बिहार चुनाव में बरकरार रह सकता है 'तीर' और 'लालटेन'

जनता परिवार के विलय की घोषणा भले ही हो गई हो, चुनाव संभवत: वह गठबंधन की तरह लड़ें। यानी एक पार्टी होने के बावजूद कम से कम बिहार चुनाव में राजद और जदयू अपने अपने चिह्न पर ही चुनाव लड़ सकते हैं। माना जा रहा है कि एकजुटता और चुनाव

By Sachin BajpaiEdited By: Publish:Thu, 16 Apr 2015 08:46 PM (IST) Updated:Thu, 16 Apr 2015 09:07 PM (IST)
बिहार चुनाव में बरकरार रह सकता है 'तीर' और 'लालटेन'

नई दिल्ली । जनता परिवार के विलय की घोषणा भले ही हो गई हो, चुनाव संभवत: वह गठबंधन की तरह लड़ें। यानी एक पार्टी होने के बावजूद कम से कम बिहार चुनाव में राजद और जदयू अपने अपने चिह्न पर ही चुनाव लड़ सकते हैं। माना जा रहा है कि एकजुटता और चुनाव चिह्न खोने से आशंकित विभिन्न दल फिलहाल अपनी-अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं। ऐसे में वह नए चुनाव चिह्न को मतदाताओं के दिलो दिमाग पर स्थापित करने की जद्दोजहद से भी बच सकते हैं। बहरहाल अंतिम फैसला अभी नहीं हुआ है।

लंबी कवायद के बाद बुधवार को जनता परिवार के विलय की घोषणा हो गई, लेकिन बेनाम और बिना पहचान। नाम और चिह्न के लिए कमेटी भी बना दी गई है, लेकिन सूत्रों की मानें तो अंदर छटपटाहट और आशंका ज्यादा है। कुछ नेताओं का मानना है कि सबकुछ तय करने से पहले परिवार के स्थायित्व के प्रति आश्वस्त हो लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि नाम और पार्टी की पहचान किसी और के हाथ लग जाए। गौरतलब है कि जदयू के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने खुलेआम घोषणा की है कि अब वह जदयू के चुनाव चिह्न 'तीर' पर अपना दावा ठोकेंगे। जिस तरह राजद के सांसद पप्पू यादव और लालू प्रसाद में ठनी हुई है, उसके बाद पप्पू भी राजद के लालटेन पर दावा ठोक दें तो आश्चर्य नहीं।

लिहाजा नाम और चिह्न के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्य कम से कम बिहार चुनाव तक अपने अपने चिह्न के साथ ही मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं। हालांकि यह डर है कि चुनाव चिह्न अलग होने के कारण एकजुटता का माहौल नहीं बन पाएगा और एकजुट होने की मंशा पर पानी भी फिर सकता है। दूसरा कारण रणनीति से भी जुड़ा है। बिहार चुनाव में अब लंबा वक्त नहीं बचा है। ऐसे में नया चुनाव चिह्न लोगों के दिलो-दिमाग तक पहुंचाने की कवायद भी आसान नहीं होगी। शायद यही कारण है कि अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका है।

इतिहास में ऐसी घटना हो चुकी है, जब एक पार्टी बनाने के बावजूद विभिन्न घटक दलों ने अपने-अपने चिह्न पर ही चुनाव लड़ा था। बीजू जनता दल के सांसद भतृहरि महताब ने जनता परिवार के विलय को भाजपा का डर करार देते हुए बताया कि 1974 में कांग्रेस के विरुद्ध स्वतंत्र पार्टी, उत्कल कांग्रेस, जन कांग्रेस ने मिलकर प्रगति दल के नाम से पार्टी बनाई थी। उसमें पांच पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक, हरीकृष्ण मेहताब, राजेंद्र नारायण सिंह देव, नीलमणि राउत राय, दिलीप बीरेन मिश्र शामिल थे। लेकिन फिर भी कांग्रेस के हाथों प्रगति पार्टी हार गई थी। शायद बिहार में जनता परिवार के घटक दल ओडिशा के उदाहरण को नजर में रख रहे हों। लेकिन स्थायित्व को लेकर आशंका इतनी गहरी है कि पुराना चुनाव चिह्न छोड़ने का फैसला आसान नहीं होगा।

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