सोहराय पर्व झारखंडी संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक : सुगनाथ हेम्ब्रम

झारखंड के आदिवासी एवं मूलवासियों ने दीपावली के तीसरे दिन सोहराय एवं बंदना पर्व के रूप में मनाया। संथाल बहुल गांवों में इस दिन सोहराय पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Oct 2019 11:15 PM (IST) Updated:Wed, 30 Oct 2019 06:33 AM (IST)
सोहराय पर्व झारखंडी संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक  : सुगनाथ हेम्ब्रम
सोहराय पर्व झारखंडी संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक : सुगनाथ हेम्ब्रम

संवाद सूत्र, राजनगर : झारखंड के आदिवासी एवं मूलवासियों ने दीपावली के तीसरे दिन सोहराय एवं बंदना पर्व के रूप में मनाया। संथाल बहुल गांवों में इस दिन सोहराय पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। मंगलवार को राजनगर प्रखंड के रूसिक रोला जियाड़ अखाड़ा की ओर से रोला गांव में सोहराय पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान बैलों की पारंपरिक रीति रिवाज से पूजा अर्चना की गई है। बैलों को खूंटे से बांध कर उसकी पूजा अर्चना की गई। इसके बाद मंदल की थाप पर बैलों को खूब नचाया गया। इस अवसर पर सोहराय गीत प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। इस मौके पर उपस्थित बतौर मुख्य अतिथि जदयू के जिलाध्यक्ष व सरायकेला विधानसभा के घोषित प्रत्याशी सुगनाथ हेम्ब्रम ने कहा कि सोहराय पर्व झारखंडी सभ्यता व संस्कृति का प्रतीक है। यह पर्व पालतू पशु और मानव के बीच गहरा प्रेम स्थापित करता है। यह पर्व भारत के मूल निवासियों के लिए विशिष्ट त्यौहार है। क्योंकि भारत के अधिकांश मूल निवासी खेती -बारी पर निर्भर है। खेती बारी का काम बैलों व भैंसों के माध्यम से की जाती है। इसीलिए सोहराय पर्व में पशुओं को माता लक्ष्मी की तरह पूजा जाता है। सोहराय पर्व झारखंड के सभी जिलों में मनाया जाता हैं और इसकी शुरुआत दामोदर घाटी सभ्यता के इसको गुफा से शुरू हुई थी। इस दौरान नायके बाबा लोसो मुर्मू, रामाय हांसदा, जाजू हांसदा, रामलाल हांसदा, आजाद हांसदा, असीम हांसदा, बाले हेम्ब्रम, ओजेन मुर्मू, गौतम मुर्मू, जॉन बाबा, कोहिनूर हांसदा, चूमा मुर्मू, मधु हांसदा, चुरकुट मुर्मू, होपोना हांसदा, दिकुराम मुर्मू, सागेन टुडू, गोमहा हांसदा, दिकू मुर्मू, भागरी टुडू, साधु मुर्मू, सुरेश हेम्ब्रम, अजय हांसदा, मोसो मुर्मू आदि कई लोग शामिल थे।

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