Book Review: हिटलर एंड इंडिया- हिटलर की नजर में भारत की छवि पेश करने की कोशिश

Book Review हिटलर एंड इंडिया- विभिन्न उद्धरणों के माध्यम से यह पुस्तक विस्तार से इस तथ्य को बताती है कि भारत के बारे में हिटलर की जानकारी कितनी सतही और नकारात्मक थी। हिटलर की नजर में भारत की छवि क्या रही।

By Shashank PandeyEdited By: Publish:Mon, 23 Aug 2021 11:45 AM (IST) Updated:Mon, 23 Aug 2021 11:45 AM (IST)
Book Review: हिटलर एंड इंडिया- हिटलर की नजर में भारत की छवि पेश करने की कोशिश
Book Review: हिटलर एंड इंडिया की समीक्षा।(फोटो: दैनिक जागरण)

ब्रजबिहारी। देश के रेलवे स्टेशनों पर पुस्तक भंडार में किताबें देखने व खरीदने के शौकीन लोगों को यह मालूम है कि ढेर सारी लोकप्रिय रचनाओं के साथ वहां जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की आत्मकथा ‘माइन काम्फ’ (मेरा संघर्ष) की प्रति जरूर मिल जाएगी। भारत में यह बेस्टसेलर की सूची में शामिल है। लेकिन क्या हमें पता है कि हिटलर भारत के स्वतंत्रता संग्राम, उसकी सभ्यता, संस्कृति और उसके भविष्य के बारे में क्या सोचता था? अधिकांश भारतीय यही समझते हैं कि हिटलर भारत को अपना दोस्त मानता था और उसके स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करता था।

बहरहाल, सच्चाई इससे कोसों दूर है। सामान्य मानवी की तो छोड़िए, पढ़े-लिखे लोग भी भारत के बारे में हिटलर की राय से परिचित नहीं हैं। जर्मन तानाशाह की भारत के बारे में राय को लेकर प्रामाणिक सामग्री की कमी को पत्रकार एवं इतिहासकार वैभव पुरंदरे ने अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘हिटलर एंड इंडिया’ के जरिये दूर करने की कोशिश की है और कहना न होगा कि इस प्रयास में वह काफी हद तक सफल रहे हैं। ‘सावरकर: द ट्रू स्टोरी आफ द फादर आफ हिंदुत्व’ और ‘बाल ठाकरे एंड द राइज आफ द शिव सेना’ जैसी पुस्तकों के रचयिता पुरंदरे ने अपनी ताजा कृति के माध्यम से पाठकों को इतिहास के एक महत्वपूर्ण कालखंड को नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित किया है।

हिटलर से जुड़ी लेखनी के प्रामाणिक स्रोतों तक पहुंचने के लिए पुरंदरे को भारत और जर्मनी सहित कई देशों की यात्र करनी पड़ी। उनके शोध का परिणाम इस पुस्तक के रूप में सामने है, जिसमें उन्होंने भारत और उसके लोगों के बारे में हिटलर की राय से परिचित कराया है। इसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस और हिटलर के रिश्तों के साथ ही वहां रह रहे दूसरे भारतीयों के अनुभवों को भी शामिल किया गया है। अपने शोध से पुरंदरे यह प्रमाणित करने में सफल रहे हैं कि नेताजी एवं अन्य भारतीयों के तमाम प्रयासों के बावजूद हिटलर ने कभी हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन नहीं दिया। यहां तक कि ‘माइन काम्फ’ में भारत के बारे में अपमानजनक टिप्पणियों को हटाने के अनुरोध को भी निष्ठुरता के साथ ठुकरा दिया। हिटलर मानता था कि अंग्रेजों को भारत पर राज करने का अधिकार है, क्योंकि वे भारतीयों के मुकाबले श्रेष्ठ हैं और उनकी सामरिक ताकत भी ज्यादा है। दरअसल, हिटलर रूस को उसी तरह से अपना उपनिवेश बनाना चाहता था जैसे ब्रिटेन ने भारत को बनाया था।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भले ही ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ¨वस्टन चर्चिल को हिटलर अपना दुश्मन मानता था, लेकिन चíचल की ही तरह वह भी मानता था कि ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद भारतीय बिखर जाएंगे। उसकी नजर में इतनी विविध जातियों और धर्मो वाले समाज को एकजुट रखना असंभव था। हिटलर यह भी मानता था कि भारत में अंग्रेजी राज की सफलता का बड़ा कारण यह था कि उन्होंने भारतीयों की संस्कृति के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की। 10 जनवरी, 1942 को अपने प्रशंसकों से घिरे हिटलर ने कहा था कि ‘भारतीयों को खुद को खुशनसीब समझना चाहिए कि उन पर जर्मनी का राज नहीं है। अगर वह भारत का शासक होता तो भारतीयों की जिंदगी को दयनीय बना देता।’

हिटलर इस बात से भी खुश नहीं था कि अंग्रेजों ने भारत में शिक्षा, परिवहन और उद्योगों का विस्तार किया। उसका मानना था कि प्रजा को अशिक्षित रखना चाहिए ताकि उनके अंदर स्वतंत्रता का अंकुर न फूट सके। अंग्रेजों ने भारत से सती प्रथा क्यों खत्म की, इस बारे में हिटलर का मानना था कि सती प्रथा पर रोक इसलिए लगाई गई ताकि काम करने के लिए मजदूरों की कमी न हो और लकड़ी पर होने वाला खर्च भी बच सके। यानी भारत के बारे में उसकी जानकारी बहुत सतही थी।

पुस्तक : हिटलर एंड इंडिया

लेखक : वैभव पुरंदरे

प्रकाशक : वेस्टलैंड पब्लिकेशंस प्रा लिमिटेड

मूल्य : 399 रुपये

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