कैंसर मरीजों के इलाज से लेकर काउंसलिंग तक का करती हैं काम

एमवाय अस्पताल और शहर के दूसरे सरकारी अस्पतालों में कैंसर के मरीजों के इलाज का खर्चा उठाने के साथ ही वो इन मरीजों की काउंसलिंग भी करती हैं।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Sat, 15 Sep 2018 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 15 Sep 2018 06:00 AM (IST)
कैंसर मरीजों के इलाज से लेकर काउंसलिंग तक का करती हैं काम

जागरण संवाददाता। पिता की मृत्यु कैंसर से हुई। उन्हें बहुत तकलीफ उठानी पड़ी थी। उनके जाने के बाद भी उनकी पीड़ा हमेशा कचौटती रहती थी कि उन्हें बचा नहीं पाए और यही वजह थी कि एंटरप्रेन्योर रानू जैन गुप्ता ने कैंसर के मरीजों की मदद करने के लिए कदम उठाया। इसके लिए उन्होंने 2016 में संस्था माय सानिका की स्थापना की।

पिछले ढाई सालों में रानू 50 से अधिक कैंसर के मरीजों का इलाज करवा चुकी हैं। वे हर तरह के कैंसर से पीड़ित मरीज का इलाज करवाती हैं। इलाज के बाद भी जब तक मरीज पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता। वो उनको शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी सहायता करती हैं।

एमवाय अस्पताल और शहर के दूसरे सरकारी अस्पतालों में कैंसर के मरीजों के इलाज का खर्चा उठाने के साथ ही वो इन मरीजों की काउंसलिंग भी करती हैं। समय समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करती हैं। खासतौर पर स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में। रानू के साथ उनके पति डॉ गौरव गुप्ता भी मरीजों को निशुल्क इलाज करते हैं।

रानू कस्टमरी कप की मैन्युफैक्चिरंग का काम भी करती हैं और जिससे जितनी भी कमाई होती है वो सब कैंसर के मरीजों के इलाज में ही उपयोग की जाती है। इसके अलावा उनका गारमेंट मैन्युफैक्चिरंग का बिजनेस है। उससे भी जो आमदनी होती है, उसका कुछ हिस्सा इन मरीजों के इलाज के लिए लगाया जाता है।

गरीब मरीजों को इलाज के अलावा कपड़े भी उनकी संस्था उपलब्घ करवाती है। इसके लिए वे लोगों को अपने पुराने कपड़े मरीजों को देने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। माय सनिका संस्था को मध्यप्रदेश के टॉप स्टार्टअप्स में सम्मिलित किया गया है।

रानू कहती हैं कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मनुष्य शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से टूट जाता है। मैं आईटी की फील्ड में नौकरी करती थी, लेकिन जब मेरे पिता को कैंसर हुआ तो उनका दर्द देखा नहीं जाता था। पिता को तो बचा नहीं पायी, लेकिन कम से कम इससे पीड़ित लोगों को मदद कर कम से कम संतुष्टि तो मिलती है।

उनका कहना है कि इलाज तो है, लेकिन लोग डर से ज्यादा बीमार हो जाते हैं, इसलिए हम मरीजों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया की मदद लेते हैं। पिछले कुछ समय से इसके द्वारा कई लोग उनके पास पहुंच रहे हैं।

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