दुष्कर्मी पर SC की टिप्पणी का मामला: पत्र को 'दुर्भावनापूर्ण हमला' कहे जाने पर भड़कीं बृंदा

सुप्रीम कोर्ट ने एक दुष्कर्म के मामले में पीड़िता से शादी करने की टिप्पणी की थी। वाम नेता ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे को पत्र लिखकर टिप्पणी वापस लेने को कहा था। बार काउंसिल ने पत्र को दुर्भावनापूर्ण हमला कहा था।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Sat, 06 Mar 2021 10:25 AM (IST) Updated:Sat, 06 Mar 2021 10:25 AM (IST)
दुष्कर्मी पर SC की टिप्पणी का मामला: पत्र को 'दुर्भावनापूर्ण हमला' कहे जाने पर भड़कीं बृंदा
दुष्कर्मी पर SC की टिप्पणी का मामला: पत्र को 'दुर्भावनापूर्ण हमला' कहे जाने पर भड़कीं बृंदा

नई दिल्ली, प्रेट्र। दुष्कर्म के एक मामले की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणी को लेकर चीफ जस्टिस को समर्थन देने के लिए माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि बीसीआइ के प्रस्ताव में उठाए गए मुद्दों का, न्याय हेतु संघर्ष के लिए व्यापक निहितार्थ हैं।

वाम नेता ने कहा कि बीसीआइ द्वारा पारित प्रस्ताव में उनके खिलाफ लगाए गए क्षुद्र, व्यक्तिगत आरोपों का वे जवाब नहीं देंगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के अधिकारों के क्षेत्र में किए गए काम खुद उनके लिए बोलेंगे।

करात ने इससे पहले चीफ जस्टिस एसए बोबडे को पत्र लिखकर एक लोक सेवक द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणी वापस लेने का आग्रह किया था।

इस संदर्भ में, बार काउंसिल ने गुरुवार को पत्र लिखे जाने पर कहा कि चीफ जस्टिस ने अपनी टिप्पणी कानूनी रेकार्ड के आधार पर की थी। बृंदा कराते के पत्र को 'दुर्भावनापूर्ण हमला' बताने के साथ ही कहा कि कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए से सर्वोच्च न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।

क्या है पूरा मामला

उल्लेखनीय है कि सोमवार को दुष्कर्म के एक मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने आरोपित से पूछा था कि क्या वह पीड़िता से शादी करने को तैयार है। आरोपित ने बांबे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ द्वारा अपनी जमानत खारिज किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसे चार सप्ताह के लिए गिरफ्तारी से संरक्षण दे दिया था। इस पीठ में जस्टिस एसए बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यन भी शामिल थे।

मामला मीडिया में आने पर महिला अधिकारों से जुड़े कई संगठनों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और प्रतिष्ठित नागरिकों ने खुला पत्र लिखकर चीफ जस्टिस से माफी मांगने और टिप्पणी वापस लेने की मांग की थी। माकपा नेता बृंदा करात ने भी चीफ जस्टिस से अपनी टिप्पणी वापस लेने की मांग कर दी।

इस पर सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आलोचना को अनुचित बताते हुए कहा कि यह टिप्पणी न्यायिक रिकार्ड के आधार पर की गई थी। उन्होंने कहा कि इस मामले में पीड़ित लड़की जब अपनी मां के साथ दुष्कर्म की एफआइआर दर्ज कराने पहुंची तो आरोपित की मां ने दोनों से अपने बेटे की गलती मानते हुए कहा कि वह लड़की को अपनी बहू बनाने को तैयार हैं। इसके बाद दो जून 2018 को जब लड़की बालिग हुई तो उसकी मां ने लड़के की मां से वादे के मुताबिक शादी की बात की। लेकिन लड़के की मां, शादी की बात से मुकर गई। इस पर लड़की की ओर से दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखा दी गई। इसके बाद आरोपित जो कि लड़की का रिश्तेदार भी है, की ओर से फिर शादी करने की मिन्नतें की जाने लगीं। कोर्ट ने इसी रिकार्ड के अनुसार आरोपित से पूछा कि क्या वह शादी के लिए तैयार है। शादी को तैयार हो तो हम याचिका पर विचार करें नहीं तो जेल जाओ। पीठ ने यह भी कहा था कि हम किसी तरह का दबाव नहीं बना रहे हैं। पीठ ने इसके बाद याचिका निस्तारित करते हुए उसे संबंधित अदालत में जमानत अर्जी देने का निर्देश दिया था।

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