आखिर है क्या डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, जानें इसके लक्षण और उपचार

निर्भर रहने की प्रवृत्ति डीपीडी (डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर) के लिए जि़म्मेदार होती है। क्यों होता है ऐसा इससे कैसे करें बचाव और क्या है इसका उपचार जानते हैं एक्सपर्ट के साथ।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Mon, 13 Jan 2020 10:01 AM (IST) Updated:Mon, 13 Jan 2020 10:01 AM (IST)
आखिर है क्या डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, जानें इसके लक्षण और उपचार
आखिर है क्या डिपेंडेंट पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, जानें इसके लक्षण और उपचार

सामाजिक जीवन मेें परस्पर निर्भरता स्वाभाविक है। खाने-पहनने से लेकर घूमने-फिरने और शादी से लेकर करियर जैसे मामलों में अधिकतर लोग अपने माता-पिता, भाई-बहनों या करीबी दोस्तों से अकसर सलाह लेते हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है। समस्या तब शुरू होती है, जब कोई व्यक्ति अपने हर कार्य के लिए दूसरों की सलाह पर निर्भर हो जाए। कोई भी निर्णय लेने से पहले उसे बहुत घबराहट महसूस होती है और वह अपनी मरजी से कोई भी कदम नहीं उठा पाता तो यह स्थिति चिंताजनक मानी जाती है। ऐसी आदतों की वजह से किसी भी व्यक्ति को भविष्य में डीपीडी जैसी मनोवैज्ञानिक समस्या हो सकती है। 

क्या है डीपीडी

अपने करीबी लोगों के साथ थोड़ी भावनात्मक निर्भरता स्वाभाविक है। इससे व्यक्ति के लिए अपनी कुछ समस्याओं का हल ढूंढना आसान हो जाता है लेकिन जब यह निर्भरता इस हद तक बढ़ जाए कि दूसरों से पूछे बिना व्यक्ति कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ हो तो ऐसी मनोदशा को डीपीडी यानी डिपेंडिंग पर्सनैलिटी डिसॉर्डर कहा जाता है।

खास लक्षण

1. आमतौर पर ऐसे लोग दब्बूपन की हद तक अतिशय विनम्र और आज्ञाकारी होते हैं।

2. डीपीडी से ग्रस्त लोग बहुत भावुक होते हैं और छोटी-छोटी बातों से इनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं।

3. संबंध खराब होने के डर से दूसरों की हर बात मान लेते हैं।

4. खुद निर्णय लेने से डरते हैं और कोई भी बात दूसरों से बार-बार पूछते हैं।

5. अति संकोची स्वभाव के होते हैं। करीबी लोगों के सामने भी स्पष्टï ढंग से अपनी पसंद-नापसंद का इज़हार नहीं कर पाते।

6. ऐसी लोग अति संवेदनशील होते हैं और अपनी आलोचना सुनकर बहुत जल्दी उदास हो जाते हैं।

7. आत्मविश्वास की कमी भी इस समस्या का प्रमुख लक्षण है। 

क्या है वजह

1. अगर माता-पिता को डीपीडी हो तो संतान को भी ऐसी समस्या हो सकती है।

2. जीवन में अकेले पड़ जाने के भय से भी व्यक्ति को यह मनोरोग हो सकता है।  

3. जिनकी परवरिश अति संरक्षण भरे माहौल में होती है, उन्हें भी यह समस्या हो सकती है। 

4. युवावस्था में इसकी आशंका सबसे अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में प्रेम, करियर और विवाह आदि से जुड़ी कई उलझनें व्यक्ति के सामने आती हैं।

क्या है उपचार

इस समस्या का ट्रीटमेंट हमेशा शॅार्ट टर्म होता है क्योंकि अगर लंबे समय तक उपचार चलेगा तो समस्या ग्रस्त व्यक्ति भावनात्मक रूप से काउंसलर पर निर्भर हो जाएगा। इस मनोरोग से ग्रस्त लोगों को स्वस्थ सामाजिक व्यवहार अपनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। समस्या को दूर करने के लिए कॉग्नेटिव और अस्र्टिवनेस बिहेवियर थेरेपी दी जाती है, ताकि ऐसे लोग निडर होकर दूसरों के सामने बेझिझक अपनी बात रख सकें। अगर स्थिति ज्य़ादा गंभीर न हो तो आमतौर पर इस समस्या से ग्रस्त लोगों को दवाओं की ज़रूरत नहीं पड़ती। काउंसलिंग और बिहेवियर थेरेपी की मदद से धीरे-धीरे व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव नज़र आने लगता है।

कुछ ज़रूरी बातें

1. अपने परिवार का माहौल खुशनुमा बनाए रखें, ताकि बच्चों के व्यक्तित्व का विकास बेहतर ढंग से हो और भविष्य में उन्हें ऐसी कोई समस्या न हो।

2. बच्चों की परवरिश ऐसी होनी चाहिए कि  रोज़मर्रा के  छोटे-छोटे कार्य वे स्वयं करने की कोशिश करें। इससे उनमें आत्मनिर्भरता की भावना विकसित होगी।    

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