यहां एक ही मंडप में हुई मां और बेटी की शादी, परिणय सूत्र में बंधते देखने के लिए जुटा हुजूम; नाती भी गवाह बना

वैवाहिक समारोह में सबकी नजर रांची के कांके प्रखंड के सांगा गांव निवासी मां-बेटी पर थी। मां परमी (50) और बेटी कलावती एक ही मंडप में रविवार को वैवाहिक बंधन में बंधी।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sun, 09 Feb 2020 01:37 PM (IST) Updated:Tue, 11 Feb 2020 12:00 AM (IST)
यहां एक ही मंडप में हुई मां और बेटी की शादी, परिणय सूत्र में बंधते देखने के लिए जुटा हुजूम; नाती भी गवाह बना
यहां एक ही मंडप में हुई मां और बेटी की शादी, परिणय सूत्र में बंधते देखने के लिए जुटा हुजूम; नाती भी गवाह बना

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। झारखंड की राजधानी रांची में रविवार को बड़ा ही सुखद नजारा दिखा। आगंतुकों के तब पांव ठिठक गए, जब यहां एक ही मंडप में मां और उसकी सगी बेटी की शादी हुई। यहां एक ही मंडप में मां और बेटी को परिणय सूत्र में बंधते देखने के लिए आसपास के इलाकों से हुजूम जुटा था। इस अनोखी शादी के गवाह बने लोगों ने मां और बेटी को उनके आने वाले जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं।

मां-बेटी की शादी एक ही मंडप में, नाती भी बना गवाह 

कांके प्रखंड के सांगा गांव निवासी सुदेश्वर गोप औप परमी गोप तथा उसकी बेटी कलावती गोप व दामाद प्रताप गोप की शादी रविवार को एक ही मंडप में हुई। इस शादी का गवाह कलावती का ढाई साल का नन्हा बेटा गोपाल भी बना। दो पीढिय़ों की एक साथ शादी और तीसरी पीढ़ी के आयोजन का गवाह बनने का दुर्लभ नजारा देख सबकी नजरें ठिठकीं। सुदेश्वर गोप (55) व परमी (50) पिछले 30 सालों से बगैर शादी के पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे थे। इस दौरान चार बच्चों का जन्म हो गया।

सुदेश्वर ईंट भट्ठा पर मजदूरी करते हैं। उन्होंने बताया कि शादी के आयोजन का खर्च उठाने लायक पैसों का जुगाड़ कभी हो नहीं पाया। परंपरा है कि शादी के बाद गांव वालों को भोज देना है, तभी शादी की मान्यता मिलती है। न कभी भोज के पैसे हुए न शादी कर पाए। यही नहीं सुदेश्वर की बेटी भी छह साल से लिव इन में रह रही थी। उसकी शादी भी रविवार को साथ ही हुई। शादी संपन्न होने के बाद दोनों दंपत्ति ने एक दूसरे को बधाई दी।

बजी शहनाई, गूंजे गीत,  फेरों के साथ फिर बने मीत

निमित्त संस्था की ओर से रविवार को आयोजित सामूहिक शादी में 150 जोड़ों ने सात फेरे लेकर एक दूसरे के साथ जीवन जीने की कसमें खाईं। यहां कई ऐसे जोड़े थे जो वर्षों से लिवइन रिलेशन में एक साथ रह रहे थे। लेकिन, पैसे के अभाव मे शादी नहीं कर पाये। मंडप में बैठे अधेड़ दूल्हा-दुल्हनों के चेहरे पर खुशी स्पष्ट देखी जा रही थी।

इस वैवाहिक समारोह में सबकी नजरें रांची के कांके प्रखंड के सांगा गांव निवासी मां-बेटी पर थी। मां परमी (50) और बेटी कलावती यहां एक ही मंडप में वैवाहिक बंधन में बंधी। मौके पर सांगा गांव के 12 जोड़ों की शादी हुई। इस समारोह में मंगल बंधन में बंधनेवाले सभी जोड़े अलग-अलग धर्म से जुड़े थे। सबकी शादियां अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुरूप हुई। शादी के बाद नव दंपत्ति को लोगों ने शुभकामनाएं व उपहार दिये। इस मौके पर सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया।

