कांटाटोली का कांटा : सड़कें इज्जत हैं बचाए रखिए

किसी भी प्रदेश व शहर के विकास की पहचान उसकी सड़कें होती हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 19 Aug 2018 12:12 PM (IST) Updated:Sun, 19 Aug 2018 12:12 PM (IST)
कांटाटोली का कांटा : सड़कें इज्जत हैं बचाए रखिए
कांटाटोली का कांटा : सड़कें इज्जत हैं बचाए रखिए

रांची, जेएनएन। किसी भी प्रदेश व शहर के विकास की पहचान उसकी सड़कें होती हैं। बाहर से आने वाले लोग प्रदेश की सड़कों को देखकर ही विकास का आंकलन करते हैं। सड़कें बेहतर हो तो अच्छी शहर है, सड़कें खराब हो तो अवधारणा बनती है कि शहर की स्थिति बहुत दयनीय है। राजधानी रांची का महत्वपूर्ण चौराहा कांटाटोली की सड़कों से लोग परेशान हैं।

राजधानी का सबसे महत्वपूर्ण चौराहा है। जमशेदपुर से आने वाली गाडि़यां इसी रास्ते से आती रही हैं। यातायात की बेहतरी के लिए फ्लाइओवर का निर्माण हो रहा है। लोगों को परेशानी न हो इसके लिए डायवर्सन या कहें सर्विस लेन का निर्माण किया गया है। यही सर्विस लेन परेशानी की वजह है। पांच सौ मीटर का रास्ता तय करना छोटे व दोपहिया वाहनों के लिए भी पहाड़ साबित हो रहा है।

सर्विस लेन में बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। इन गड्ढों में पानी और कीचड़ हैं। कहां गिर पड़ेंगे ठिकाना नहीं। फ्लाइओवर निर्माण का काम शुरू होने से पहले डायवर्सन व सर्विस लेन की सड़क को दुरुस्त कर लिया जाना चाहिए। यह पूरी योजना में चूक को उजागर कर रहा है। यह बानगी है उन तमाम योजनाओं की जिसके कारण सरकार की बदनामी हुई है या हो रही है।

मामला रांची-टाटा फोर लेन का हो, या दूसरी महत्वपूर्ण सड़कों का या फिर राजधानी के ही प्रस्तावित ड्रीम प्रोजेक्ट, ¨रग रोड का। समय पर सड़कें नहीं बनीं। विलंब हुआ तो लागत बढ़ी। पुनरीक्षित प्राक्कलन को मंजूरी देनी पड़ी। कारण भू-अर्जन की समस्या हो, निर्माण एजेंसी की अक्षमता, फंड का डायवर्सन या कोई और।

यह तो तय है कि जमीनी हकीकत समझे बिना योजना बनी, काम दिया गया या मॉनीट¨रग के स्तर पर गंभीर चूक हुई। बात सिर्फ सड़कों की नहीं बल्कि तमाम योजनाओं की है। विलंब के कारण सरकार पर आर्थिक बोझ तो बढ़ा ही। अदालतों में भी फजीहत होती है। सरकार को फटकार सुननी पड़ती है। उससे भी बड़ी बात कि सरकार की साख जनता की अदालत में खराब होती है। जिनकी सुविधा के लिए सरकार सड़क आदि का निर्माण करा रही है उन्हें ही परेशानी हो रही है।

निर्माणाधीन सड़कों से गुजरें तो डायवर्सन हमेशा तकलीफदेह साबित होते हैं। बिजुपाड़ा में भी तेज बारिश डायवर्सन को ही बहा ले गई। पहाड़ी इलाकों में ऐसा होता ही है कहने से काम नहीं चलने वाला। फिर निर्माण एजेंसी के अनुभव पर सवाल है। मुकम्मल मॉनीट¨रग ही ठोस उपाय है।

एक दौर था जब बिहार की सीमा पार करते हुए लोग झारखंड पहुंचते थे तो अच्छी सड़कों के कारण आंख बंद करके कह देते थे, लगता है हम झारखंड में प्रवेश कर गए हैं। सड़कें सरकार की इज्जत हैं इन्हें बचाए रखने की जरूरत है।

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