Malaria Life Cycle: जानें मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र के बारे में सब कुछ

Malaria Life Cycle मलेरिया को रोकने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही इसे रोकने के लिए हमें मलेरिया परजीवी के प्रकृति के बारे में जानना अति आवश्यक हो गया है।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Mon, 15 Jun 2020 05:00 PM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 09:35 AM (IST)
Malaria Life Cycle: जानें मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र के बारे में सब कुछ
Malaria Life Cycle: जानें मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र के बारे में सब कुछ

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Malaria Life Cycle: मलेरिया रोग भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में परेशानी का कारण बन चुका है। पिछले कई सालों से यह लगातार बढ़ता जा रहा है। 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरे विश्व में 5 लाख मृत्यु हुई थी, जिसके बाद में ऐसा माना गया है कि बहुत सारी मौतें ग्रामीण परिवेश में होने की वजह से रिपोर्ट दर्ज भी नहीं की गईं। 

मलेरिया को रोकने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही इसे रोकने के लिए हमें मलेरिया परजीवी के प्रकृति के बारे में जानना अति आवश्यक हो गया है। आज के लेख में हम मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र के बारे में जानेंगे और वो कैसे अपने जीवन काल में मनुष्य शरीर पर घातक साबित होता हैं, वह भी पढ़ेंगे:

मलेरिया प्लाज़मोडियम नामक एक परजीवी मच्छरों द्वारा फैलाया जाता है। इस प्लाज़मोडियम परजीवी की 5 प्रजाति है, जो मलेरिया फैलाने में सक्षम है:

1. प्लाज़मोडियम फेल्सीपेरम 

2. प्लाज़मोडियम वाइवैक्स 

3. प्लाज़मोडियम ओवल 

4. प्लाज़मोडियम मलेरिये 

5. प्लाज़मोडियम नौलेसी 

मलेरिया के 80 प्रतिशत लोग प्लाज़मोडियम फेल्सीपेरम वाली प्रजाति से बीमार होते हैं। प्लाज़मोडियम परजीवी का प्रथम और प्रारम्भिक पोशाक होता है मादा एनोफ़ेलीज़ मच्छर, जो मलेरिया को फैलाने का काम करती है। यह मच्छर अगर किसी ऐसे व्यक्ति को काटते हैं जो मलेरिया संक्रमित हो तो वह उसके रक्त से प्लाज़मोडियम परजीवी को ग्रहण कर लेती है। रक्त में मौजूद परजीवी के अंडे भोजन नली से होते हुए गुज़रते है, जहां ये परिपक्व होने के बाद फूटते हैं। इसके बाद इनसे उत्पन्न बीजाणु मच्छर के लार ग्रंथि में पहुंच जाते हैं।

फिर किसी स्वस्थ व्यक्ति को वही मच्छर अगर वापस काटता है तो ये बीजाणु उनके रक्त के साथ प्रवाहित हो जाते हैं। अब यह प्लाज़मोडियम परजीवी मनुष्य के शरीर में पहुंच जाता है। यहां, पर भी ये परजीवी दो चरणों में संक्रमण पूरा करता है। यह परजीवी सबसे पहले शरीर के लीवर में पहुंचता है, और लीवर को 30 मिनट की अवधि में ही संक्रमित कर देता है, यहां पर संक्रमण करने के बाद अपने प्रजनन का काम शुरू कर देता है। ये प्रजनन 6 से 10 दिन चलता है, जिसका परिणाम यह होता है कि वो अपने जैसे करोड़ों परजीवी बना देता है। 

इसके बाद ये परजीवी धीरे-धीरे रक्त में प्रवाहित होते हैं, जहां ये अपना दूसरा चक्र शुरू करते हैं। यहां पर ये लाल रक्त कोशिकाओं पर अपना कब्ज़ा बनाना शुरू करती है। ये सारे परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं से चिपक जाते हैं। ये अपना प्रिय भोजन ग्लाइकोजिन और हेमोग्लोबिन रक्त और उसकी कोशिकाओं से प्राप्त करते रहते हैं। 

साथ ही साथ ये लाल रक्त कोशिका की सरंचना को बदलने की कोशिश करते रहते हैं। जिससे मनुष्य शरीर में मूलभूत आवश्यकता की कमी होती रहती हैं और शरीर कमजोर पड़ता रहता है। इसके बाद ये परजीवी अनुकूल परिस्थिति देखते हुए यहां पर भी विभाजित होते हैं और अपनी संख्या में इज़ाफ़ा करते रहते हैं। यही पर इनका दूसरा चरण भी समाप्त होता है और ये वापस पुनः चक्र करते रहते हैं।

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