'जो बीत गया, सो बीत गया'...सीखें वर्तमान को जीना

अतीत का भय और भविष्य की चिंता व्यक्ति को इतना परेशान कर देती है कि वह चैन से जी नहीं पाता है।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Mon, 15 Oct 2018 01:29 PM (IST) Updated:Mon, 15 Oct 2018 01:29 PM (IST)
'जो बीत गया, सो बीत गया'...सीखें वर्तमान को जीना
'जो बीत गया, सो बीत गया'...सीखें वर्तमान को जीना

नई दिल्ली, डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय। अतीत का भय और भविष्य की चिंता व्यक्ति को इतना परेशान कर देती है कि वह चैन से जी नहीं पाता है। कभी-कभी तो वह अपना मानसिक संतुलन तक खो बैठता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अपराध और चिंता मनुष्य की प्राकृतिक भावनाएं हैं, लेकिन इनसे ग्रस्त हो जाना अथवा यह सोच लेना कि इनसे छुटकारा मिलना बहुत मुश्किल है, यह ठीक नहीं है। इसी सोच का परिणाम और प्रभाव व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को अस्थिर बनाये रखता है। इसके लिए मनुष्य को अपने सोच की सीमा का विस्तार करना चाहिए। ऐसा होने पर ही वह अपना सुस्पष्ट दृष्टिकोण बनाने में समर्थ हो सकता है।

अतीत में क्या- क्या उसके साथ घटा था, इस ओर उसका चिंतन कभी नहीं होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य अच्छा अथवा बुरा, जो भी घट चुका होता था, उससे सीख लेकर ही अपना वर्तमान जी रहा होता है। ऐसे में, अपने वर्तमान पर अतीत की परछाई भी नहीं पड़ने देनी चाहिए। यह तभी होगा, जब आप स्वयं में एकाग्रता लायेंगे। यहीं पर एक कुशल और सफल विद्यार्थी के जो पांच लक्षण बताये गये हैं, वे सभी सामने आते हैं। ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेने पर आपको केवल अपना वर्तमान दिखने लगता है। इसीलिए एक समर्थ वक्ता और विचारक वह होता है, जो 'वर्तमान' संदर्भ में निर्धारित विषय पर अपना व्याख्यान करता है। इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो अपराध-भावना से ग्रस्त न रहा हो। अपनी उसी अपराध-भावना के बोध से ही वह अपने-आपको अपराधों के शिकंजे में जकड़ा अनुभव करता है।

ऐसे में, वह इतना असहाय महसूस करता है कि अपनी प्रगति के विषय में सोच तक नहीं पाता। व्यक्ति इस स्थिति पर जितना ही विचार करता रहता है, वह उतना ही नकारात्मक सोच में ढलता जाता है। एक सफल चिकित्सक वह होता है, जो अपनी चिकित्सा-पद्धति के प्रभाव से पहले रोग को पूरी तरह से उभार देता है और फिर धीरे-धीरे उसका उपचार कर उसे वर्तमान अवस्था में लाकर पूर्णत: स्वस्थ कर देता है। इसी तरह से हर व्यक्ति अपने किये गये कार्यों और उनसे प्राप्त बुरे परिणामों को एक बार अवश्य सामने लाता है; उनका विश्लेषण करता है और वर्तमान में उन गलतियों की पुनरावृत्ति न होने पाये, इसके प्रति सतर्क हो जाता है। वह अपने उस ‘काले’ अतीत को भूलने लगता है और वर्तमान की राह पर फूंक -फूंक कर कदम बढ़ाने लगता है।

आपकी इस नकारात्मक प्रवृत्ति पर भले ही आपका नियंत्रण हो अथवा न हो और आप वैसा करना चाहते हों या नहीं, फिर भी इससे आपकी भावनात्मक ऊर्जा का क्षरण निश्चित है और आप मात्र अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण सफलता का द्वार खटखटाने से प्राय: वंचित रह जाते हैं। इसका सीधा कारण है- आपने स्वत: अपने आपको उन दुर्भावनाओं से ग्रस्त कर लिया होता है, जो आपके लिए अत्यंत घातक होती हैं। एक बात और अतीत में किये गये कार्यों से उत्पन्न अपराध-भावना भूतकाल को सुधार तो सकती नहीं, फिर अपराध-भावना के सोच का औचित्य क्या है? हां, इसका अर्थ यह नहीं कि आप अतीत में की गयी भूलों से सीख नहीं ले सकते, क्योंकि पश्चाताप एक सुधारवादी भावना है। इसीलिए कहा भी गया है-‘बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेहु।’ पश्चाताप की भावना भले कोई पुरस्कार न हो फिर भी अतीत की भूलों को आगे न दोहराकर व्यक्ति एक अपराध से तो बच ही सकता है, क्योंकि भूल को सुधारकर भविष्य में न करने का दृढ़ संकल्प ही सच्चा प्रायश्चित है। इससे सदा सतर्क रहने की प्रेरणा भी मिलती है।

जीवन में सत्संग का सर्वाधिक प्रभाव होता है, क्योंकि उससे आपके अन्त: और बाह्य व्यक्तित्व का संवर्धन होता है। सत्संग की अवधारणा है, जो लोग समाज को स्वस्थ दिशा में ले जाने में समर्थ हैं, उनके पास बैठकर ‘जीने और जीने देने  की कला’ का ज्ञान ग्रहण करना। ऐसे जन प्रबुद्ध कहलाते हैं। सबसे पहले आप ऐसे लोगों की पहचान और परख कीजिए, फिर विनम्र भाव से उनका सान्निध्य प्राप्त करने का प्रयास कीजिए। इससे स्वयं में गुणात्मक परिवर्तन पायेंगे। ऐसे प्रबुद्धजन आपको वर्तमान में जीने की सीख सिखाते हैं।

विचारणीय बातें

जो बीत गया, सो बीत गया, अब उसपर सोचना व्यर्थ है। आज नहीं, बल्कि अभी से नया जीवन जीने की कला सीखिए। अपने प्रत्येक कार्य की समीक्षा तटस्थ होकर करने का प्रयास करें। नित्य-नये वैचारिक सुधार कीजिए। भूल को बिना कोई आनाकानी किये स्वीकर कर लीजिए। आपकी एक भूल भी इतिहास के पृष्ठों में अंकित हो सकती है। बड़े बुजुर्गों के अनुभव का लाभ लीजिए।

(लेखक भाषाविद् और करियर विशेषज्ञ हैं)

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