चित्रकूट में प्राकृतिक रंगों से निर्मित इन धरोहरों के संरक्षण की ओर अब बढ़े कदम

चित्रकूट की पहचान वैसे तो त्रेता युग में प्रभु श्रीराम की तपोभूमि के रूप में है, लेकिन यहां पर इतिहास के और कालखंड भी अपने अस्तित्व की गवाही देते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 23 Aug 2018 01:12 PM (IST) Updated:Thu, 23 Aug 2018 01:12 PM (IST)
चित्रकूट में प्राकृतिक रंगों से निर्मित इन धरोहरों के संरक्षण की ओर अब बढ़े कदम
चित्रकूट में प्राकृतिक रंगों से निर्मित इन धरोहरों के संरक्षण की ओर अब बढ़े कदम

चित्रकूट [हेमराज कश्यप]। चित्रकूट की पहचान वैसे तो त्रेता युग में प्रभु श्रीराम की तपोभूमि के रूप में है, लेकिन यहां पर इतिहास के और कालखंड भी अपने अस्तित्व की गवाही देते हैं। हजारों वर्ष पहले कभी यहां आदिवासी सभ्यता खूब फली-फूली। आदिवासी जीवन दर्शन के निशान आज भी मानिकपुर तहसील के पाठा इलाके में मौजूद हैं। अलग-अलग जगह आदिवासी सभ्यता को चित्रांकित करते शैल चित्र (पत्थरों पर उकेरे गए चित्र) देखने वालों के मन में जिज्ञासा पैदा करते हैं।

छह माह पहले पुरातत्व विभाग की टीम इस इलाके में आई तो इस धरोहर को देख अनुमान लगाया कि इस आदिवासी सभ्यता का इतिहास तीस हजार साल पुराना है। हालांकि, वास्तविक कालखंड की पुष्टि के लिए और कवायद की जा रही है। साथ ही अब तक अनदेखी का शिकार रही इस अनमोल धरोहर के संरक्षण के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग की टीम तीन बार यहां आ चुकी है।

इतिहास के वास्तविक आकलन व संरक्षण के इंतजाम को लेकर केंद्रीय पुरातत्व विभाग को प्रस्ताव भेजा चुका है। डीएम विशाख जी व एसपी मनोज कुमार झा की पहल पर प्रस्ताव बनाकर केंद्रीय पुरातत्व विभाग को भेजा गया है। जल्द ही केंद्रीय पुरातत्व टीम यहां आ सकती है। प्रशासन इस धरोहर को पर्यटन के नजरिए से विकसित करने की योजना बना रहा है।

पत्थरों पर इस तरह के चित्र

यहां नृत्य, संगीत, आखेट, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों को सजाने, शहद जमा करने की जानकारियों से संबंधित शैल चित्र हैं। पुरातत्व विभाग के मुताबिक, उस काल में भी वर्तमान की तरह लोग आभूषणों के प्रति लगाव रखते थे। सरहट की पहाड़ी में बने शैल चित्र में मध्य प्रदेश के रायसेन की भीम बेतका से तुलना की जा सकती है। यहां महाभारत के भीम से संबंधित चित्रों को भी उकेरा गया है। ये शैल चित्र प्राकृतिक लाल, गेरुआ और सफेद रंगों का इस्तेमाल कर बने हैं।

यहां मिले शैल चित्र

मानिकपुर व मऊ तहसील के सरहट, मारकुंडी, मऊ, करपटिया, बांसा, चूल्ही खंभा समेत अन्य जगह। जल्द शैल चित्र देखकर वहां पर्यटन विभाग की तरफ से सुविधाएं विकसित करेंगे। ऐतिहासिक धरोहरों को बर्बाद नहीं होने देंगे।

- राजेंद्र रावत, उप निदेशक पर्यटन

चित्रकूट-झांसी क्षेत्र

धरोहर के संरक्षण को लेकर केंद्र व प्रदेश शासन को प्रस्ताव भेजा जा चुका है। यहां पर्यटन का बड़ा केंद्र विकसित हो सकता है।

- डॉ. आरएन पाल, क्षेत्रीय पुरातत्व

अधिकारी, इलाहाबाद 

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