वैवाहिक समारोह में एक ओर अग्नि के समक्ष सात फेरे लिये जा रहे थे। वहीं दूसरी ओर पाहन की देखरेख में सरना विधि-विधान से शादी हो रही थी। चर्च से आए फादर ने भी बाइबिल की उक्तियां पढ़कर जोड़ों की शादी की रस्‍म अदायगी की। समाजिक कार्यकर्ता जयंती देवी के अनुसार अधेड़ उम्र के अधिकतर ऐसे लोग हैं जो मजदूर हैं। इनमें प्राय: ईंट भट्ठा में काम करते हैं। बताया गया कि जिन वरों ने अपनी पसंद की लड़की तो चुन ली, लेकिन शादी नहीं कर पाये, उनके लिए यह खास आयोजन किया गया था।

लिव इन में रह रहे 137 जोड़े वर्षों बाद सामूहिक रूप से बंधे वैवाहिक बंधन में

वेलेंटाइन सप्ताह के साथ कदमताल करते हुए अपनी पूरी रवानी पर आ पहुंचा बसंत रविवार को वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे झारखंड के 137 जोड़ों के जीवन में नई बहार लेकर आया। ये जोड़े गरीबी व अन्य सामाजिक-व्यवहारिक दिक्कतों की वजह से बगैर शादी के वर्षों से साथ रह रहे थे। इनमें कई ऐसे हैैं, जिनके बच्चों के भी बच्चे हो गए हैैं। निमित्त संस्था और लायंस क्लब ने रांची के मोरहाबादी में इन जोड़ों की समारोहपूर्वक शादी कराई और इनके रिश्तों को नाम दिया। इस खास सामूहिक विवाह समारोह में विभिन्न धर्मों के 137 जोड़े विवाह  के बंधन में बंधे।

अपने रिश्तों को दिया नया नाम, आसपास के लोगों ने दी शुभकामनाएं

इस अनूठी शादी में वर-वधू के परिजन के साथ बड़ी संख्या में उनके गांव वाले भी शरीक हुए। इसमें कई ऐसे भी जोड़े थे जो दशकों से साथ रह रहे थे, लेकिन अपने रिश्ते को अब तक नाम न दे सके थे। विवाह के आयोजन का खर्च न उठा पाने की मजबूरियों से लेकर अन्य कारण आड़े आ रहे थे। वहीं सामाजिक मान्यता न मिल पाने के कारण ये उपेक्षा भी झेल रहे थे। निमित्त संस्था ने लिव इन में रह रहे ऐसे जोड़ों को ढूंढ़ कर इनकी शादी कराई। इनमें ङ्क्षहदू धर्म के 72, सरना समाज के 53 व इसाई समाज के 10 जोड़े शामिल थे। सबकी शादियां अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुरूप हुई। शादी के बाद नव दंपत्ति को लोगों ने शुभकामनाएं व उपहार दिये। इस मौके पर सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया।

बहुरंगी संस्कृतियों का भी दिखा नजारा

इस खास शादी समारोह में अलग-अलग संस्कृति के रंग देखने को मिले। एक ओर पंडित हवन करा रहे थे तो दूसरी ओर से ईसाई धर्मगुरु जोड़ों को बाइबिल का पाठ रहे थे। एक हिस्से में सरना माता और धरम-करम की कहानी के साथ जीवन जीने की कसमें खिलाई जा रही थीं। वहीं दूसरी ओर वाद्य यंत्र पर विभिन्न धर्मों की शुभ मंगल ध्वनि मिश्रित रूप से परिसर में गूंज रही थी।

