सत्ता का गलियारा : माननीय हैं कि मानते नहीं...मैडम भी गुस्‍से में...

झारखंड की राजनीति में नेताओं के बड़े-बड़ेे बोल में सत्‍ता पक्षा और विपक्ष दोनों उलझे रहते हैं।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sun, 14 Oct 2018 02:47 PM (IST) Updated:Sun, 14 Oct 2018 03:38 PM (IST)
सत्ता का गलियारा : माननीय हैं कि मानते नहीं...मैडम भी गुस्‍से में...
सत्ता का गलियारा : माननीय हैं कि मानते नहीं...मैडम भी गुस्‍से में...

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। माननीय का गुस्सा और नसीहतें तो जग-जाहिर हैं। किसी को भी मौके-बे-मौके दम भर दे देते हैं। सदन इसका गवाह रहा है। लेकिन कभी-कभी सार्वजनिक तौर पर नसीहत देना किरकिरी भी करा देता है। राष्ट्र के मुख्य सेवक स्वच्छता मिशन पर जोर दे रहे हैं और उनके मिशन के साझीदार बन रहे मीडिया जगत से जुड़े लोगों को माननीय उनका पीएस बनने की नसीहत दे रहे हैं।

झोला छाप समेत अन्य उपमा से भी नवाज रहे हैं। बात बढ़ती है तो सफाई भी देते हैं लेकिन अपनी शैली में। सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि सब कुछ बदल सकता है लेकिन न तो माननीय की सोच बदल सकती है और न उनकी आदतें। हां, उनकी इस हरकत से लोग उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मौज जरूर ले रहे हैं।

मैडम का गुस्‍सा : पानी के लिए पश्चिम बंगाल सरकार पर आंखें तरेर चुकी संताल की मैडम का गुस्सा परवान पर है। जब 'सबका साथ सबका विकास वाली परिकल्पना को उनके अपने ही पलीता लगाने लगे तो नाराजगी लाजमी ही है। अब जबकि 2019 की चुनौतियां सामने है और विभागीय उपलब्धियां शून्य, तो मैडम तमतमा बैठी हैं।

पिछले दिनों महिला एवं बाल विकास के दारोमदारों को उन्होंने न सिर्फ तलब किया, बल्कि सार्वजनिक मंच से जमकर फटकार लगाई। फरमान वेतन तक की निकासी पर रोक लगाने का जारी हुआ। बगल में ही बैठी एक तेजतर्रार महिला अफसर धीरे से बुदबुदा उठी, गरजने वाला भला कब बरसा है...। मैं भी यहीं हूं और आप भी ...।

कभी खुशी कभी गम : आजकल एक विभाग के बाबुओं की 'कभी खुशी कभी गम जैसी हालत है। मैडम की कड़ाई के कारण उन्हें काफी परेशानी हो रही थी। काफी इंतजार के बाद मैडम को दिल्ली के लिए सरकार ने छोड़ा तो कई को राहत मिली। लेकिन जब उनकी जगह पर दूसरे साहब का नाम सामने आया तो खुशी अचानक गम में बदल गई। साहब कम कड़क स्वभाव के नहीं हैं। उसी विभाग में पहले भी अपना काम दिखा चुके हैं। कहां क्या हो रहा है, उनसे छिपा भी नहीं है। अब देखना है कि साहब का इस बार रूख कैसा रहता है?

कमाई का फॉर्मूला : कमाई का फॉर्मूला जानने, समझने और सीखने में लोगों को जीवन बीत जाता है लेकिन अक्सर इसमें सफलता नहीं मिलती। लेकिन, एक शाश्वत सत्य यह है कि एक डाल से दूसरे डाल पर कूदना आसान है। इसी का इस्तेमाल कर एक कर्मठ अधिकारी ने बड़ी तेजी से शिक्षा को अपना अगला मुकाम बना लिया है। एक ऐसा पेशा जिसमें लोग पैसा भी देते हैं और पैर भी छूते हैं।

ऐसे पेशे कम ही हैं। खैर पढ़ाने के इस फैसले के पीछे सेवा के साथ-साथ कमाई का भी उपाय दिखने लगा है। अभी कुछ खुलासा तो नहीं हुआ है लेकिन बताते हैं कि एक बच्चे से तीन लाख रुपये तक लेने का मंसूबा है। रांची जैसे शहर में मिल भी जाएगा और यह मिल गया तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। यह सुनकर कम से कम उन लोगों की बोलती बंद हो गई है जो यह कहते फिरते थे कि आखिर देश की सबसे बड़ी सेवा से मोहभंग होना अच्छा नहीं है।

इन लोगों को शिक्षक बने अधिकारी से कोई मोह नहीं बल्कि कमाई का आइडिया लेना चाह रहे थे। हवा में जो रेट आया है उससे एक झटके में सभी चुप हो गए हैं। अब यही लोग बच्चे गिनने की फिराक में लग गए हैं। फिर पैसे का हिसाब लेंगे। हम तो कहते हैं साहब आप अपना काम करते रहो, पड़ोसी जलेंगे और जलते रहेंगे। 

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