एयर इंडिया ने औने-पौने दाम बेच दिए पांच बोइंग विमान
पांच विमानों के इस सौदे में एयर इंडिया को 671 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एयर इंडिया ने संप्रग कार्यकाल में इत्तिहाद एयरवेज को औने-पौने दामों पर बोइंग विमान बेच दिए। कैग ने इस पर सवाल उठाए हैं। पांच विमानों के इस सौदे में एयर इंडिया को 671 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। नियंत्रक एवं महा लेखा परीक्षक (कैग) ने शुक्रवार को संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट में एयर इंडिया द्वारा संप्रग सरकार के समय की गई विमानों की बिक्री की पड़ताल की है।
एयर इंडिया ने 2009 में बोइंग 777-200 एलआर विमानों को लीज पर बेचने की प्रक्रिया प्रारंभ की थी। शुरू में तीन विमान बेचने के लिए दुनिया भर की एयरलाइनों से रिक्वेस्ट फार क्वोट (आरएफक्यू) मांगे गए थे। जनवरी, फरवरी और अप्रैल, 2010 में दुबारा प्रस्ताव मांगे गए। लेकिन चार प्रस्ताव मिलने के बावजूद विमान नहीं बेचे गए। फरवरी, 2012 में नए सिरे से आरएफक्यू मंगाए गए,जिसके जवाब में एयर कनाडा ने प्रति विमान 75 लाख डालर के मासिक लीज किराये पर विमान खरीदने का प्रस्ताव दिया। लेकिन एयर कनाडा की अस्वीकार्य शर्तो के कारण इस सौदे को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
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नवंबर 2012 में फिर प्रस्ताव मांगे गए जिसके जवाब में कुवैत की कंपनी अलफैको लीज एंड फाइनेंस कंपनी के साथ प्रति विमान 6.8 करोड़ डालर के सौदे को मंजूरी दे दी गई। लेकिन बाद में अलफैको सौदे से पीछे हट गई मई, 2013 में एयर इंडिया ने फिर से ओपेन टेंडर आमंत्रित किए। जवाब में यूएई की इत्तिहाद एयरवेज तथा जर्मनी की कंपनी जर्मन कैपिटल ने बोली लगाई। इत्तिहाद की 33.65 करोड़ डालर (2071 करोड़) में पांच विमान खरीदने की बोली सबसे ऊंची पाई गई। लिहाजा अक्टूबर, 2013 में एयर इंडिया बोर्ड ने इसे मंजूर कर लिया और जनवरी-अप्रैल, 2014 के दौरान विमानों की डिलीवरी भी दे दी गई।
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कैग का कहना है कि जिस कीमत पर विमान दिए गए वह संभावित कीमत से काफी कम थी। बिक्री प्रक्रिया से पहले एविटास तथा एसेंट ने इन विमानों की कीमत प्रति विमान 8.6 करोड़ से 9.2 करोड़ डालर के बीच आंकी थी। लेकिन एयर इंडिया ने 3 अक्टूबर, 2013 को वित्तीय बोली खोलने के बाद 5 अक्टूबर को एविएशन स्पेशलिस्ट ग्रुप (एएसजी) से विमानों का एक और मूल्यांकन कराया। इसमें विमानों की बाजार कीमत 9.3 करोड़ से 9.6 करोड़ डालर के बीच आंकने के बावजूद कहा गया कि यह कीमत मिलनी मुश्किल है, लिहाजा 6.5 करोड़ से 7.2 करोड़ डालर में विमान बेचना उचित है।
इस विषय में कैग के पूछे जाने पर एयर इंडिया प्रबंधन का कहना था कि इससे पहले इन विमानों की बाजार में कोई खरीद-बिक्री नहीं हुई थी। क्योंकि बोइंग ने ऐसे बहुत कम विमान बनाए थे। इन्हें रखना खर्चीला था इसलिए जो भी कीमत मिल रही थी उससे बकाया ऋण चुकाना बेहतर समझा गया। राजग सरकार आने के बाद जब कैग ने विमानन मंत्रालय के समक्ष इस सौदे पर सवाल उठाया तो उसने भी एयर इंडिया के नजरिये को ही सही ठहराया। लेकिन कैग को ये जवाब संतुष्ट नहीं कर पाए हैं।