विश्व स्वास्थ्य दिवस: ...क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद भी जरूरी है

स्लीपिंग डिसऑर्डर को लेकर एक सर्वे हुआ है, जो आपको चौंका सकता है। तो चलिए जानें क्या है इस सर्वे में...

By Digpal SinghEdited By: Publish:Fri, 16 Mar 2018 03:05 PM (IST) Updated:Sat, 07 Apr 2018 12:13 PM (IST)
विश्व स्वास्थ्य दिवस: ...क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद भी जरूरी है
विश्व स्वास्थ्य दिवस: ...क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद भी जरूरी है

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। 'मुझे नींद न आए..., मुझे न चैन आए' और 'नींद नहीं आए, दिल में कोई समाए' जैसे फिल्मी गीत तो आपने सुने ही होंगे। क्या आपकी रातें भी आंखों-आंखों में गुजरती हैं? क्या ऐसे गाने आपकी जिंदगी की हकीकत बन गए हैं? अगर ऐसा है तो यह एक बड़ी समस्या है और यकीन मानिए आप ऐसे अकेले इंसान नहीं हैं, जिन्हें यह परेशानी है। अब आप सोच रहे होंगे कि हम आज आपसे नींद की बात क्यों कर रहे हैं? तो जनाब! आज यानी 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस है और अच्छी नींद स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। यही नहीं पिछले महीने यानी 16 मार्च को 'वर्ल्ड स्लीप डे' भी था। स्लीपिंग डिसऑर्डर को लेकर एक सर्वे हुआ है, जो आपको चौंका सकता है। तो चलिए जानें क्या है इस सर्वे में...

वर्ल्ड स्लीप डे के अवसर पर ग्लोबल फिलिप्स सर्वे सामने आया। भारत में इसे हेल्थ टेक्नोलॉजी कंपनी फिलिप्स ने जारी किया। इस सर्वे रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद भी बेहद जरूरी है। उम्मीद की जाती है कि यह सर्वे जागरुकता बढ़ाने में मदद करेगा। इससे सेहत के एक अहम पहलू यानी नींद के प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा और इस क्षेत्र में इनोवेशन भी बढ़ेंगे। इस सर्वे की थीम ही है- बेटर स्लीप, बेटर हेल्थ। यानी आप अच्छी नींद लेंगे तो आपकी सेहत भी अच्छी रहेगी।

दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टर संजय मनचंदा कहते हैं- 'नींद को दिनभर के कामों से मुक्ति मिलने के तौर पर नहीं देखा जा सकता। बल्कि यह बेहद जरूरी और जिंदगी का खास अंग है।' उन्होंने बताया कि स्लीप डिसऑर्डर खासकर नींद में सांस का अचानक कुछ देर के लिए बंद होना एक साइलेंट किलर की तरह है। यह अकेले नहीं आता, इसके साथ दिल की बीमारी, डायबटीज और हाइपरटेंशन भी आते हैं।

10 करोड़ से ज्यादा लोगों को समस्या
अब यह तो आप जानते ही हैं कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद लेना कितना जरूरी है। इसके बावजूद आपको यह आंकड़ा चौंका सकता है कि दुनियाभर में 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को नींद से जुड़ी हुई समस्या है। चिंताजनक बात यह भी है कि इसमें से भी 80 फीसद से ज्यादा लोग इसका इलाज नहीं करा पाते।

13 देशों में कराया गया यह सर्वे
कंपनी ने दुनियाभर के 13 देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, कोलंबिया, अर्जेंटीना, मेक्सिको, ब्राजिल और जापान) के 15 हजार से ज्यादा लोगों पर यह सर्वे कराया था। इन लोगों के सामने नींद के संबंध में कई प्रश्न रखे गए थे।

नींद जरूरी तो है लेकिन...
इस सर्वे के दौरान 67 फीसद लोगों ने माना कि नींद जरूरी है। 49 फीसद लोग इसलिए परेशान हैं कि वे नियमित व्यायाम नहीं करते, 42 फीसद लोग इस बात से चिंतित हैं कि वे हेल्दी खाना नहीं खाते। जबकि सिर्फ 29 फीसद लोग ही इस बात से परेशान हैं कि वे अच्छी नींद नहीं ले रहे हैं। भारत में तो 66 फीसद लोगों का मानना है कि स्वस्थ रहने के लिए नींद से ज्यादा व्यायाम जरूरी है।

इसलिए नहीं आती अच्छी नींद
सर्वे में शामिल होने वाले 61 फीसद लोगों ने कहा कि मेडिकल समस्या के चलते उनकी नींद में खलल पड़ा है। इनमें से भी 26 फीसद को अनिद्रा की समस्या है और 21 फीसद को खर्राटे नहीं सोने देते। 58 फीसद लोगों की नींद चिंता उड़ा देती है, जबकि 26 फीसद की नींद में टेक्नोलॉजी विलेन की भूमिका निभाती है। 19 फीसद व्यस्कों के अनुसार अनियमित काम के घंटों (शिफ्ट की नौकरी) की वजह नींद में दिक्कतें आ रही हैं। भारत में 32 फीसद व्यस्कों का मानना है कि उनकी नींद उड़ाने में टेक्नोलॉजी बड़ी भूमिका निभाती है।

खराब नींद के बाद दिन...

अगर नींद ठीक से न आए तो दिन खराब हो जाता है, यह कहते हुए तो आपने कई लोगों को सुना होगा। क्या आपने खुद महसूस भी किया है? सर्वे में यह बात सामने आयी। वैश्विक सर्वे में 46 फीसद व्यस्कों ने माना की पूरे दिन थकावट रहती है। 41 फीसद लोगों का व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है। खराब नींद के बाद 39 फीसद लोगों को काम करने की प्रेरणा ही नहीं मिल पाती और 39 फीसद लोगों का मानना है कि उनकी एकाग्रता नहीं बन पाती है।

अच्छी नींद के लिए ये आजमाया

वैश्विक सर्वे में 77 फीसद व्यस्कों ने माना कि उन्होंने अपनी नींद से जुड़ी समस्या से निजात पाने के लिए कोशिशें कीं। 36 फीसद लोगों ने नींद का उपाय संगीत में ढूंढा। 32 फीसद लोगों ने सोने और जगने का समय निश्चित किया। इस सर्वे में 45 फीसद भारतीयों ने मेडिटेशन को अपनाया, जबकि 24 फीसद भारतीय व्यस्कों ने अच्छी नींद की खोज में अपना बेड ही बदल दिया।

नींद के प्रति नई पीढ़ी की सोच
18 से 24 आयु वर्ग के व्यस्क नींद के बारे में अलग तरह से सोचते हैं। ये वे युवा हैं जो सोने का एक समय निश्चित करने के खिलाफ हैं और इनकी संख्या 38 फीसद है। जबकि 25 साल के अधिक आयु के 47 फीसद व्यस्क सोने का समय तय करने के खिलाफ हैं। बता दें कि 18-24 आयुवर्ग के युवा हर रात 7.2 घंटे औसत नींद लेते हैं, जबकि 25 साल से अधिक आयुवर्ग के लोगों में यह औसत 6.9 घंटे है।

स्लीप डिसऑर्डर को हम जितना हल्के में लेते हैं यह उससे कहीं बड़ी समस्या है। खासकर इसका संबंध कार्डियोवैस्कुल डिसीज (दिल की बीमारियां), डायबटीज और स्ट्रोक से है। भारत जैसे देश में जहां खर्राटों को अच्छी नींद के रूप में लिया जाता हो, वहां लोगों को स्लीप डिसऑर्डर के प्रति जागरुक करना एक बड़ी चुनौती है।

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