नेताजी को रास न आई, गोपनीय रिपोर्ट क्‍यों बनाई? पढ़ें खुफिया अफसर की खुराफात DIAL 100

खाकी वाले विभाग में कोरोना से ज्यादा नेताजी के प्रकोप की चिंता सता रही है। नेताजी के आंख तरेरने मात्र से ही कुर्सी में कंपन शुरू हो जाता है। भले वह सत्य के रास्ते पर ही क्‍यों न हो

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sat, 18 Apr 2020 08:27 AM (IST) Updated:Sat, 18 Apr 2020 08:03 PM (IST)
नेताजी को रास न आई, गोपनीय रिपोर्ट क्‍यों बनाई? पढ़ें खुफिया अफसर की खुराफात DIAL 100
नेताजी को रास न आई, गोपनीय रिपोर्ट क्‍यों बनाई? पढ़ें खुफिया अफसर की खुराफात DIAL 100

रांची, जेएनएन। सत्‍ता बदली, सरकार बदली और बदली पुलिसवालों की नियति। झारखंड में मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुआई में सरकार बनने के बाद से ही पुलिस महकमे में वफादारी साबित करने की होड़ मची है। किसी के पर कतरे जा रहे हैं, तो किसी को पंख लगाए जा रहे। पुराने वाले डीजीपी साहब की रवानगी के बाद सख्‍त हाथों में कमान दी गई है। इस बीच पुराने वफादारों को भी एक-एक कर निपटाया जा रहा है। राज्‍य ब्‍यूरो के संवाददाता दिलीप कुमार के साथ यहां पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर नियमित कॉलम डायल-100 में... 

नेताजी का प्रकोप

खाकी वाले विभाग में कोरोना वायरस के प्रकोप से ज्यादा नेताजी के प्रकोप की चिंता सताने लगी है। नेताजी की आंख तरेरने मात्र से ही कुर्सी में कंपन शुरू हो जाता है। अगर वह सत्य के रास्ते पर है फिर भी नेताजी चाहेंगे तो उसे रास्ता बदलना ही होगा। ताजा वाकया एक सीनियर अफसर के तबादला से जुड़ा है। उस अफसर को खुफियागिरी की जिम्मेदारी मिली थी। उसने एक ऐसी गोपनीय सनसनीखेज रिपोर्ट तैयार कर दी कि नेताजी का वोट-बैंक ही डगमगाने लगा। नेताजी भला इसे कैसे बर्दाश्त करते। उन्होंने अपने पावर का इस्तेमाल कर दिया। ऐसी चाल चली कि बेचारे खुफियागिरी करने वाले खाकी वाले साहब को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। नेताजी ने खुफियागिरी करने वाले साहब को अपने क्षेत्र से ही दूर भेज दिया और उनकी जगह पर अपने मनपसंद अधिकारी को बैठा दिया, ताकि वोट बैंक भी बना रहे और अपनी मर्जी  चलती रहे। 

जैसे को तैसा

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। खाकी वाले एक बड़े साहब पर यह लाइन इन दिनों फिट बैठ रही है। ये साहब मुख्य धारा से अलग-थलग पड़े हुए हैं और अपनी करनी का फल भोग रहे हैं। फोन टेपिंग कर दूसरों की बैैंड बजाते थे, अब उस पीडि़त की आह ने ही उस साहब का अहित कर डाला। उस साहब को दूसरों की बातें सुनने का बहुत शौक था। कौन अधिकारी किससे बात कर रहा है, किसकी किससे ट्यूनिंग है, यह जानने में उनकी बहुत रुचि थी। इसकी विभाग में चर्चा तो थी ही, अब पुष्टि भी हो गई। जब नए साहब को कमान मिली तो उन्होंने सबसे पहला काम अपने विभाग में हो रहे फोन टैपिंग को बंद करवाना समझा। ये अब पुराने साहब का कचरा साफ करने में जुटे हैं, ताकि सबके साथ न्याय हो। 

दर्द के बावजूद डटी है खाकी

खाकी पहनकर भला करने निकले थे और अब पत्थर खाने को विवश हैं। जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस के खतरे के चलते अपने-अपने घरों से निकलने से हिचक रही है, वहां खाकी वाले डंडा से इस वायरस को भगाने के लिए मैदान ए जंग में कूद चुके हैं। वायरस तो भागेगा या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन उसे लेकर ढो रहे लोगों ने ही इस खाकी को दर्द देना शुरू कर दिया है। जी हां, खाकी इन दिनों दर्द से कराह रही है। उसपर चौतरफा मार पड़ रहा है। वायरस ढो रहे लोगों के पत्थर की चोट, उपर वाले साहब की फटकार, नेताजी की बातें सुन-सुनकर तिलमिलाई खाकी को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा। लेकिन, खाकी भी दृढ़संकल्पित है कि चाहे जो हो जाए, इस वायरस को भगा कर रहेंगे, चाहे इसके लिए महीनों घर से दूर ही क्यों न रहना पड़ जाय। 

कप्तानों की लॉटरी

कोरोना महामारी ने कुछ की दुकानदारी भी बंद करा दी है, लेकिन जिलों में जमें कप्तानों की लॉटरी लगा दी है। इस महामारी ने उनकी कुर्सी को फिलहाल फेविकोल के मजबूत जोड़ से चिपका दिया है। जो कभी डगमग-डगमग कर रहा था, वह अब स्थिर हो चला है। कुछ दिन और सही, कप्तानों ने राहत की सांस लेनी शुरू कर दी है। पहले वे नजर में चढ़े थे, अब उनके स्थान को कोरोना ने ले लिया है। जिलों के कप्तानों पर से सरकार का सारा ध्यान कोरोना के नियंत्रण पर चला गया है। यही मौका है जब ये कप्तान अब खुद को सरकार का हमदर्द बनाने में जुट गए हैं, ताकि उनकी कुर्सी बची रहे। बाजार से पूरा बटर उठा चुके हैं ताकि लॉकडाउन टूटने तक उस बटर की बदौलत निर्णय अपने पक्ष में करा सकें। कप्तान साहब संभलकर आपकी कुंडली बटर से नहीं बदलने वाली।

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