छत्तीसगढ़ के बस्तर की बैलाडीला पहाड़ियों में हैं जुरासिक काल के दुर्लभ ट्री फर्न

शाकाहारी डायनोसोर का मुख्य भोजन फर्न ही था। यह पादप प्रजाति मध्य भारत में सिर्फ बैलाडीला के पहाड़ पर ही मिलती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 26 Apr 2020 07:09 PM (IST) Updated:Sun, 26 Apr 2020 07:09 PM (IST)
छत्तीसगढ़ के बस्तर की बैलाडीला पहाड़ियों में हैं जुरासिक काल के दुर्लभ ट्री फर्न
छत्तीसगढ़ के बस्तर की बैलाडीला पहाड़ियों में हैं जुरासिक काल के दुर्लभ ट्री फर्न

अनिल मिश्रा, जगदलपुर। संस्कृति और परंपरा में अनूठे बस्तर में प्रकृति की अपनी थाती में भी कई विशिष्टताएं मौजूद हैं। बैलाडीला के रहस्यमयी पहाड़ों पर जुरासिक काल की विलुप्त हो चुकी वनस्पतियां भी पाई जाती हैं। इन्हीं में से एक है ट्री फर्न। तीन करोड़ साल पहले जब धरती पर डायनोसोर का युग था, तब ट्री फर्न मुख्य पादप प्रजाति थी।

शाकाहारी डायनोसोर का मुख्य भोजन फर्न था

माना जाता है कि शाकाहारी डायनोसोर का मुख्य भोजन फर्न ही था। यह पादप प्रजाति मध्य भारत में सिर्फ बैलाडीला के पहाड़ पर ही मिलती है। बैलाडीला की प्रसिद्धि यहां के लौह अयस्क खदानों की वजह से है। बचेली व किरंदुल में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम की परियोजनाएं हैं। पहाड़ों को काटकर दिन रात उच्च क्वालिटी का लौह अयस्क निकाला जा रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक महत्व के ट्री फर्न के यहां से भी विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

लाइकोपोडियम, सेलाजिनेला प्रजाति के पादप हो गए विलुप्त

समुद्र तल से 1260 फीट ऊंचाई पर स्थित बैलाडीला पहाड़ की जलवायु कई विशेष प्रजाति के जीवों व पादपों के अनुकूल है। बैलाडीला पर अध्ययन कर चुके जीव विज्ञानी एचकेएस गजेंद्र बताते हैं कि इन पहाड़ों पर लाइकोपोडियम, सेलाजिनेला आदि प्रजाति के पादप भी थे लेकिन माइनिंग की वजह से कई पादप प्रजातियां विलुप्त हो गई। धरती पर पादपों के उद्भव व विकास क्रम को वैज्ञानिक रूप से समझने में ट्री फर्न उपयोगी है। इसे बचाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।

दस फीट का पौधा बनने में लगते हैं तीन सौ वर्ष

ट्री फर्न का वैज्ञानिक नाम क्याथेल्स है। यह लेप्टोसपोसेंगिएट फर्न है। ट्री फर्न में जड़, तना व पत्ता होता है पर फूल नहीं लगता। इसकी पत्तियां लंबी, नुकीली व कोमल होती हैं। इस पौधे का विकास बेहद धीमी गति से होता है। इन्हें आठ से दस फीट लंबा होने में दो से तीन सौ साल लग जाते हैं।

बैलाडीला में पाए गए ट्री फर्न पांच सौ साल पुराने

बैलाडीला में पाए गए ट्री फर्न करीब पांच सौ साल पुराने हैं और 20 फीट तक लंबे हैं, जो वृक्ष का रूप ले चुके हैं। बैलाडीला में ट्री फर्न के 327 पौधे हैं। बचेली वन परिक्षेत्र के कंपार्टमेंट नंबर तीन व चार के करीब 33 हेक्टेयर क्षेत्र में ट्री फर्न के पौधे मिलते हैं। बचेली के रेंज अफसर अशोक सोनवानी के मुताबिक बचेली के गली नाला व राजा बंगला नाला क्षेत्र में ट्री फर्न पाए जाते हैं। यह नम स्थलों पर पाई जाने वाली पादप प्रजाति है। इनके संरक्षण के लिए वन विभाग उन जगहों पर नमी क्षेत्र का विकास कर रहा है।

तीन किमी क्षेत्र संरक्षित

ट्री फर्न का उल्लेख 1942 में ग्लासफर्ड की रिपोर्ट में मिलता है। यहां पाई जाने वाली प्रजाति तीन करोड़ साल पुरानी है। केंद्रीय पौध संरक्षण बोर्ड ने इस इलाके के तीन किमी क्षेत्र को संरक्षित कर रखा है। इसी इलाके में पुरानी प्रजाति के केन बेंत के पौधे भी पाए जाते हैं।

chat bot
आपका साथी