अपशिष्ट प्रबंधन में भी उसका उल्लेख नहीं है।