दिल्ली दिल से : सड़कों में मंडेला, टीटो और नासेर

राजधानी में पार्क स्ट्रीट का नाम बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर कर दिया गया। वो शेख हसीना के पिता थे। भारत के घनिष्ठ मित्र थे।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Sat, 15 Apr 2017 01:48 PM (IST) Updated:Sun, 16 Apr 2017 10:00 AM (IST)
दिल्ली दिल से : सड़कों में मंडेला, टीटो और नासेर
दिल्ली दिल से : सड़कों में मंडेला, टीटो और नासेर

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद की हालिया नई दिल्ली यात्रा से ठीक एक दिन पहले 6 अप्रैल को राजधानी में पार्क स्ट्रीट का नाम बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर कर दिया गया। वो शेख हसीना के पिता थे। भारत के घनिष्ठ मित्र थे। यदि उनकी हत्या न होती तो भारत-बांग्लादेश के रिश्ते समूचे दक्षिण एशिया के लिए मिसाल होते। दरअसल मित्र राष्ट्र आपसी सौहार्द के लिए एक-दूसरे के देशों के महापुरुषों, जननेताओं तथा राष्ट्राध्यक्षों के नामों पर अपने यहां सड़कों, पार्कों और संस्थानों के नाम रखते हैं। जाहिर है, उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए शेख मुजीब-उर-रहमान के नाम पर एक खास सड़क का नामकरण हुआ। राजधानी में दक्षिण अफ्रीका के महानायक नेल्सन 

मंडेला के नाम पर नेल्सन मंडेला मार्ग है। अन्याय के खिलाफ मंडेला के जुझारू संघर्ष से सारी दुनिया प्रभावित होती है। वे लंबी जेल यात्रा के बाद 1994 में रिहा हुए। उसके बाद भारत आए। 

वे महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे। नेल्सन मंडेला मार्ग दक्षिण दिल्ली में वसंत कुंज इलाके में है। लेकिन, शायद राजधानी में सबसे पहले किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के नाम पर जिस सड़क को रखा गया वो गमाल आब्देल नासेर थे। वे गुट निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापकों में थे। उनके नाम पर सड़क चिराग दिल्ली में है। वे मिस्र के जननेता थे। वो 1956 से लेकर 1970 तक मिस्र के राष्ट्रपति रहे। उन्होंने अपने देश में राजशाही को उखाड़ फेंका था। उन्होंने मिस्र को एक आधुनिक राष्ट्र बनाया। हालांकि बाद के सालों में मिस्र उनके सपनों का नहीं रहा। उनकी 1970 में अंत्येष्टि में 50 लाख लोग पहुंचे थे। नेहरू जी और इंदिरा गांधी से उनके व्यक्तिगत संबंध थे। उनके नाम पर राजधानी में 80 के दशक में गमाल आब्देल नासेर मार्ग हुआ। हौजखास में डियर पार्क से सटी रोड को ही गमाल आब्देल नासेर मार्ग कहते हैं। नासेर कई बार भारत भी आए। नेहरू जी तथा नासेर ने  युगोस्लाविया के जोसेफ ब्रॉज टीटो के साथ मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। ये सभी तीसरी दुनिया के नायक थे। उसी जोसेफ ब्रॉज टीटो के प्रति भारत के आदर-सम्मान को प्रदर्शित करने के लिए पंचशील एंक्लेव के डी ब्लाक से सटी सड़क का नाम जोसेफ ब्रॉज टीटो मार्ग कर दिया गया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापकों में इंडोनेशिया के महान नेता सुकर्णों भी थे। यह बात दीगर है कि उनके नाम पर राजधानी में किसी सड़क का नाम नहीं रखा गया। वे भी भारत के मित्र थे। भारत से सदैव अपने देश के संबंधों को प्रगाढ़ करने की दिशा में अग्रसर रहे थे। ओलोफ पाल्मे शायद अकेले किसी यूरोप देश के नेता हैं जिनके नाम पर राजधानी में सड़क है। वे स्वीडन के सम्मानित राजनीतिज्ञ थे। पाल्मे 1968 से लेकर 1986 में उनकी हत्या तक स्वीडिश सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता थे। इस अवधि में वे दो बार स्वीडन के प्रधानमंत्री रहे। पाल्मे की हत्या आधुनिक स्वीडिश इतिहास में अपनी तरह की पहली घटना थी, जिसका पूरे स्केनेवेडिया क्षेत्र में गहरा असर पड़ा। उन्हें मरणोपरांत जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ओल्फ पाल्मे मार्ग मुनीरका डीडीए फ्लैट्स के निकट है।  

विवेक शुक्ला

लेखक व इतिहासकार

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