मुंबई में कोरोना से मरने वालों के शव भी बन रहे समस्या, परिजन भी लेने से कर रहे इनकार

महाराष्ट्र सरकार कोरोना संक्रमितों के लिए नए-नए अस्पतालों का इंतजाम तो कर ही रही है लेकिन बीमारी से मरने वालों के शव भी मुंबई प्रशासन के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Thu, 07 May 2020 11:05 PM (IST) Updated:Thu, 07 May 2020 11:05 PM (IST)
मुंबई में कोरोना से मरने वालों के शव भी बन रहे समस्या, परिजन भी लेने से कर रहे इनकार
मुंबई में कोरोना से मरने वालों के शव भी बन रहे समस्या, परिजन भी लेने से कर रहे इनकार

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र सरकार कोविड-19 के रोगियों के लिए नए-नए अस्पताल एवं आइसोलेशन वार्ड का इंतजाम तो कर ही रही है, लेकिन अब इस बीमारी से मरने वालों के शव भी मुंबई प्रशासन के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। सायन अस्पताल के डीन एवं मुंबई की महापौर के गुरुवार के बयानों से यह बात सामने आई है। बुधवार देर शाम विधायक नीतेश राणे ने मुंबई के लोकमान्य तिलक म्यूनिसिपल जनरल हॉस्पिटल, सायन की एक वीडियो क्लिप पोस्ट कर मुंबई में रोगियों की व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे। वीडियो में सायन अस्पताल के एक ही वार्ड में कुछ बेड पर मरीज और उनके समीप के कुछ बेड पर मोटे पॉलीथिन कवर में लिपटे शव दिखाई दे रहे हैं।

सायन हॉस्पिटल मामले में जांच समिति गठ‍ित

मीडिया में वायरल हो चुकी इस वीडियो क्लिप पर सफाई देते हुए सायन हॉस्पिटल के डीन डॉ. प्रमोद इंगले ने कहा है कि एक जांच समिति बना दी गई है। समिति मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट 24 घंटे में सौंप देगी। रिपोर्ट आने के बाद ही उचित कार्रवाई की जाएगी। मुंबई की महापौर किशोरी पेडणेकर ने भी कहा है कि यह कहां का वीडियो है, यह तो अभी पता नहीं चला है लेकिन यह कहीं का भी हो, यह घटना हुई तो है। इस मामले में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।

शव लेने से कतराने लगे हैं परिजन

अस्पताल ने सफाई में कहा है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा दो मई को जारी एक निर्देश में कहा गया है कि कोविड-19 के किसी भी मृतक का शव उसके परिजनों को आधे घंटे के अंदर सौंप दिया जाना चाहिए। लेकिन ज्यादातर मामलों में परिजन भी शव लेने से कतराने लगे हैं। कई मामलों में परिजन मिलते ही नहीं और जो हैं भी वे कई बार फोन करने पर भी शव लेने नहीं आते। ऐसी स्थिति में अस्पताल प्रशासन स्थानीय पुलिस को सूचित करता है। कभी-कभी आपदा प्रबंधन कार्यालय को भी सूचित करना पड़ता है। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शवों को शवगृह में रखवाया जाता है। बाद में अस्पताल प्रशासन, पुलिस एवं एंबुलेंस कर्मियों की मदद से अंतिम संस्कार के लिए भेजा जाता है।

एक एंबुलेंस में भेजे जा रे दो-दो शव

मृतकों के शव परिजनों को सौंपे जाने अथवा प्रशासन द्वारा अंतिम संस्कार के लिए भेजे जाने में भी समस्या कम नहीं है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, अस्पताल ज्यादातर मामलों में एक एंबुलेंस में दो-दो शव रखकर अंतिम संस्कार के लिए भेज रहे हैं। कोरोना पॉजिटिव न होते हुए भी, कोरोना जैसे लक्षणों वाले मृतकों के साथ भी वही सावधानियां बरतनी पड़ रही हैं। ऐसे शव ले जाने वाले एंबुलेंस कर्मियों को प्रत्येक फेरे के बाद अपनी पीपीई किट बदलनी पड़ती है।

दफनाने में हो रही समस्या, कब्रिस्तान कर रहे विरोध

जलाए जाने वाले शवों को विद्युत शवदाह गृह में ही भेजा जा रहा है। लेकिन दफनाने वाले शवों की समस्या और विकराल हो रही है। ज्यादातर कब्रिस्तान घनी बस्तियों से घिरे हैं। इन कब्रिस्तानों के ट्रस्ट कोरोना से मरने वालों के शव स्वीकार करने के लिए मुश्किल से तैयार हो रहे हैं। दक्षिण मुंबई के चंदनवाड़ी कब्रिस्तान में 20 दिन पहले विरोध हुआ था। मलाड में भी एक शव को दफनाने से रोका गया तो उसका दाह संस्कार करना पड़ा था। अब बांद्रा के कब्रिस्तान में भी कोरोना के शवों को दफनाने से रोकने की मांग उठी है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। 

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