व्यापमं घोटाले का असली सच ; सैक़डों मुन्नाभाई कर रहे मजे से डॉक्टरी

जिन मेडिकल छात्रों के एडमिशन रद्द करना था, जिनकी डिग्री को खारिज किया जाना था, सरकार की लापरवाही के कारण ऐसे मुन्नाभाई डॉक्टरी कर रहे हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 19 Feb 2017 03:16 AM (IST) Updated:Sun, 19 Feb 2017 03:37 AM (IST)
व्यापमं घोटाले का असली सच ; सैक़डों मुन्नाभाई कर रहे मजे से डॉक्टरी
व्यापमं घोटाले का असली सच ; सैक़डों मुन्नाभाई कर रहे मजे से डॉक्टरी

भोपाल [ धनंजय प्रताप सिंह ], नईदुनिया एक्सक्लूसिव। जिन मेडिकल छात्रों के एडमिशन रद्द करना था,जिनकी डिग्री को खारिज किया जाना था, राज्य सरकार की लापरवाही के कारण ऐसे मुन्नाभाई डॉक्टरी कर रहे हैं। राज्य सरकार की ही जांच समिति ने साल 2000 से 2009 के बीच हुए मेडिकल एडमिशन की जांच की थी, जिसमें पता चला था कि 114 मेडिकल छात्र पीएमटी [ प्री-मेडिकल इंट्रेस्ट टेस्ट ] में शामिल ही नहीं हुए थे, बल्कि इनके नाम से फोटो बदल कर दूसरे छात्रों ने पीएमटी पास की थी। वर्ष 2013 में इन मुन्नाभाईयों का एडमिशन रद्द कर दिया गया था। लेकिन दिसंबर 2014 में हाईकोर्ट से इन मुन्नाभाईयों को राहत मिल गई।

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कोर्ट ने चिकित्सा शिक्षा विभाग और व्यापमं को निर्देश दिए थे कि इन मेडिकल छात्रों को सुनवाई का एक अवसर दिया जाए। फिर इनके बारे में वह फैसला करें, हाईकोर्ट के इस निर्देश के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। ज्यादातर छात्र डॉक्टर भी बन गए, डिग्री सहित मेडिकल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन भी करा लिया, लेकिन राज्य सरकार ने ना तो इनकी जांच पूरी की और ना ही इनके एडमिशन निरस्त करने की कार्रवाई की। मुन्नाभाई डॉक्टर ही नहीं बल्कि प्रदेश में व्यापमं फर्जीवा़डे के जरिए नौकरी पाए संविदा शिक्षक, अध्यापक, पुलिस आरक्षक, उपनिरीक्षक सहित कई विभागों में आरोपी मजे से नौकरी कर रहे हैं। व्यापमं और सरकार की लापरवाही के चलते व्यापमं के अधिकांश दागी सालों बाद भी बर्खास्त नहीं किए गए हैं।

क्या है मामला
पीएमटी के जरिए कई मुन्नाभाईयों द्वारा एमबीबीएस में एडमिशन कराने का मामला सन् 2009 में तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा ने विधानसभा में उठाया था। सकलेचा ने विधानसभा प्रश्न के जरिए मांग की थी कि सन् 2000 से 2009 के बीच जिन छात्रों ने मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लिया है,उनकी फोटो का मिलान उनके पीएमटी के आवेदन पत्र में लगे फोटो से किया जाए। राज्य सरकार ने तब इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी, जिसने नवंबर 2011 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इसमें पाया गया था कि 114 एडमिशन गलत तरीके से हुए हैं।
रद्द हो चुका है एडमिशन
फर्जीवा़डा कर एमबीबीएस में प्रवेश की बात प्रमाणित होने पर 10 दिसंबर 2013 को चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इन मुन्नाभाईयों के एडमिशन निरस्त कर दिए थे।छात्रों ने इसे हाईकोर्ट जबलपुर में चुनौती दी, अरुण शर्मा बनाम स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश रिट पिटीशन के फैसले में हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कहा कि बर्खास्तगी से पहले छात्रों को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। इसलिए पुन: डीन या व्यापमं इनके मामलों का परीक्षण करें और फैसला करें। लेकिन हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

व्यापमं का दावा-हम पार्टी ही नहीं
इस मामले में जो फैसला हाईकोर्ट ने दिया था, उसमें व्यापमं पार्टी ही नहीं था। ये सारी कार्रवाई चिकित्सा शिक्षा विभाग और मेडिकल कॉलेज के डीन को करना थी। मुन्नाभाईयों के सारे दस्तावेज मेडिकल कॉलेजों के पास हैं। एडमिशन के पहले तक तो व्यापमं सभी तरह की कार्रवाई करने में सक्षम है, लेकिन बाद की कार्रवाई डीन ही कर सकते हैं- भास्कर लाक्षाकार, डायरेक्टर , प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड [पीईबी]।

चिकित्सा शिक्षा विभाग अनजान
कोर्ट का ऑर्डर क्या था, मालूम नहीं है। अब तक क्या कार्रवाई हुई, यह भी पता नहीं, लेकिन ऑर्डर देखकर कोर्ट के निर्देशों के तहत सभी विभागों में समन्वय बिठाकर कार्रवाई करेंगे- मनीष रस्तोगी, आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा विभाग।

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