सात जन्मों के गठबंधन की प्रतिज्ञा

नामकुम के बबलू मुंडा व सोनी कुमारी एक ही गांव के रहने वाले हैं। दिल मिले तो साथ रहने लगे। पैसे की तंगी के कारण सोनी को घर में ही छोड़कर कमाने के लिए पुणे चले गए। दो साल पहले एक बेटा हुआ। छह साल बाद शादी का मौका मिला। लाल चुनरी और गोद में दो साल के बेटे निखिल को लिए सोनी और बबलू ने सात जन्मों के लिए महागठबंधन की प्रतिज्ञा ली। पहान के आज्ञानुसार जब बबलू ने सिंदूर लगाया तो सोनी के चेहरे पर खुशी के भाव स्पष्ट तौर पर झलक रहे थे। लोहे की चूड़ी पहनने के बाद शादी संपन्न हुई।

नवदंपतियों को मिला परमेश्वर का आशीष

ईसाई समाज के 10 जोड़े की शादी फादर एनेम डोडराय मुंडा ने संपन्न कराई। सफेद वस्त्र में वर-वधू काफी आकर्षक लग रहे थे। फादर ने जोड़े को आदम हव्वा की कहानी सुनाई। विवाह संपन्न होने के बाद जोड़ों ने प्रार्थना गाकर प्रभु यीशु मसीह से सफल वैवाहिक जीवन की विनती की।

शोषित-पीडि़तों के उत्थान के लिए संस्था का गठन : निकिता सिन्हा

निमित्त संस्था की सचिव निकिता सिन्हा ने बताया कि 2009 में संस्था का गठन किया गया था। संस्था की ओर से यह चौथा आयोजन है। 18 जनवरी को गुमला में सामूहिक विवाह का आयोजन गया था। उन्होंने बताया कि लिव इन में रह रहे जोड़े को सम्मान नहीं मिलता है। कई लोग आर्थिक तंगी के कारण शादी नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों की मदद के लिए ही संस्था बनायी गई। फिलहाल संस्था से 7-8 लोग जुड़े हुए हैं। निकिता के पति एनएन सिन्हा झारखंड कैडर के आइएएस हैं। वर्तमान में भारत सरकार में गृह विभाग के सचिव हैं। इस आयोजन में एनएन सिन्हा की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। निकिता सिन्हा ने बताया कि सामाजिक कार्य में उनके पति काफी सहयोग करते हैं। रात भर खुद जगकर आयोजन की तैयारी में जुटे हुए थे।

समाज सेवा ईश्वरीय कार्य, मिलती है मानसिक शांति

एनएन सिन्हा  सामाजिक सरोकार में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। उन्होंने बताया कि समाज सेवा ईश्वरीय कार्य है। ईश्वर की मदद से ही सब कार्य संपन्न होते हैं। निकिता को हमेशा इस प्रकार के कार्य में सहयोग करता हूं।

डिप्टी मेयर ने नवविवाहिता को दी शुभकामनाएं

डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने शादी के बंधन में बंधे नव विवाहिताओं को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि आज सामाजिक संस्थाएं सरकार से आगे बढ़कर कार्य कर रही है। इसके लिए जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।

लिव इन में रहने वाले अधिकतर मजदूर

सामाजिक कार्यकर्ता जयंती देवी कांके के सांगा गांव की रहने वाली हैं। सामूहिक शादी में इस गांव के 13 जोड़े पहुंचे थे। जयंती के अनुसार लिव इन में रह रहे अधिकतर जोड़े बेहद गरीब हैं। मजदूरी करके परिवार चलाते हैं। शादी के लिए पैसा जमा करने में ही दिन बीत जाता है, शादी नहीं हो पाती है।

सत्यप्रकाश मंगल ने अबतक कराई हैं 14 हजार शादियां

सामूहिक शादी में सेवायन संस्था का भी योगदान रहा। संस्था के कर्ताधर्ता सत्यप्रकाश मंगल भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। मूलरूप से मथुरा के रहने वाले सत्यप्रकाश अबतक 14400 शादियां करवा चुके हैं। उनकी संस्था मुख्यरूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम के ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक शादियां आयोजित कर लोगों की मदद करती है। उनका कहना है कि कोई ऐसा नहीं बचे जिसका गरीबी के कारण शादी न हो।

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