दुराचारी के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को बाध्य नहीं कर सकते

मप्र के खंडवा निवासी एक किसान ने 15 अक्टूबर को अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसके बाद पुलिस ने बेटी को बरामद कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था।

By Tilak RajEdited By: Publish:Fri, 08 Dec 2017 08:08 AM (IST) Updated:Fri, 08 Dec 2017 09:09 AM (IST)
दुराचारी के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को बाध्य नहीं कर सकते
दुराचारी के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को बाध्य नहीं कर सकते

जबलपुर, नईदुनिया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी भी दुष्कर्म पीडि़ता को दुराचारी के बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। इस तरह के मामलों में यह निर्देश नजीर बन जाएगा। हाई कोर्ट ने यह आदेश एक नाबालिग पीडि़ता के 16 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात के संबंध में दिया।

पीडि़ता की याचिका पर सरकार को 24 घंटे के भीतर तीन रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर डॉक्टर्स की कमेटी गठित करने का निर्देश भी दिया। यह कमेटी 24 घंटे के भीतर दुराचार पीडि़त गर्भवती की जांच करके अपनी रिपोर्ट देगी। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि तीन में से दो डॉक्टर की राय गर्भपात के पक्ष में आएगी तो गर्भपात की प्रक्रिया अविलंब पूर्ण की जाए।

सरकार उठाए इलाज का पूरा खर्च
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सुजय पॉल की एकलपीठ ने आदेश में साफ किया कि दुराचार की शिकार नाबालिग गर्भवती के इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाए। इस निर्देश का पालन प्रारंभिक जांच से लेकर गर्भपात किए जाने और उसके बाद तक की प्रक्रिया में किया जाएगा।

समय का पालन करें
मेडिकल साइंस के मुताबिक, यदि गर्भ 20 सप्ताह की समय सीमा पूर्ण कर ले, तो गर्भपात से गर्भवती की जान को खतरा हो सकता है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने अर्जेसी शब्द पर विशेष जोर दिया।

स्वास्थ्य व महिला बाल विकास करे निगरानी
राज्य के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य और महिला बाल विकास व्यक्तिगत तौर पर निगरानी करें। उपमहाधिवक्ता पुष्पेन्द्र यादव को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह आदेश का अविलंब अक्षरश: पालन सुनिश्चित कराएं।

भ्रूण का डीएनए सैंपल रखें सुरक्षित
यदि नाबालिग पीडि़ता का गर्भपात कराया जाता है, तो भ्रूण का डीएनए सैंपल सीलबंद कवर में सुरक्षित रखा जाए।

क्या है मामला
मप्र के खंडवा निवासी एक किसान ने 15 अक्टूबर को अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसके बाद पुलिस ने बेटी को बरामद कर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था। 31 अक्टूबर को याचिकाकर्ता को बेटी मिली। मेडिकल जांच में बेटी के गर्भवती होने का पता चला। नियमों का हवाला देकर डॉक्टरों ने गर्भपात से इन्कार कर दिया। इसके बाद किसान ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई। उसका कहना था कि नाबालिग की उम्र बच्चे को जन्म देने लायक नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद उसकी शादी में भी परेशानी आएगी। बच्ची का भविष्य व सामाजिक जीवन नष्ट हो जाएगा। हाई कोर्ट ने बुधवार को बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था, जो गुरुवार को सुनाया गया। याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता पराग एस चतुर्वेदी के साथ जगदीश साकले और अनिल यादव ने रखा।

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