मैथिली कवि कृष्णमोहन झा के दूसरे काव्य-संग्रह 'दकचल समय पर रेख' का लोकार्पण

मैथिली साहित्यकार कृष्ण मोहन झा मोहन की कविताओं का दूसरा संग्रह हाल ही में अंतिका प्रकाशन से छपा है।जिसका लोकार्पण कडरू स्थित एजी कॉलोनी में उन्हीं के आवास पर शहर के प्रबुद्ध साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों की मौजूदगी में हुआ।

By Kanchan SinghEdited By: Publish:Sun, 31 Oct 2021 05:48 PM (IST) Updated:Sun, 31 Oct 2021 05:48 PM (IST)
मैथिली कवि कृष्णमोहन झा  के दूसरे काव्य-संग्रह 'दकचल समय पर रेख' का लोकार्पण
काव्य संग्रह 'दकचल समय पर रेख' का लोकार्पण समारोह

रांची (जासं) हर समय का अपना एक प्रमुख एवं नियंता स्वर होता है, उसी तरह हमारे समय का प्रमुख स्वर राजनीति और बाजार है। मौजूदा समय की राजनीति और बाजारवादी छल - छद्म को समझे बिना न तो आज की कविता को समझा जा सकता है और न समाज को। कृष्ण मोहन झा मोहन की कविताएं मौजूदा दौर की इन्हीं दो प्रमुख स्वरों की पड़ताल करती है और जन - सरोकारी चेतना का आह्वान करती हैं। यही वजह है कि उन्हें रोटी की परतों में बाजार झांकता हुआ नजर आता है। ये बातें मैथिली कवि कृष्ण मोहन जी मोहन के दूसरे काव्य संग्रह  'दकचल समय पर रेख' के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार केदार कानन ने कही। उन्होंने बताया कि कभी मोहन सजग कवि हैं जो स्थानीयता से लेकर वैश्विक परिघटनाओं पर बारीक नजर रखते हैं और उनका अपनी कविता में रचनात्मक उपयोग करते हैं।

मैथिली साहित्यकार कृष्ण मोहन झा मोहन की कविताओं का दूसरा संग्रह हाल ही में अंतिका प्रकाशन से छपा है।जिसका लोकार्पण कडरू स्थित एजी कॉलोनी में उन्हीं के आवास पर शहर के प्रबुद्ध साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों की मौजूदगी में हुआ।

इस अवसर पर साहित्यकार डॉक्टर नरेंद्र झा ने सभी को बधाई देते हुए कहा कि लेखन की दुनिया में देर से पदार्पण करने के बावजूद मोहन जी ने मैथिली कविता में दुरुस्त हस्तक्षेप किया है और मौजूदा समय के सवालों से मुठभेड़ करते हुए राजनीतिक सजगता का परिचय दिया है।

लेखक अमरनाथ झा ने कहा कि मोहन जी का पहला संग्रह 'ग्लोबल गांव सँ अबैत हकार' प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने भूमंडलीकरण का मिथिला के गांव - समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित किया था और जब इस दूसरे संग्रह - 'दकचल समय पर रेख के जरिए' वह मौजूदा समय की विसंगतियों और विडंबनाओं को रेखांकित कर रहे हैं।

मैथिली के वरिष्ठ लेखक हितनाथ झा ने कहा कि मोहन उन कवियों की तरह नहीं हैं जो सिद्ध होने से पहले ही प्रसिद्ध हो जाते हैं। लेखन की दुनिया में देर - सबेर का कोई मतलब नहीं होता है बल्कि रचनाकार का नजरिया ही मायने रखता है और इनकी कविताएं इस मामले में खरा उतरती हैं।

दूरदर्शन रांची केंद्र के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार झा ने कहा कि कवि समकालीन मैथिली कविता में जरूरी हस्तक्षेप कर रहे हैं और साहित्य को अपनी सक्रिय रचनात्मकता से समृद्ध कर रहे हैं। उम्मीद है, उनके इस नए संग्रह का भी मैथिली पाठक व्यापक रूप से स्वागत करेंगे।

कवियत्री सुस्मिता पाठक ने कहा कि कवि की काव्यभाषा जीवंत है और पाठकों को रचनात्मक आशीर्वाद प्रदान करती हैं। उनकी कविताएं पाठकों को समकालीन देश - काल के प्रासंगिक सवालों से जूझने के लिए बौद्धिक स्तर पर मजबूती प्रदान करती है। अंत में कृष्णमोहन झा मोहन ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सब के प्रति आभार जताया।

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